जनप्रवाद ब्यूरो, नई दिल्ली। वैज्ञानिकों ने अब तक का सबसे बड़ा आइंस्टीन क्रॉस खोजा है। इस चमत्कारी लेंस से झांकने पर ब्रह्मांड बड़ा नजर आता है। यह आकाशगंगाओं के एक दुर्लभ हिंडोला के बीच स्थित है। अंतरिक्ष में यह गुरुत्वाकर्षण लेंसिंग के साथ डीप स्पेस को बड़ा दिखाता है। एस्ट्रोनॉमर्स यानी अंतरिक्ष वैज्ञानिकों ने हैरान करने वाली खोज की है। यह गैलेक्सी क्लस्टर के साथ जुड़ी सात आकाशगंगाएं हैं। यह अब तक देखी गई आकाशगंगाओं की सबसे अनोखी संरचनाओं का निर्माण कर रहीं हैं। ये एक गुरुत्वाकर्षण लेंस को बनाती हैं। यह आकाशगंगाओं की इस व्यवस्था में सबसे बड़ा आइंस्टीन क्रॉस शामिल है। यह शोध जनरल रिलेटिविटी से पैदा हुई गुरुत्वाकर्षण लेंसिंग का नतीजा है। जिसकी वजह से एक ही फोटो में एक ही आकाशगंगा बार-बार दिखाई देती है। द एस्ट्रोफिजिकल जर्नल में छपी स्टडी में वैज्ञानिकों ने इस संरचना को कैरोसेल लेंस नाम दिया है। यह लेंस जिन आकाशगंगाओं के क्लस्टर से बना है, वह पृथ्वी से लगभग 5 बिलियन प्रकाश-वर्ष दूर है। यह खोज खगोल विज्ञान के कई रहस्यों से पर्दा उठाने में वैज्ञानिकों की मदद कर सकती है। इनमें डार्क एनर्जी ब्रह्मांड के विस्तार को बढ़ाने वाली अदृश्य ताकत और डार्क मैटर यानी वह अदृश्य पदार्थ शामिल है जिससे 80 प्रतिशत ब्रह्मांड बना है। बता दें कि गुरुत्वाकर्षण लेंसिंग की भविष्यवाणी सबसे पहले महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन ने की थी। उनके 109 साल पुराने सामान्य आपेक्षकिता सिद्धांत में इसका उल्लेख किया गया था। आइंस्टीन का सिद्धांत कहता है कि विशालकाय पिंड जैसे तारे, ब्लैक होल और आकाशगंगाएं स्पेस टाइम के ताने-बाने को विकृत कर देते हैं। इसका नतीजा यह होता है कि ऐसे पिंड दूर स्थित पिंडों से आ रहे प्रकाश को मोड़ देती है। आइंस्टीन का सिद्धांत के अनुसार जब कोई गुरुत्वाकर्षण लेंस दूर की वस्तुओं और पृथ्वी पर मौजूद आब्जर्वर्स के बीच होता है, तो दूर की वस्तुएं बड़ी दिखाई देती हैं। कैरोसेल लेंस' के पीछे जो सात अलग-अलग आकाशगंगाएं हैं, वे पृथ्वी से 7.6 बिलियन से लेकर 12 बिलियन प्रकाश-वर्ष दूर स्थित हैं। यानी ये आकाशगंगाएं लगभग ज्ञात ब्रह्मांड के किनारे पर मौजूद हैं। हम अपने सबसे बेहतरीन टेलीस्कोप से भी इसके आगे नहीं झांक सकते क्योंकि इसके आगे शून्य है। बता दें कि कैरोसेल लेंस में कई आकाशगंगाएं एक से ज्यादा जगहों पर दिखाई देती हैं। स्टडी के सहायक लेखक और अमेरिका की लॉरेंस बर्कले नेशनल लैबोरेटरी में सीनियर साइंटिस्ट ने इसकी जानकारी दी। डेविड इसे कमाल की खोज करार देते हैं। उन्होंने कहा कि ऐसा एक अलाइनमेंट ढूंढना घास के ढेर में सुई ढूंढने जैसा है। यानी इन सभी की खोज घास के ढेर में आठ कतारबद्ध सुइयों जैसा है। डेविड की टीम ने इस संरचना की खोज हबल स्पेस टेलीस्कोप और नेशनल एनर्जी रिसर्च साइंटिफिक कंप्यूटिंग सेंटर के पर्लमटर सुपरकंप्यूटर की मदद से की है।
Rajneesh kumar tiwari