जनप्रवाद ब्यूरो, नई दिल्ली। समुद्र में 2000 मीटर नीचे चीन स्पेस स्टेशन बना रहा है। अमेरिका समेत कई देशों ने इस पर चिंता जाहिर की है। इस स्टेशन में एक साथ छह वैज्ञानिक काम कर सकेंगे। यह दुनिया का अपनी तरह का पहला रिसर्च स्टेशन भी होगा। इसका उपयोग समुद्र में छिपे खजाने की खोज करना होगा। भारत का पड़ोसी देश चीन तकनीक से जुड़े नए-नए प्रयोग करता रहता है। अब चीन ने गहरे समुद्र में रिसर्च फैसिलिटी बनाने जा रहा है। इसे डीप वाटर स्पेस स्टेशन कहा जा रहा है। बता दें कि चीन ने वर्षों की बहस और तकनीकी समीक्षा के बाद गहरे समुद्र में रिसर्च फैसिलिटी को हरी झंडी दी है। इसे समुद्र का स्पेस स्टेशन भी कहा जा रहा है। यह कदम इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे समुद्री खोज को फिर से परिभाषित किया जा सकता है। इसके साथ ही दुनिया के सबसे संसाधन समृद्ध क्षेत्रों में से एक में चीन के भू-राजनीतिक लाभ को बढ़ा सकती है। कोल्ड सीप इकोसिस्टम रिसर्च फैसिलिटी रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण दक्षिण चीन सागर की सतह से 2,000 मीटर यानी 6,560 फीट नीचे स्थापित की जाएगी। इस क्षेत्र पर कई देशों का दावा है। इसके बावजूद चीन अपनी आक्रामक सैन्य रणनीति से सबको परेशान किया हुआ है। यह फैसिलिटी अब तक की सबसे गहरी और तकनीकी रूप से सबसे जटिल अंडरवाटर इंस्टॉलेशन में से एक है। यह लगभग 2030 तक चालू होने वाली है, जिसमें छह वैज्ञानिकों के लिए जगह होगी जो एक महीने तक चलने वाले मिशन पर होंगे। इस फैसिलिटी को रिसर्च कम्युनिटी के बीच गहरे समुद्र में अंतरिक्ष स्टेशन के रूप में जाना जाता है। इसका उपयोग ठंडे सीप पारिस्थितिकी तंत्रों का अध्ययन करने के लिए किया जाएगा। ये मीथेन-समृद्ध हाइड्रोथर्मल वेंट हैं, जो अद्वितीय जीवन रूपों से भरे हुए हैं और जिनमें मीथेन हाइड्रेट्स के विशाल भंडार हैं, जिन्हें ज्वलनशील बर्फ भी कहा जाता है। इस मिशन की प्रमुख विशेषताओं में लॉन्ग टर्म लाइफ सपोर्ट सिस्टम शामिल है। जिसकी तब आवश्यकता होगी जब वैज्ञानिकों को मीथेन प्रवाह, साथ ही पारिस्थितिक बदलाव और टेक्टोनिक गतिविधि को ट्रैक करने के लिए एक स्थायी निगरानी नेटवर्क का निर्माण और संचालन करना होगा। शोध करने वाले यिन और उनके सहयोगियों ने लिखा कि निर्माण जल्द ही शुरू होगा। जिन्होंने कहा कि स्टेशन का उद्देश्य मानव रहित पनडुब्बियों, सतह के जहाजों और समुद्र तल वेधशालाओं के साथ मिलकर काम करना था ताकि एक फोर डायमेंशनल निगरानी ग्रिड बनाया जा सके। यह स्टेशन एक व्यापक इंफ्रास्ट्रक्चर वेब का आधार बनेगा, जिसमें समुद्र तल पर चीन का विशाल फाइबर-आप्टिक नेटवर्क और ड्रिलिंग जहाज मेंगजियांग शामिल होगा, जिसका लक्ष्य पृथ्वी के मेंटल तक पहुंचने वाला पहला जहाज बनना है। बता दें कि दक्षिण चीन सागर में 70 बिलियन टन मीथेन हाइड्रेट्स है। ये तेल और गैस भंडार के आधे के बराबर है। वहीं समुद्र के नीचे 600 से अधिक प्रजातियां विषम परिस्थितियों में जिंदा रहती हैं। इनमें ऐसे एंजाइम हैं, जो कैंसर के इलाज में उपयोगी साबित हो सकते हैं। यदि चीन इस स्पेस स्टेशन का निर्माण कर लेता है, तो दक्षिण चीन सागर में चीन का दावा मजबूत हो सकता है। इसी इलाके में कोबाल्ट और निकल सांद्रता जैसे दुर्लभ खनिज भंडार भी हैं। यहां से जो भूमि आधारित खदानों से तीन गुना अधिक कोबाल्ट और निकल का उत्पादन हो सकता है।
Rajneesh kumar tiwari