जनप्रवाद ब्यूरो, नई दिल्ली। आज कारगिल विजय दिवस पर पूरा देश अमर वीर शहीदों को श्रद्धाजंलि दे रहा है। पीएम मोदी ने भी वॉर मेमोरियल पहुंचकर जवानों को श्रद्धांजलि दी। वहीं हम आपको दो योद्धओं की वीरता की ऐसी कहानियों से रूबरू कराएंगे जिसको सुनकर आप दांतों तले उंगली दबा लेंगे। कारगिल विजय दिवस पर आयोजित मुख्य समारोह में शामिल होने के लिए पीएम मोदी कारगिल के द्रास पहुंचे हैं। यहां पीएम ने वीर बलिदानियों को श्रद्धांजलि दी। पीएम मोदी ने कहा कि कारगिल विजय दिवस हमें बताता है कि राष्ट्र के लिए दिए गए बलिदान अमर हैं। कारगिल विजय में कई जवानों ने अपने प्राणों की आहुति दी। इन्हीं बीर बलिदानियों में से एक थे विक्रम बत्रा। विक्रम को कारगिल का हीरो कहा जाता है। इनके नाम से दुश्मन थर-थर कांपते थे। इसलिए इन्हें शेरशाह नाम दिया गया था। 9 सितंबर 1974 को कांगड़ा जिले के पालमपुर में घुग्गर गांव में जन्मे शहीद विक्रम बत्रा बचपन से ही बहादुर थे। इन्होंने 1996 में इंडियन मिलिटरी अकादमी में दाखिला लिया था। 6 दिसंबर 1997 को कैप्टन बत्रा जम्मू और कश्मीर राइफल्स की 13वीं बटालियन में बतौर लेफ्टिनेंट शामिल हुए। कारगिल युद्ध में उन्होंने जम्मू-कश्मीर राइफल्स की 13वीं बटालियन का नेतृत्व किया। 20 जून 1999 को कैप्टन बत्रा को कारगिल युद्ध के दौरान उन्हें 5140 चोटी को कब्जे में लेने का आर्डर मिला। वे अपने साथियों को लेकर मिशन पर निकल पड़े। पाकिस्तानी सैनिक चोटी के टाप पर थे और मशीन गन से ऊपर चढ़ रहे भारतीय सैनिकों पर गोलियां बरसा रहे थे, लेकिन बतरा ने हार नहीं मानी और एक के बाद एक पाकिस्तानी को ढेर करते हुए आगे बढ़ते चले गए। खुद आगे आकर बत्रा ने दुश्मनों की गोलियां खाईं। उनके आखिरी शब्द थे जय माता दी। इनकी शहादत की वजह से भारतीय सेना ने कारगिल चोटी पर फतह हासिल की। इन्हें परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। ऐसे ही कारगिल हीरो के नाम से विख्यात नायक दिगेंद्र कुमार की कहानी बेहद रोमाचंक है। राजस्थान के सीकर जिले की नीमकाथाना तहसील के एक गांव में जाट परिवार में जन्मे, दिगेंद्र बचपन से सैन्य माहौल में पले-बढ़े। उनके नाना स्वतंत्रता सेनानी थे तो पिता भारतीय सेना के वीर योद्धा रहे। पिता से प्रेरित दिगेंद्र कुमार 2 राजपूताना राइफल्स में भर्ती हो गए थे। कारगिल युद्ध छिड़ने के बाद दिगेंद्र की यूनिट 2 राजपूताना राइफल्स को 24 घंटें में कुपवाड़ा से पहुंचने और मोर्चा संभालने के लिए तैयार रहने का निर्देश मिला। तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल वीपी मलिक ने दिगेंद्र कुमार को तोलोलिंग चोटी पर चढ़ाई की अपनी योजना समझाई। जनरल मलिक के आदेश पर नायक दिगेंद्र को घातक टीम का कमांडर बनाया गया। उनके कमांडिंग आफिसर मेजर विवेक गुप्ता बनाए गए। बफीर्ली पहाड़ी पर ठंड की कंपकपाहट के साथ रात के सन्नाटे में 12 जून की रात को चढ़ाई पूरी की। पाकिस्तानी सेना ने वहां 11 बंकर बना रखे थे। पहला बंकर दिगेंद्र कुमार ने उड़ाया। जब दिगेंद्र पहला बंकर उड़ाने के लिए रात के अंधेरे में दुश्मन के बंकर में घुसे तो इसकी भनक लगते ही दुश्मनों ने ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर दी। उस दौरान उन्हें चार गोलियां लगीं। इस दौरान घायल दिग्रेंद्र ने तुरंत एक ग्रेनेड बम बंकर में फेंक दिया। इसके बाद अचानक से पीछे से हमला हुआ और कई साथी गंभीर रूप से घायल हो गए। दिगेंद्र कुमार ने साथियों के साथ मिलकर दुश्मन पर पलटवार किया और 30 हमलावरों के टुकड़े-टुकड़े कर दिए। दिगेंद्र साथियों के साथ आगे बढ़ते रहे। देखते-देखते टीम ने पूरे 11 बंकर तबाह कर दिए थे। जब वे पहाड़ी की ओर आगे बढ़े, तब उन्हें रास्ते में पाकिस्तानी सेना का मेजर अनवर खान दिखाई दिया। दोनों का आमना-सामना हो गया। दिगेंद्र एक ही गोली चला पाए थे तभी अनवर खान ने उन पर अपनी पिस्तौल से गोली दाग दी जो दिगेंद्र के पांव में लगी। इसके बाद अनवर ने दिगेंद्र के ऊपर झपट्टा मारा लेकिन दिगेंद्र ने उसका गला पकड़ा और अपना खंजर निकालकर झटके से उसकी गर्दन उड़ा दी। 13 जून, 1999 को सुबह के साढ़े चार बजे उन्होंने तोलोलिंग की चोटी पर तिरंगा लहरा दिया। वे गंभीर रूप से घायल थे। जब उनकी आंख खुली तो वे श्रीनगर के सैन्य अस्पताल में थे। इलाज के दौरन वे अनफिट करार दिए गए और सेना से रिटायर हो गए। उनके योगदान के लिए भारत सरकार ने उन्हें महावीर चक्र से सम्मानित किया।
Rajneesh kumar tiwari