नई दिल्ली। निर्वाचन आयोग ने आम चुनाव और चार राज्यों के विधानसभा के चुनावों की तारीखों का एलान कर दिया। अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम में 19 अप्रैल को मतदान होगा। पहले इन दोनों राज्यों में 4 जून को वोटों की गिनती होनी थी लेकिन इसमें बदलाव कर दिया गया। अब दोनों राज्यों में 2 जून को ही परिणाम आ जाएंगे। वहीं ओडिशा में लोकसभा और विधानसभा के लिए दो चरणों में चुनाव होंगे। पहले चरण में 28 सीटों पर मतदान होगा। दूसरे चरण में 35 विधानसभा सीटों के लिए मतदान होगा। दूसरे चरण के लिए मतदान 20 मई को होगा और 4 जून 2024 को मतों की गणना की जाएगी।
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आंध्र में भाजपा के पास मौका
यहां लोकसभा की 25 सीटों के साथ ही असेंबली की 175 सीटों के लिए वोट पड़ेंगे। सभी 175 सीटों पर एक चरण में मतदान होगा। 13 मई 2024 को राज्य विधानसभा के लिए मतदान होगा। यहां भी 4 जून 2024 को चुनाव नतीजों का एलान किया जाएगा। देखा जाए तो आंध्र में असली मुकाबला राज्य के सीएम जगन मोहन रेड्डी और पूर्व सीएम चंद्र बाबू नायडू के बीच है। वहीं बीजेपी के दक्षिण विजय अभियान के तहत पीएम मोदी और बीजेपी आंध्र प्रदेश में भी अपने पैर जमाने की कोशिश कर रही है। इसके तहत उसने आंध्र प्रदेश में अपने पुराने घटक दल टीडीपी और अभिनेता से नेता बने तेलुगु चेहरे पवन कल्याण की जनसेना पार्टी से हाथ मिलाते हुए राज्य में एनडीए घटबंधन के तहत चुनाव लड़ने की योजना बनाई है। सीटों के तालमेल की बात की जाए तो राज्य की कुल 25 सीटों में से टीडीपी 17 सीटों पर तो वहीं बीजेपी छह और पवन कल्याण की पार्टी दो सीटों पर उतरेगी। मार्च महीने में पीएम मोदी ने राज्य का दौरा कर विशाल रैली की थी। 2019 के विधानसभा चुनावों के परिणामों के मुताबिक आंध्र प्रदेश की 175 विधानसभा सीटों में से वाईएसआर कांग्रेस पार्टी ने 151, टीडीपी को 23, जेएनपी को 1 को सीट मिली थी। वर्तमान में वाईएस जगन मोहन रेड्डी राज्य के मुख्यमंत्री हैं।
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आंध्र में कांग्रेस की तैयारी
तेलंगाना की जीत कांग्रेस के लिए किसी जादू से कम नहीं है। इस जीत से कांग्रेस के लिए दक्षिण में एक और गेट खुल गया है। तेलंगाना की जीत से कांग्रेस आंध्र प्रदेश में भी बढ़त ले सकती है। राज्य में जगन मोहन रेड्डी और चंद्रबाबू नायडू की तरह की कांग्रेस की लोकप्रियता है। कांग्रेस ने पूरा फोकस वेलफेयर मॉडल और डेवलपमेंट मॉडल पर रखा है।
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कुर्सी बचाने की जद्दोजहद में जगन
प्रदेश के सीएम व वाईएसआर कांग्रेस के मुखिया वाईएस जगन मोहन में अपनी कुर्सी बचाने के लिए पुरजोर कोशिश करते देखे गए। अपनी सरकार व सांसदों के प्रति एंटी इनंकंबेंसी ने निपटने के लिए जहां एक ओर उन्होंने अपनी जनकल्याण की योजनाओं को लेकर 27 मार्च से जनअभियान के तहत 21 दिन की बस यात्रा की शुुरु की। वहीं उन्होंने अपने मौजूदा 22 सांसदों में से 14 सांसदों के टिकट काट कर नए चेहरे देने की कोशिश की है। एंटी इनकंबेंसी से निपटने के लिए जगन एससी, एसटी, ओबीसी व अल्पसंख्यकों के लिए चलाई जा रही जनकल्याण की योजनाओं को प्रमुखता से लोगों के बीच ले जा रहे हैं। यहां जगन के लिए एनडीए के अलावा एक चुनौती खुद अपने परिवार से है। उनकी बहन वाईएस शर्मिला पूर्व सीएम व अपने पिता वाईएस राजशेखर रेड्डी की राजनीतिक विरासत में अपनी हिस्सेदारी का दावा पेश कर रही हैं। वे इस समय कांग्रेस में हैं।
