जनप्रवाद ब्यूरो, नई दिल्ली। वैज्ञानिकों ने पृथ्वी से करीब 858 प्रकाश वर्ष दूर ब्रह्मांड का सबसे खतरनाक ग्रह खोजा है। यहां आसमान से धातुओं की बारिश हो रही है। इसका कारण है कि यह ग्रह बेहद गर्म है। जिससे धातुएं पिघल गई है। खगोलशास्त्रियों ने बेहद गर्म और फूले हुए अजीब ग्रह की खोज की है। इसका नाम वाष्प-121 बी रखा गया है। इस ग्रह पर रिसर्च करते हुए वैज्ञानिकों ने पाया कि यहां धातुओं की बारिश होती है। दिन के समय यह ग्रह बहुत गर्म हो जाता है। इसका तापमान 2,500 डिग्री से 4,500 डिग्री तक पहुंच जाता है। नई स्टडी में वैज्ञानिकों ने पाया कि इस अल्ट्रा-हॉट जुपिटर ग्रह की उत्पत्ति अपने तारे के बेहद करीब हुई होगी। जेमिनी साउथ टेलीस्कोप की मदद से की गई रिसर्च में इस ग्रह निर्माण और उस पर होने वाली गतिविधियों की पूरी जानकारी सामने आई। वैज्ञानिकों ने 1990 में पहली बार सौरमंडल के बाहर मौजूद ग्रहों की खोज की गई थी। तब से अब तक 5,000 से ज्यादा ग्रह खोजे जा चुके हैं। इनमें से कई हमारे सौरमंडल के किसी भी ग्रह से मेल नहीं खाते हैं। हॉट जुपिटर्स ऐसे ही ग्रह हैं। बता दें कि ये गैस दानव हैं, जिनका आकार और द्रव्यमान बृहस्पति से कई गुना ज्यादा होता है। ये अपने तारे के इतने करीब होते हैं कि इनकी आॅर्बिट यानी परिक्रमा केवल कुछ घंटों में पूरा हो जाती है। अब तक खोजे गए ग्रहों में से लगभग एक-तिहाई हॉट जुपिटर्स हैं। जो बहुत ज्यादा गर्म होते हैं। इसीलिए इन्हें रोस्टिंग मार्शमैलो कहा जाता है। अभी तक माना जाता रहा कि ये ग्रह पहले अपने तारे से दूर जाकर बनते हैं। इसके बाद धीरे-धीरे अंदर की ओर माइग्रेट करते हैं। वैज्ञानिकों ने जेमिनी साउथ टेलीस्कोप पर लगे विसर्जन ग्रेटिंग इन्फ्रारेड स्पेक्ट्रोग्राफ का प्रयोग कर कई खोज की। यह पहली बार था जब किसी ट्रांजिटिंग प्लैनेट का रॉक-टू-आइस रेश्यो एक ही इंस्ट्रूमेंट से मापा गया। आमतौर पर इस तरह की गणना के लिए अलग-अलग इंस्ट्रूमेंट्स की जरूरत होती है। जिससे गलती होने का खतरा रहता है। वाष्प-121 बी ग्रह पृथ्वी से लगभग 858 प्रकाश वर्ष दूर स्थित है। इसका द्रव्यमान बृहस्पति से 1.2 गुना अधिक है, लेकिन यह इतना फूला हुआ है कि इसका व्यास बृहस्पति से 1.9 गुना बड़ा है। यह अपने तारे के बेहद करीब है और केवल 1.3 पृथ्वी दिवस में एक परिक्रमा पूरी करता है। बेहद गर्म होने के कारण इसकी सतह पर मौजूद धातुएं वाष्पित हो जाती हैं। इसकी वायुमंडलीय धाराओं में बहने लगती हैं। यहा 17,700 किलोमीटर प्रति घंटे की हवाएं इन धातु-युक्त वाष्पों को नाइटसाइड तक ले जाती हैं। जहां वे ठंडी होकर धातु, रूबी और नीलम की बारिश के रूप में गिरती है। ग्रह निर्माण के पारंपरिक मॉडल्स के अनुसार, इसकी स्टडी में पाया गया कि वाष्प 121 बी में चट्टानी पदार्थों का अनुपात बहुत अधिक था। इसका रासायनिक विश्लेषण बताता है कि यह इतनी गर्म जगह बना था कि वहां बर्फ जम ही नहीं सकती थी। इस खोज से वैज्ञानिकों को ग्रह निर्माण की मौजूदा थ्योरी पर दोबारा विचार करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।
Rajneesh kumar tiwari