नई दिल्ली। इंंडियन आर्मी ने ऐसा ट्रैक्टर टैंक बनाया है। जिसकी खासियत जानकर आप हैरान रह जाएंगे। इस ट्रैक्टर टैंक पर एंटी टैंक गाइडेड मिसाइल्सों को फिट किया गया है। रेतीले इलाकों में यह तकनीक दुश्मन देशों खासकर पाकिस्तानी टैंकों को पलभर में ध्वस्त कर देगी। भारतीय सेना के इस जुगाड़ तंत्र की सोशल मीडिया मेंं खूब चर्चा हो रही है।
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दुश्मन देशों के टैंक पलभर में होंगे ध्वस्त
आपने ट्रैक्टर पर एंटी टैंक गाइडेड मिसाइल कभी लगी देखी है। यह सुन कर आपको आश्चर्य जरूर होगा कि यह कैसे संभव है। एक खेत जोतने के काम आने वाले वाहन का एंटी टैंक गाइडेड मिसाइल से क्या संबंध हो सकता है। अब भारतीय सेना यह सब कर दिखाया है। भारतीय सेना ने इस जुगाड़ का नाम इंप्रोवाइज्ड ट्रैक्टर माउंटेड एटीजीएम दिया है।
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इंप्रोवाइज्ड ट्रैक्टर माउंटेड एटीजीएम नाम
बता दें कि भारतीय सेना में जुगाड़ तंत्र बहुत प्रसिद्ध हैं। चाहे 1971 युद्ध की की बात हो या करगिल युद्ध। हर बार भारतीय सेना ने अपने कई जुगाड़ों को धूल चटाई है। सेना यह जुगाड़ की परंपरा आज तक जारी है। बता दें कि सेना के जीओसी खड़गा कोर और जनरल राहुल सिंह ने जेसोर ब्रिगेड का दौरा किया। वहां ब्रिगेड ने अपने कुछ खास इनोवेशंस की जानकारी जीओसी को दीं गई। उन्होंने इस प्रोफेशनलिज्म के लिए सैनिकों को बधाई दी। बता दें कि जेसोर ब्रिगेड इन दिनों पंजाब में तैनात है। इससे पहले भी भारतीय सेना ने ट्रैक्टर माउंटेड एटीजीएम बनाया था। लेकिन उसमें कुछ खामियां थीं, जो इस बार संभवतया दूर कर ली गई हैं। इस ट्रैक्टर टैंक को 9 एम 113 कोंकुर्स एटीजीएम लॉन्चर और अतिरिक्त मिसाइलों से लैस किया गया है। यह लॉन्चर 40 मीटर से चार किमी तक की दूरी पर खड़े टैंक को नष्ट कर सकता है। ट्रैक्टर पर एटीजीएम लॉन्चर लगाने की वजह को लेकर जनरल राहुल सिंह ने बताया कि राजस्थान और पंजाब का अधिकांश इलाका पाकिस्तान से सटा है। राजस्थान से सटी सीमा वाला ज्यादातर इलाका पूरा रेतीला है। वहीं पश्चिमी पंजाब में खेत पाकिस्तानी सीमा से सटे हुए हैं। राजस्थान के थार जैसे रेतीले इलाके में सेना की गाड़ियां को चलाने में काफी दिक्कत आती है। उनके रेत में फंसने का खतरा रहता है। ऐसे इलाकों में एटीवी यानी आॅल टैरेन व्हीकल्स ज्यादा कामयाब हैं। ये वाहन बेहद महंगे होते हैं। वहीं ट्रैक्टर पर एटीजीएम लॉन्चर लगाने से ज्यादा स्पष्ट विजन मिलता है। सामने टैंक को आसानी से निशाना बनाया जा सकता है। इसके अलावा ट्रैक्टर के पिछले पहिए बड़े होते हैं, जिससे उसके रेत में फंसने के चांस बेहद कम होते हैं।
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वेस्टर्न कमांड ने फोटो शेयर की
वेस्टर्न कमांड ने जो फोटो शेयर की है, उसमें ट्रैक्टर को कैमोफ्लॉज से ढका दिखाया है। इस बारे में राहुल सिंह ने बताया कि ट्रैक्टर हीट सिग्नेचर यानी कम गर्मी छोड़ता है। वहीं ट्रैक्टर की वजन ढोने की क्षमता अधिक होती है। यह आसानी से चार लोगों को ले जा सकता है। इसके अलावा खास बात यह है कि यह आसानी से रिपेयर हो सकता है। इसके लिए खास तेल की जरूरत नहीं पड़ती है। तेल खत्म होेने पर आस-पास के किसी भी पेट्रोल पंप से र्इंधन लिया जा सकता है। सैन्य सूत्रों ने बताया कि युद्ध के दौरान कई बार सेना के बड़े वाहन फंस जाते हैं, निकलने की जगह बेहद तंग होती है। उस स्थिति में ट्रैक्टर तकनीक काम आती है। जिन खेतों फसलें लहरा रही होती हैं वहां बड़े सैन्य वाहन उतारे नहीं जा सकते। ऐसे में या तो पैदल अटैक करना पड़ेगा या फिर ट्रैक्टर आसान विकल्प है। ऐसे में ट्रैक्टर पर लगी एटीजीएम से आसानी से दुश्मन देशों के टैंक को निशाना बनाया जा सकता है। बता दें कि ट्रैक्टर तकनीक की मॉडिफिकेशन लागत महज 6000 रुपये के आसपास ही पड़ती है। ऐसे में देखा जाए तो कम लागत में ट्रैक्टर तकनीक करोड़ों में आने वाले वाहनों का काम कर देती है।
Rajneesh kumar tiwari