जनप्रवाद ब्यूरो, नई दिल्ली। दुनिया में कुछ ही ऐसे नेता हैं जिनके विरोधी भी मुरीद होते हैं। इस दुनिया से जाने के बाद भी कई नेता अपनी यादें छोड़ जाते हैं। ऐसी ही महान सख्सियत का नाम था डॉक्टर मनमोहन सिंह। जिनका निधन 26 दिसंबर की रात को एम्स में हुआ। वे भले ही इस दुनिया में नहीं है लेकिन उनके कई फैसले नजीर बने। डॉक्टर मनमोहन सिंह से जुडे कई अहम पहलुओं की जानने के लिए देखें हमारा ये खास वीडियो। आर्थिक सुधारों के जनक और 10 वर्ष तक देश की कमान संभालने वाले पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का 26 दिसंबर को निधन हो गया। उनके निधन पर भारत ही नहीं बल्कि दुनियाभर के लोगों ने शोक जताया। पीएम मोदी ने उनके निधन पर शोक व्यक्त किया। पीएम मोदी ने डॉ. मनमोहन के साथ अपने संबंधों को याद करते हुए कहा कि सिंह के निधन ने हम सभी को ह्रदय को गहरी पीड़ा पहुंचाई है। उनका जाना एक राष्ट्र के रूप में भी हमारे लिए बहुत बड़ी क्षति है। विभाजन के उस दौर में बहुत कुछ खोकर भारत आना और यहां जीवन के हर क्षेत्र में उपलब्धियां हासिल करना सामान्य बात नहीं है। अभावों और संघर्षों से ऊपर उठकर, कैसे ऊंचाईयों को हासिल किया जा सकता है, उनका जीवन ये सीख भावी पीढ़ी को देता रहेगा। मनमोहन सिंह भारतीय राजनीति की ऐसी शख्सियत थे, जो बेहद कम बोलते थे। मगर जब बोलते, तो बेहद मजबूती से। हालात विषम हों या कितने भी विकट वे चुपचाप हल निकाल लेते थे। 1991 में देश आर्थिक संकटों से घिरा तो भारत की अर्थव्यवस्था को दुनिया के निवेशकों के लिए खोलकर आर्थिक क्रांति ला दी। जिनकी खामोशी भी बोलती थी। अब वह शख्सियत हमेशा के लिए मौन हो गई। उन्होंने 92 साल की उम्र में दिल्ली एम्स में अंतिम सांस ली। मनमोहन सिंह ऐसे नेता थे, जिन्होंने परमाणु समझौते के लिए सरकार को दांव पर लगा दिया था। भारत की विदेश नीति को आज पूरी दुनिया में सराहा जाता है। आज प्रधानमंत्री मोदी जिस सफल विदेश नीति का संचालन कर रहे हैं, उसका आधार दो पूर्व प्रधानमंत्रियों अटल बिहारी वाजपेयी और मनमोहन सिंह ने ही तैयार किया था। 1991 में मनमोहन सिंह के नेतृत्व में देश में आर्थिक उदारीकरण की घटना है, जिसने देश की विदेश नीति को नया आकार दिया। इसके बाद अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में पोखरण में परमाणु परीक्षण ऐसी घटना थी। जिसने देश की विदेश नीति के दृष्टिकोण में बड़ा बदलाव किया। मनमोहन सिंह की विशेषज्ञता के क्षेत्र वित्त और अर्थशास्त्र रहे, लेकिन विदेश नीति में भी उनका उल्लेखनीय योगदान रहा। जिस पर कम बात होती है। पूर्व पीएम मनमोहन सिंह के जीवन यात्रा के बारे में बात तो यह वैसा है जैसा पीएम मोदी ने कहा है। डॉ. मनमोहन सिंह का जन्म 26 सितंबर 1932 को ब्रिटिश भारत के पंजाब प्रांत के गाह नामक गांव में हुआ। यह जगह अब पाकिस्तान में है। 1947 में देश आजाद होने के बाद उनका परिवार अमृतसर आकर बस गया। 1954 में उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त की। 1957 में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से इकॉनमिक्स ट्रिपोस यानी तीन वर्षीय डिग्री प्रोग्राम प्राप्त किया। 1962 में उन्होंने आॅक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में डी.फिल की उपाधि हासिल की। 1971 में वे वाणिज्य मंत्रालय में आर्थिक सलाहकार के रूप में भारत सरकार में शामिल हुए। वहीं 1972 में वे वित्त मंत्रालय में मुख्य आर्थिक सलाहकार नियुक्त हुए। 1980 में वे योजना आयोग के सदस्य बने। 