एक विकासशील देश होने के लिहाज से भारत के नागरिकों के स्वास्थ्य और इससे संबंधित चर्चा करें तो इस दृष्टिकोण से अनैक चुनौतियां हमारे समक्ष उभरती हैं। इसी क्रम में यदि विमर्श का केंद्र कैंसर जैसी भयावह बीमारी बन जाये तो यह चुनौती अभिशाप के तौर पर हमारे समक्ष उभरती दिखती है। कैंसर का वार्षिक जोखिम हमारे देश में अत्यंत भयावह है क्योंकि प्रतिवर्ष इस बीमारी के पीड़ितों के लगभग 1.40 लाख मामले हमारे सामने होते हैं और इन रोगियों में से ऐसे अनेक मामले सिर्फ इस वजह से लाइलाज हो चुके होते हैं क्योंकि उन्होंने कैंसर के अंतिम चरण में पहुंचने के बाद डॉक्टरों से संपर्क किया होता है। अत्यंत दुखद यही है कि विलम्बित निदान और सीमित उपचार अनेक अवसरों पर दुखद परिणाम पर समाप्त होती है।
समय से पहचान जरूरी
चिंताजनक बात यह है कि मुख और गर्भाशय कैंसर, जो समय पर पकड़ में आ जायें तो उनमें सफल उपचार की अत्यंत संभावनाएं बनी रहती हैं। भारत में मुख कैंसर मामलों का बोझ वैश्विक मामलों की तुलना में अद्वितीय है। वहीं गर्भाशय कैंसर के लिहाज से भारतीय महिलाओं के बीच यह दूसरा सबसे प्रसार करने वाला कैंसर है। यदि दुनिया की बात करें तो हर चौथे कैंसर पीड़ित की मौत की वजह यही रोग बनता है। अत्यंत दु:खद यह है कि यह कैंसर अक्सर उन्नत चरणों में पहचाने जाते हैं जिससे जो उपचार की सीमाएं बेहद क्षीण रह जाती हैं। हां, यदि समय रहते इनकी पहचान हो जाय तो निश्चय ही परिणामों में प्रभावशाली परिवर्तन लाए जा सकते हैं।
चलाए जाएं जागरूकता अभियान
इधर, जहां तक मुख के कैंसर का ताल्लुक है तो तंबाकू, सुपारी, शराब की खपत और मानव पैपिलोमा वायरस से जटिल रूप से जुड़ा होता है। वहीं गर्भाशय कैंसर अनियमित मासिक चक्र, मासिक धर्म के दौरान अधिक रक्तस्राव जैसे संदेश इसके पीड़ितों तक पहुंचाता है। ऐसे में आवश्यक है कि इन व्यापक जनस्वास्थ्य चुनौतियों को लेकर सरकारी स्तर पर व्यापक जन जागरूकता अभियान चलाए जाएं।
रोका जा सकता है कैंसर
मारे देश में मुख और गर्भाशय के कैंसरों के मामलों की संख्या तेजी से बढ़ रही है और दुख की बात यह है कि कैंसर के यह दोनों ही मामले परिवारों को विनाश की स्थित में पहुंचा देते हैं। पुरुष के तौर पर चाहे कमाने वाला व्यक्ति हो या फिर घर संभालने वाली स्त्री। क्षति चाहे जिस किसी की हो, उसका नुकसान उनके परिवार को सहना पड़ता है। लेकिन हमें यह समझने की आवश्यकता है कि इन दोनों ही कैंसरों को समय पर रोका जा सकता है। साथ ही, आज इनका प्रभावी रूप से उपचार भी किया जा सकता है। कई मामलों में यदि कैंसर की स्टेज बढ़ भी गई हो तो उन परिस्थितियों में भी रोगी के जीवन के वर्षों में इजाफा किया जा सकता है।
तंबाकू से भयावह हो सकते हैं परिणाम
हालांकि, मेडिकल साइंस में भले ही कैंसर के इन दोनों ही प्रकारों से लड़ने की क्षमता विकसित हुई है फिर भी सलाह यही है कि तंबाकू छोड़ने में ही समझदारी है। नहीं तो इसके भयावह परिणाम हो सकते हैं। इसके अलावा, यदि किसी व्यक्ति के परिवार में कोई कैंसर से पीड़ित हुआ हो तो उसके सदस्यों को नियमित जांच कराने के साथ ही स्वस्थ जीवनशैली अपनाने, नियमित व्यायाम करने की सलाह भी दी जाती है। इसके अलावा 9-14 वर्ष की उम्र की लड़कियों को एचपीवी टीकाकरण की ओर भी कदम बढ़ाने चाहिए। जिससे कि सर्वाइकल कैंसर के मामलों के रोकथाम में सहायता मिल सके और इस प्रकार के कैंसर के प्रसार और मृत्यु दर कम किया जा सके।
महिलाओं के स्वास्थ्य के प्रति रहें जागरूक
यदि हम वर्ष 2024 की बात करें तो इस साल की गणतंत्र दिवस परेड के दौरान हम सभी ने ‘महिला शक्ति’ को देखा, ऐसे में आवश्यक है कि हम महिलाओं के स्वास्थ्य के प्रति जागरूक बनें। विशेष तौर पर यह जागरूकता ग्रामीण अंचलों में फैलाई जाय। साथ ही ‘मिशन जिंदगी’ की पहल के तहत, हम सब एक साथ मिलकर अपने आप को और हमारे प्रियजनों की जांच करवाएं और पांच परिवारों तक इस संदेश को पहुंचाएं कि जो तंबाकू या तंबाकू जनित पदार्थों का सेवन करते हैं उन्हें शीघ्र ही छोड़ने का उपाय व जतन करें। साथ ही कैंसर जैसी भयावह बीमारी से बचाव के लिए अपनी जांच कराने में भी संकोच न करें। ऐसे सामूहिक प्रयायों के माध्यम से हम न सिर्फ मुख और गर्भाशय कैंसर के खिलाफ युद्ध में महत्वपूर्ण परिवर्तन ला सकने में सफल होंगे, अपितु इससे होने वाले जीवन के क्षरण को न्यूनतम स्तर पर आने में सफलता अर्जित कर सकेंगे।
-डॉ. राहुल भार्गव
ब्लड कैंसर विशेषज्ञ
Arun kumar baranwal