जनप्रवाद ब्यूरो। भारत के चंद्रयान-3 के रोवर प्रज्ञान ने अद्भुत खोज की है। प्रज्ञान ने यह राज खोल दिया है कि चन्द्रमा इतना ठंडा कैसे हो गया। प्रज्ञान ने चन्द्रमा के विकास की प्रारंभिक जानकारी भेजी है। इसके अनुसार चांद की सतह कभी किसी पिघले हुए पदार्थ यानी मैग्मा के समुद्र से ढकी थी। इसरो का चन्द्रयान-3 अपने मिशन पर जुटा हुआ है। अब इसके परिणाम भी सामने आने लगे हैं। अब रोवर प्रज्ञान चन्द्रमा के नए राज खोल रहा है। प्रज्ञान में लगे दो उपकरणों में से एक अल्फा पार्टिकल एक्स-रे स्पेक्ट्रोपोमीटर ने बड़ी खोज की है। इसने चन्द्रमा के दक्षिणी अक्षांसो में उपरी मिट्टी की सरंचना के बारे में पहली जानकारी भेजी है। प्रज्ञान रोवर से भेजे गए डाटा से संकेत मिला है कि चंद्रमा की सतह पर कभी मैग्मा का महासागर था। यह जानकारी जर्नल नेचर में छपे विश्लेषण में दी गई है। इसमें प्रज्ञान रोवर से चांद की सतह पर पाई गई मिट्टी का जो डाटा भेजा गया उसका अध्ययन करने के बाद यह विश्लेषण तैयार किया गया। प्रज्ञान रोवर से चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव से प्राप्त आंकड़ों का विश्लेषण करते हुए शोधकर्ताओं ने पाया कि चंद्रमा की मिट्टी एक ही प्रकार की चट्टान फेरोअन एनोथोर्साइट या एफएएन से बनी है। वैज्ञानिकों का दावा है कि उसके परिणाम भूमध्यरेखीय और मध्य-अक्षांश क्षेत्रों से लिए गए नमूनों के विश्लेषण से मिलते-जुलते थे। इसके अलावा भौगोलिक दृष्टि से दूर-दराज के स्थानों से लिए गए नमूनों में समान संरचना मिली। यह अध्ययन सिद्ध करता है कि चांद की सतह कभी मैग्मा महासागर से ढकी थी। यह चंद्रमा के प्रारंभिक विकास के व्यापक रूप को भी दर्शा रहा है। माना जाता है कि चन्द्रमा का निर्माण लगभग 4.2 से 4.3 अरब साल पहले पृथ्वी के साथ एक क्षुद्रग्रह की टक्कर से हुआ था। प्रारंभिक चरण में यहा मैग्मा का महासागर था। लाखों साल बाद जब यह ठंडा हुआ तो भारी सिलिकान और मैग्नीशियम युक्त खनिजों के मिश्रण में चांद डूब गया। वहीं जब यह ठंडा हुआ तो कम घनत्व वाले पदार्थ सतह पर तैरने लगे और भारी खनिज नीचे रह गए। जैसे-जैसे कम घनत्व वाले पदार्थ ठंडे होते गए वैसे-वैसे चन्द्रमा की आंतरिक परतों का निर्माण होता चला गया। यह बात अब प्रज्ञान रोवर के डाटा से सिद्ध भी हो गई है। बता दें कि चन्द्रमा पर इसरो की खोज यहीं तक रुकने वाली नहीं है। जैसा कि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री जितेंद्र सिंह ने कहा कि नासा और इसरो मिलकर एक नया अभियान शुरू करेंग। सहयोगात्मक पहल के तहत अगले साल अप्रैल तक एक भारतीय अंतरिक्ष यात्री अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर उड़ान भर सकता है। दो भारतीय अंतरिक्ष यात्री-पदनामित ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला और प्रशांत बालकृष्णन नायर, एक्सिओम स्पेस एक्स-4 मिशन के लिए अमेरिका में प्रशिक्षण ले रहे हैं। इसरो ने शुभांशु शुक्ला को एक्स-4 मिशन के लिए नियुक्त किया है। वहीं प्रशांत बालकृष्णन नायर बैकअप उम्मीदवार होंगे।
Rajneesh kumar tiwari