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अरुणाचल का परिदृश्य
पूर्वोत्तर के अरुणाचल और सिक्किम में विधानसभा चुनाव होने है। अरुणाचल की राजनीति में बीजेपी का दबदबा है। 2014 में मोदी सरकार के आने के बाद हुए राजनीतिक घटनाक्रम में राज्य की सियासी हालत बदल चुकी है। यहां देखना होगा कि बीजेपी अपना वर्चस्व रख पाती है या फिर कांग्रेस की वापसी होगी? इस राज्य में दोनों ही दलों का आधार है। 2019 के विधानसभा चुनाव के परिणामों पर नजर डाली जाए तो पूर्वोत्तर राज्य अरुणाचल प्रदेश की 60 विधानसभा सीटों में से भाजपा को 41, जेडीयू को 7 , एनपीईपी को 5, कांग्रेस को 4, निर्दलीय को 2 और अन्य को 1 सीट मिली थी। वर्तमान में सूबे में भाजपा की सरकार है। पेमा खांडू अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं। पेमा खांडू राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री दोरजी खांडू के बेटे हैं। जो कांग्रेस पार्टी से थे। दोराजी का 30 अप्रैल, 2011 को एक हवाई हादसे में निधन हो गया था।
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सिक्किम के गणित में उलझे दिग्गज
2019 के विधानसभा चुनावों पर नजर डाली जाए तो सिक्किम की 32 विधानसभा सीटों में से सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा को 17 और सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट को 15 सीटें मिली थी। वर्तमान में प्रेम सिंह तमांग सिक्किम के मुख्यमंत्री हैं। सिक्किम की राजनीति से बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही आउट हो हैं। विधानसभा में क्षेत्रीय पार्टी एसडीएफ का दबदबा है। कांग्रेस और बीजेपी यहां अपना खाता भी नहीं खोल पाई थीं। इस बार भी सिक्किम में एसडीएफ को अपनी वापसी की उम्मीद दिख रही है, लेकिन कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही दलों को इस बार परिवर्तन की आस है।
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नवीन पटनायक का टूटेगा तिलिस्म या होगी वापसी
नवीन पटनायक ओडिशा के मुख्यमंत्री के पद पर पिछले 22 वर्षों से लगातार काबिज हैं। उनका राजनीतिक करियर भी इससे बहुत ज्यादा पुराना नहीं है। उन्होंने 1997 से ही राजनीतिक पारी शुरू की थी। लेकिन, इन 25 वर्षों में उन्होंने ओडिशा के लोगों की सियासी नब्ज ऐसे पकड़ी है कि विपक्ष उसका कोई काट नहीं ढूंढ़ पाया है। 76 वर्षीय नवीन पटनायक को इस बार कड़ी चुनौती मिलती दिख रही है। यहां भाजपा ने जहां अपने मंत्रियों की फौज उतारकार जमीनी तौर पर काफी मशक्कत की है वहीं कांग्रेस भी इस बार सत्ता में वापसी की राह देख रही है। कुल मिलाकर देखा जाए तो पटनायक के लिए इस बार की राह कांटों भरी है। लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ होने के कारण पीएम मोदी राज्य में कई रैलियां और चुनाव की तारीखों के ऐलान से पहले हजारों करोड़ की परियोजनाओं की सौगात दे चुके हैं। ओडिशा के परिदृश्य की बात की जाए तो 147 विधानसभा सीटों में बीजू जनता दल(बीजेडी) 122 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर सामने आई थी। वहीं 2019 के चुनावी नतीजों के मुताबिक भाजपा को 23, कांग्रेस को 9, सीपीआई(एम) को 1 और निर्दलीय को 1 सीट मिली थी। वर्तमान में बीजेडी के नवीन पटनायक सूबे के मुख्यमंत्री हैं।
Rajneesh kumar tiwari