1982 से 1985 तक वे भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर रहे। इसके बाद 1985 से 1987 तक योजना आयोग के उपाध्यक्ष के रूप में कार्य किया। पूर्व पीएम मनमोहन सिंह 1987 से 90 तक जिनेवा में दक्षिण आयोग के महासचिव बने रहे। इसके बाद 1990 में आर्थिक मामलों पर प्रधानमंत्री के सलाहकार नियुक्त किए गए। 1991 में मनमोहन सिंह विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष नियुक्त हुए। 1991 में वे राजनीति में आए। असम से राज्यसभा के लिए चुने गए । इसके बाद 1995, 2001, 2007 और 2013 में फिर से राज्यसभा से सांसद चुने गए। 1991 से 96 तक वे पीवी नरसिम्हा राव सरकार में वित्त मंत्री रहे। 1998 से 2004 तक वे राज्यसभा में विपक्ष के नेता भी रहे। 2004 में देश के प्रधानमंत्री चुने गए। वे लगातार 10 साल यानी 2014 तक भारत के प्रधानमंत्री रहे। डॉ. मनमोहन सिंह न केवल भारत के प्रधानमंत्री रहे, बल्कि वित्त मंत्री के रूप में भी काम किया। उनके नाम पर कई उपलब्धियां हैं जो हमेशा याद की जाएंगी। जब देश 90 के दशक में बड़े आर्थिक संकट में था, तब वित्त मंत्री के रूप में उन्होंने ऐसे बड़े फैसले लिए, जिन्होंने देश की तस्वीर बदल दी थी। ये ऐसा समय था जबकि विदेशी मुद्रा भंडार लगभग समाप्त हो गया था। देश में महंगाई दर कंट्रोल से बाहर हो गई थी। हालात यहां तक खराब हो गए थे कि देश दिवालिया होने की कगार पर पहुंच गया था। उस समय केंद्र में नरसिम्हा राव की सरकार थी। आर्थिक संकट के बीच भारतीय करेंसी रुपया क्रैश हो चुका था। अमेरिकी डॉलर के मुकाबले ये 18 प्रतिशत तक लुढ़क गया था। ऐसे हालातों में तत्कालीन वित्त मंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने देश के 22वें फाइनेंस मिनिस्टर के रूप में अपने पहले बजट भाषण में आर्थिक उदारीकरण के लिए बड़े ऐलान किए। इससे ऐसी नीतियां बनीं जो देश की इकोनॉमी के लिए मील का पत्थर साबित हुईं। इन नीतियों ने लाइसेंस राज को खत्म कर दिया। अर्थव्यवस्था को विदेशी निवेश के लिए खोल दिया। ग्लोबलाइजेशन, प्राइवेटाइजेशन और उदारीकरण के नए युग की शुरूआत की। इन फैसलों ने देश की दिशा को हमेशा के लिए बदल दली। जुलाई 1991 में वित्त मंत्री के रूप में उन्होंने भारत के सबसे गंभीर आर्थिक संकट का सामना किया था और अपनी सूझ-बूझ से इससे देश को निकाला था। उनकी नीतियों और सुधारों का साफ असर इंडियन इकोनॉमी पर देखने को मिला। भारत में विदेशी निवेश के दरवाजे खुल गए। इसके बाद जब डॉक्टर मनमोहन सिंह 2004 से 2014 तक लगातार दो कार्यकालों में देश के प्रधानमंत्री रहे, तो इस दौरान भी उनके द्वारा कई ऐतिहासिक फैसले लिए गए। कई कार्यक्रम शुरू किए गए,जिनमें मनरेगा, शिक्षा का अधिकार अधिनियम, आधार और डायरेक्ट बेनेफिट्स ट्रांसफर शामिल रहे। मनरेगा ने प्रत्येक ग्रामीण परिवार को 100 दिन के वेतन रोजगार की गारंटी दी। इससे खासतौर पर ग्रामीणों की आजीविका में बड़ा सुधार देखने को मिला। इसके अलावा इसी साल सरकार को जवाबदेह बनाने के लिए जून 2005 में सूचना का अधिकार कानून लागू किया गया। मनमोहन सिंह के कार्यकाल की अहम उपलब्धियों में आधार कार्ड की शुरूआत भी शामिल है। अन्य बड़ी उपलब्धियों में देश में कृषि संकट को दूर करने के लिए 60,000 करोड़ रुपये की ऋण माफी योजना शामिल है। कार्यकाल के दौरान 2013 में देश के गरीब लोगों के लिए खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चत करने के लिए राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम लागू किया जाना भी शामिल है।
Rajneesh kumar tiwari