नई दिल्ली। देश के सैनिक अब नए रक्षा कवच से कवर होंगे। इस रक्षा कवच को डीआरडीओ ने विकसित किया है। यह विशेष तरह की देश की सबसे हल्की बुलेट प्रूफ जैकेट है। यह इतनी मजबूत है कि इस पर छह राउंड की फायिरिंग की गई लेकिन इस पर कोई असर नहीं हुआ। रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की ओर कदम बढ़ाते हुए रिसर्च के लिए मशहूर डीआरडीओ को बड़ी सफलता मिली है। रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन ने देश की सबसे हल्की बुलेट प्रूफ जैकेट बनाने में सफलता हासिल की है। रक्षा मंत्रालय ने इसकी जानकारी शेयर की है। यह जैकेट एक नए डिजाइन दृष्टिकोण पर आधारित है। इसमें नई प्रक्रियाओं के साथ आधुनिक निर्माण सामग्री का उपयोग किया गया है। इस जैकेट का चंडीगढ़ स्थित टर्मिनल बैलिस्टिक रिसर्च लेबोरेटरी यानी टीबीआरएल में सफल परीक्षण किया गया। इस जैकेट का निर्माण डीआरडीओ की रक्षा सामग्री और भंडार अनुसंधान और विकास प्रतिष्ठान कानपुर में किया गया। परीक्षण के दौरान इस जैकट पर 7.62 गुणे 54 आरएपीआई स्तर के 6 विस्फोटक पदार्थों से फायर किया गया। इसे देश की सबसे हल्की बुलेटप्रूफ जैकेट बताया जा रहा है।
बता दें कि दिनरात बॉर्डर पर तैनात जवान दुश्मनों से लोहा लेते रहते हैं। ऐसे में उनकी सुरक्षा के साथ उनकी सुविधा को ध्यान में रखते हुए इस जैकेट का निर्माण किया गया है। इस रक्षा कवच को पहनने के बाद जवानों को युद्धक्षेत्र में हथियारों के साथ भारीपन महसूस नहीं होगा। यह जैकेट एर्गोनॉमिक रूप में डिजाइन किया गया फ्रंट एचएपी पॉलिमर बैकिंग के साथ मोनोलिथिक सिरेमिक प्लेट से बना है। साथ ही यह नई बुलेटप्रूफ जैकेट हमले में डेंजर लेवल-6 तक के लिए सुरक्षित है। वर्तमान में सुरक्षाबलों के जवान जिस जैकेट का इस्तेमाल करते हैं वह वजन में काफी भारी है। ऐसे में लगातार पहनकर ड्यूटी करने में कड़ी मशक्कत करनी पड़ती है। भारतीय सेना के प्रमुख जनरल मनोज पांडे ने कहा कि जवान इसको पहनने के बाद युद्ध में जाने से नहीं हिचकिचाएंगे। उन्होंने आत्मनिर्भरता पर जोर देते हुए कहा कि राष्ट्र की सुरक्षा को न तो आउट सोर्स किया जा सकता है और न ही दूसरों की उदारता पर निर्भर रहा जा सकता है। आर्मी चीफ ने आगे कहा कि हम राष्ट्र हितों की रक्षा करते हुए अलग-अलग किस्म के माहौल में पूरी क्षमता के साथ युद्ध जीत सकते हैं। हमारे पास मौजूदा समय में 340 स्वदेशी डिफेंस इंडस्ट्री हैं, जो कि 2025 तक 230 कॉन्ट्रैक्ट के पूरा होने की दिशा में काम कर रही हैं। इन पर 2.5 लाख करोड़ रुपए का खर्च आएगा। जनरल पांडे ने कहा कि भारत आधुनिक युग के युद्ध के लिए तैयार हो रहा है। पहले की तकनीक से युद्ध को नहीं जीता जा सकता है। इसलिए हथियार प्रणालियों और उपकरणों के अलावा हम 45 स्पेशल टेक्नोलॉजी पर भी काम कर रहे है। इनके डेवलपमेंट के लिए 120 स्वदेशी प्रोजेक्ट चल रहे हैं। क्षमता विकास के लिए स्वदेशी से आधुनिकीकरण हमारा मंत्र रहेगा। उन्होंने बताया कि 10 साल पहले सेना के आयात 30 से 50 प्रतिशत थे। अब पिछले दो वित्तीय सालों में लगभग जीरो परसेंट पर आ चुके हैं। हमारा ध्यान 2030 तक सेना को आधुनिक बनाने पर है। हम इस लक्ष्य को ध्यान में रखकर काम कर रहे हैं।
Rajneesh kumar tiwari