जनप्रवाद ब्यूरो, नई दिल्ली। जंगलों और किलों को लेकर कई कहानियां सुनी जाती थी। आज हम आपको ऐसे दो किलों की रहस्यमई कहानी बताने जा रहे हैं जो घने जंगलों में है। यहां सालों से छिपाया हुआ खजाना है। मुगल इसी जगह पर लूटा हुआ सोना-चांदी रखते थे। आक्रमण के बाद राजाओं ने अपनी संपत्ति बचाने के लिए कई तरकीब अपनाई थी। काशी नरेश से लेकर मुगलों तक ने अपनी संपत्ति छिपाने के लिए प्रयास किए थे। राजा ऐसी जगहों पर अपना खजाना छिपाते थे जिसे कोई ढ़ूंढ न पाए। हम जिस जंगल के बारे में बात कर रहे हैं, यहां मुगलों का छिपाया हुआ बेशुमार खजाना है। इस जगह पर एक किला भी है। इस किले को कुंवारा किले के नाम से भी जाना जाता है। इस किले पर कभी किसी ने हमला नहीं बोला था। बताया जाता है कि जहांगीर ने भी इस किले में अच्छा खासा समय बिताया था। इस जंगल को रहस्मई जंगल भी कहा जाता है। जहांगीर ने अपना खजाना इसी किले के जगलों में छिपाया था। ये किला राजस्थान के अलवर शहर में है। इसे अलवर का बाला किला कहा जाता है। ये अरावली की पहाड़ियों में है। इस पर मुगलों, मराठों और जाटों का शासन रहा। यहां तक की जहांगीर का सलीम महल भी इसी किले में था। आज तक कोई भी इस खजाने को खोज नहीं सका है। लोगों का ये भी कहना है कि ये खजाना जगलों की गुप्त सुंरगों में छिपाया जाता था। ये माना जाता है कि इस किले का निर्माण 1492 में हसन खान मेवाती ने शुरू करवाया था। किले के जिस कमरे में जहांगीर ठहरा था, उसे सलीम महल के नाम से जाना जाता है। इस किले में एक दिन बाबर ने भी बिताया था। काशी नरेश के भी अपनी संपत्ति छिपाने के लिए प्रयास किए थे। काशी के राजा चेत सिंह ने रहस्मई किले का निर्माण कराकर संपत्ति छिपाई थी। यह किला मिजार्पुर जिले के लतीफपुर में आज भी है। फिलहाल राजा चेतसिंह के द्वारा निर्मित किला अब खंडहर हो गया है। बताया जाता है कि अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध से पहले किले के तहखाने में संपत्ति छिपाई गई थी। किले का जब निर्माण कराया गया तो यहां पर घनघोर जंगल था। जंगल के बीच किला अदृश्य नजर आता था। रहस्मई किले में तहखाने के साथ ही सैनिकों के रुकने की जगह थी। राजा चेतसिंह इसी किले में रहते थे। किले के आंगन में एक विशालकाय कुआं भी बनाया गया था। इसके साथ ही चारों तरफ करीब तीन से चार मीटर चौड़ी चाहदीवारी भी बनाई गई थी। किले में प्रसिद्ध उपन्यास चंद्रकांता की भी शूटिंग हुई है। पहले यह किला पर्यटन का केंद्र था। बाद में देख-रेख न होने से खंड़हर में तब्दील हो गया है। अंतिम बार काशी के राजा डॉ. विभूति नारायण सिंह 1946 में यहां आए थे। किले का मुख्य द्वार स्थापत्य कलां की कहानी जीवंत हैं। अंग्रेजों ने रामनगर के किले पर चढ़ाई की सूचना के बाद इसी किले में राजा चेतसिंह ने राजकोष को छिपाया था। बता दें कि आज तक राजकोष का पता नहीं चल सका है। ज्यादा समय तक नहीं रहने की वजह से चेतसिंह किले का पूणतया निर्माण नहीं करा सके थे।
Rajneesh kumar tiwari