नई दिल्ली। वैज्ञानिकों ने सूर्य के चुंबकीय क्षेत्र का सोर्स कहां है और इसमें भयानक विस्फोट क्यों होते हैं इस पहेली की सुलझा लिया है। ब्रह्मांड के बड़े रहस्य से पर्दा उठाते हुए वैज्ञानिकों ने बताया कि मैग्नेटिक फील्ड का सोर्स सूर्य की सतह के काफी पास है। यहीं से सौर तूफान आते हैं। हमारे सूर्य का चुंबकीय क्षेत्र बेहद शक्तिशाली है। उसी की वजह से सूर्य की सतह पर विस्फोट होते हैं और सौर तूफान आते हैं। इस महीने सूर्य काफी सक्रिय रहा है जिससे सौर तूफान आए थे। वैज्ञाानिकों ने इसके पीछे चुंबकीय क्षेत्र को बताया। बता दें कि सूर्य के इस चुंबकीय क्षेत्र की उत्पत्ति का आधार कहां है यह सवाल खगोलविदों को सदियों से परेशान करता आया है। अभी तक यह माना जाता रहा कि सूर्य के चुंबकीय क्षेत्र का सोर्स तारे में बेहद गहराई पर है। अब ब्रह्मांड की इस पहेली का जवाब मिल गया है। नेजर जर्नल में छपी स्टडी में रिसर्चर्स ने बड़ी खोज का दावा किया है। उनका कहना है कि सूर्य का चुंबकीय उसकी सौर सतह की सबसे बाहरी परतों में प्लाज्मा में अस्थिरता से पैदा होता है। वैज्ञानिकों ने जटिल कंप्यूटर मॉडलों का इस्तेमाल करते हुए यह खोज की है। इस रिसर्च से वैज्ञानिकों को सौर ज्वालाओं और सौर तूफानों की भविष्यवाणी आसान हो जाएगी। रिसर्च टीम ने दावा किया है कि चुंबकीय क्षेत्र सूर्य की सतह के लगभग 32,100 किलोमीटर नीचे बन सकते हैं। इसके पहले हुई खोज में दावा किया गया था कि यह क्षेत्र काफी गहराई यानी करीब 2 लाख किलोमीटर के नीचे होता है। सूर्य के मॉडल को समझें तो सूर्य वास्तव में प्लाज्मा का एक गोला है जिसके आवेशित आयन शक्तिशाली चुंबकीय क्षेत्र बनाने के लिए घूमते हैं। घूमते और बहते प्लाज्मा के इस क्षेत्र को कंवेक्शन जोन कहा जाता है। यह जोन सूर्य की सतह से करीब दो लाख किलोमीटर नीचे तक फैला हुआ है। वैज्ञानिक अब तक इसी को सौर तूफान का आधार मान रहे थे। सूर्य के चुंबकीय क्षेत्र की रेखाएं देख पाना बड़ा मुश्किल हैं। ये सूर्य के वायुमंडल में किसी लूप की तरह नाचती हैं और एक जाल जैसा खड़ा कर देती हैं। बता दें कि सूर्य का चुंबकीय क्षेत्र पृथ्वी के क्षेत्र से कई गुना ज्यादा है। शोध के दौरान वैज्ञानिकों ने सूर्य की सतह के कंपनों का मॉडल तैयार किया। इनके अध्ययन से पता चला कि सूर्य की सतह के पांच से दस फीसदी तक प्लाज्मा के फ्लो में बदलाव बाहर से देखे गए। बता दें कि 8 मई के आसपास सूर्य के एक सक्रिय क्षेत्र में विस्फोट हुआ था। जिससे चुंबकीय और विद्युत आवेशित सामग्री का एक अरब टन का बादल पृथ्वी की ओर उड़ आया था। इसे कोरोनल मास इजेक्शन के रूप में जाना जाता है। यह लगातार कई सीएमई में से पहला साबित हुआ, जो बाद में एक एकल, विशाल संरचना में विलय हो गया। यह हमारे ग्रह के मैग्नेटोस्फीयर से टकराया था। गनीमत रही कि इस सौर तूफान से ज्यादा नुकसान नहीं हुआ। अब वैज्ञानिकों ने 2025 में एक और विशाल विस्फोट की चेतावनी दी है। हार्वर्ड के खगोल भौतिकीविद ने बताया कि सूर्य अभी अपने सोलर मैक्सिमम यानी सौर अधिकतम तक नहीं पहुंचा है। सूर्य का एक चक्र 11 वर्षों का होता है। यह जैसे ही पूरा होगा उस समय सूर्य में भयानक विस्फोट होगा। यह पृथ्वी की सतह पर शक्तिशाली चुंबकीय उतार-चढ़ाव का कारण बन सकता है। इससे बिजली ग्रिड, पाइपलाइनों और रेलवे लाइनों के माध्यम से विद्युत धाराएं प्रवाहित हो सकती हैं। सीएमई से निकलने वाले उप-परमाणु कण सौर पैनलों और उपग्रहों के इलेक्ट्रॉनिक्स को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
Rajneesh kumar tiwari