जनप्रवाद ब्यूरो, नई दिल्ली। मोदी सरकार ने दशकीय जनगणना कराने की तैयारी शुरू कर दी है। साथ ही विपक्षी दलों की बोलती बंद करने का प्लान तैयार हो चुका है। सूत्रों से पता चला है कि इस प्रक्रिया में जाति संबंधी कालम को भी शामिल करने पर विचार चल रहा है। वहीं यह प्रक्रिया सरकार के लिए भी जरूरी हो चुकी है, क्योंकि इससे सरकार के कई प्रोजेक्ट रुके हुए हैं। 1881 से देश में हर दस साल में जनगणना कराई जाती है। पहले जनगणना का चरण 1 अप्रैल, 2020 को शुरू होना था लेकिन कोरोना महामारी की वजह इसे स्थगित करना पड़ा। सरकार के लिए इस समय जनगणना कराना काफी ज्यादा जरूरी है कि क्योंकि सरकार के कई नए कानून और अधिनियम इसी से जुड़े हुए हैं। बता दें कि नए आंकड़े न होने की वजह से सरकारी एजेंसियां अभी भी 2011 की जनगणना के आंकड़ों पर निभर हैं। वे उनकी कड़ों के आधार पर नीतियां बना रहे हैं और सब्सिडी आवंटित कर रहें हैं। पहले जनगणना का चरण और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर को अद्यतन करने का कार्य 1 अप्रैल से 30 सितंबर, 2020 तक होना था। बाद में कोरोना की वजह से इसे स्थगित कर दिया गया। अब एक बार फिर जनगणना की तैयारी शुरू कर दी गई है। अधिकारियों ने बताया कि पूरी जनगणना और एनपीआर प्रक्रिया पर सरकार के 12,000 करोड़ रुपये से अधिक खर्च हो सकते हैं। इस बार डिजिटल जनगणना होगी। इस दौरान आधार या मोबाइल नंबर अनिवार्य रूप से एकत्र किया जाएगा। इस बार की जनगणना सरकार राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर का काम भी पूरा कर पाएगी। वहीं एनडीए सरकार अपने मौजूदा कार्यकाल में वन नेशन, वन इलेक्शन की नीति लागू कर सकती है। सरकार इस नीति को लेकर आशावादी है। इस साल की शुरूआत में पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद की अध्यक्षता वाले पैनल द्वारा एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने के बाद वन नेशन, वन इलेक्शन की प्रक्रिया जोर पकड़ रही है। पैनल ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को रिपोर्ट प्रस्तुत किया और लोकसभा तथा विधानसभा चुनाव एक साथ कराने की अवधारणा का जोरदार समर्थन किया था। देश में जनगणना कराने की तैयारियां के बीच ऐसी खबर है कि केंद्र सरकार जनगणना में जाति का एक कालम शामिल करने पर विचार कर रही है। अभी तक इस पर कोई फैसला नहीं लिया गया है। सूत्रों का कहना है कि केंद्र सरकार विपक्षी दलों की बोलती बंद करने के लिए बड़ा कदम उठा सकती है। बता दें कि कांग्रेस समेत कई विपक्षी दल लंबे समय से जातिगत जनगणना की मांग कर रहे हैं। कांग्रेस ने सुझाव दिया था कि सरकार अगली जनगणना में केवल एक अतिरिक्त कालम जोड़कर ओबीसी आबादी का जाति-वार डेटा एकत्र कर सकती है। कांग्रेस ने कहा था कि 1951 से अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति का डेटा हासिल करने के लिए इसी तरह की प्रक्रिया चलती रही है। विपक्षी पार्टी ने कहा था कि सरकार के इस कदम से वंचित समूहों के सदस्यों को सहायता देने के आधार को और मजबूती मिल सकती है। आपको याद ही होगा कि राहुल गांधी लोकसभा चुनाव से लेकर संसद तक जाति जनगणना की बात करते रहें हैं। वे हर मोर्चे पर इसकी मांग उठाते रहे हैं। साथ ही यह कहते रहे हैं कि कांग्रेस सरकार आते ही जाति आधारित जनगणना होगी। इसके अलावा भाजपा के सहयोगी दल जेडीयू और अपना दल इसकी लगातार मांग कर रहे हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि आरोपों के निपटने के लिए मोदी सकरार ने यह खास प्लान तैयार किया है।
Rajneesh kumar tiwari