जनप्रवाद ब्यूरो, नई दिल्ली। नैनीताल में धूमकेतु सी/2023 ए-3 त्सुचिंशान एटलस की चमक ने चांद और तारों को भी फीका कर दिया। सूर्योदय से पहले दिखने वाला यह धूमकेतु बिना दूरबीन के ही खुली आंखों से देखा जा सकता है। यह धूमकेतु 12 अक्टूबर को पृथ्वी के सबसे करीब होगा। आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान यानी एरीज नैनीताल के खगोलविद ने बड़ी जानकारी दी। संस्थान के अनुसार नैनीताल के आसमान में धूमकेतु सी/2023 ए-3 त्सुचिंशान एटलस अपनी चमक बिखेर रहा है। इसकी चमक इतनी तेज है कि इसके आगे चांद-तारों की चमक भी फीकी नजर आ रही है। लंबी चमकती पूंछ के साथ सूर्योदय से पहले यह धूमकेतु दुनियाभर में आकर्षण का केंद्र बना है। यह बिना दूरबीन के ही अब खुली आंखों से नजर आने लगा है। वहीं संस्थान के वरिष्ठ खगोल विज्ञानी डा. शशिभूषण पांडेय ने एटलस के बारे में बड़ा दावा किया है। उनके अनुसार इस धूमकेतु के टूटकर बिखर जाने की आशंका थी। लेकिन सितंबर में यह लौट आया और अब जोरदार चमक लिए भोर के आसमान में लंबी पूंछ के साथ अनोखी छटा बिखेर रहा है। चमकदार सुनहरी पूंछ से इसे आसानी से पहचाना जा सकता है। सूर्योदय से करीब एक घंटे पहले पूर्व के क्षितिज में यह नजर आ रहा है। यह रोमांचक खगोलीय घटना खगोलप्रेमियों के आकर्षण का केंद्र बनी हुई है। एस्ट्रोफोटोग्राफर इस घटना को कैमरे में कैद कर रहे हैं। वहीं धूमकेतुओं पर अध्ययन कर रहे विज्ञानियों की नजर हर पल इस पर टिकी हुई है। फिलहाल यह धूमकेतु 80.74 किमी प्रति सेकंड की तेज गति से आगे बढ़ रहा है। जिस कारण लगभग इसे 15 से 20 मिनट ही देखा जा रहा है। माना जा रहा है कि यह अपनी चमक की वजह से कामेट आफ दि ईयर की पदवी भी हासिल करेगा। 12 अक्टूबर को यह पृथ्वी के नजदीक से गुजरेगा। उस दिन यह अधिक चमक के साथ यह पश्चिम के आकाश में शाम के समय नजर आने लगेगा। इसका इतना नजदीक आना विज्ञानी दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है। डा. शशिभूषण के अनुसार धूमकेतुओं का आकार 50 किलोमीटर से भी बड़ा हो सकता है। बता दें कि छोटे आकार वाले बौने उल्कापिंड धूमकेतु कहलाते हैं। डेढ़ किलोमीटर से तीन किमी के बीच छोटे धूमकेतु कहलाते हैं। 10 किलोमीटर से अधिक आकार वाले बड़े उल्कापिंड धूमकेतुओं की श्रेणी में आते हैं। 50 किलोमीटर से ज्यादा बड़े वाले उल्कापिंड को गोलीर्थ धूमकेतु कहा जाता है। माना जाता है कि धूमकेतु ही पृथ्वी पर पानी लाए थे। इसके अलावा जीवन के लिए महत्वपूर्ण घटक अमीनो एसिड भी धूमकेतुओं के कारण ही पृथ्वी पर आया था।
Rajneesh kumar tiwari