जनप्रवाद ब्यूरो, नई दिल्ली। हरियाणा विधानसभा चुनाव में पूरा खेल पलट गया। यहां बीजेपी को पूर्ण बहुमत मिलता दिख रहा है। वहीं उम्मीदों के अनुसार कांग्रेस के पक्ष में नतीजे नहीं आए। ऐसे में अब रिजल्ट पर चर्चा शुरू हो गई कि भाजपा ने ऐसा कौन सा गेम खेला की बाजी पलट गई। लोकसभा के बाद हरियाणा में एक्जिट पोल एक बार फिर उम्मीदों पर खरे नहीं उतरे। एग्जिट पोल में कांग्रेस को बहुमत मिलने के आसार जताए गए थे। जब परिणाम आने शुरू हुए तो सभी चौंक गए। हरियाणा में भाजपा ने तीसरी बार सत्ता हासिल कर इतिहास रच दिया। भाजपा की इस सफलता के पीछे कई फैक्टर रहे। चुनावी रूझानों के अनुसार भाजपा को 50 सीट और कांग्रेस गठबंधन को 35 सीटें मिलती दिख रही हैं। भाजपा ने जाट लैंड में भी बढ़िया प्रदर्शन किया है। इसका मतलब साफ है कि कांग्रेस की रणनीति जवान-पहलवान और किसान को साधने की फेल हो चुकी है। हरियाणा में जाट वोट अधिकतर कांग्रेस और इनेलो को जाते रहे हैं। 2014 विधानसभा चुनावों में कुछ प्रतिशत जाटों का वोट बीजेपी को भी मिला था। इसके बावजूद अधिकतर वोट कांग्रेस और इनेलो को मिला था। जाट वोट कांग्रेस और जेजेपी में बंट गए थे। बीजेपी इस रणनीति पर काम करने लगी थी कि हरियाणा में एंटी जाट वोटों का ध्रुवीकरण किया जाए। इसके लिए बीजेपी ने पंजाबी हिंदू, ओबीसी, ब्राह्मण पर दांव खेला। केंद्रीय मंत्रिमंडल में पहली बार किसी जाट की एंट्री नहीं हुई। बीजेपी का अध्यक्ष ब्राह्मण चेहरे को बनाया गया। वहीं प्रदेश का सीएम एक ओबीसी को बनाया गया। आखिर में बीजेपी के लिए यह दांव काम कर गया। किसानों और महिला पहलवानों के आंदोलन से बीजेपी बहुत परेशान थी। इस आंदोलन के खिलाफ कोई कदम न उठाकर बीजेपी ने इसे बढ़ने दिया। पहलवानों-किसानों और जवानों का आंदोलन इतना अधिक बढ़ा कि दूसरे वर्गों को चिढ़ हो गई। बीजेपी चुपचाप अपने नेताओं को किसानों से पिटते देखते रही। इससे लोगों को लगा कि अगर ये लोग सत्ता में आ गए तो उत्पात और बढ़ जाएगा। बीजेपी की रणनीति यहां काम कर गई। बीजेपी ने अगर किसानो के खिलाफ केस किया होता या उनका उत्पीड़न किया होता तो कांग्रेस के लिए फायदेमंद साबित हुआ होता। चुनाव के अंतिम मौके पर नायब सैनी को सीएम बनाना भी काम कर गया। एंटी इनकंबैंसी के चलते जब बीजेपी नेताओं से कोई सवाल पूछता तो स्थानीय स्तर पर नेता यही कहते दिखे कि सरकार अब बदल गई है। अब सब कुछ हो जाएगा। वहीं सैनी का सौम्य व्यक्तित्व भी काम कर गया। सैनी बड़बोले नेता नहीं हैं। उन्होंने ओबीसी अधिकारों के लिए कई कानून बनाए। कई ऐसी योजनाएं बनाईं जो सीधे आम जनता को फायदा पहुंचाने वाली हैं। ओबीसी वोटों का ध्रुवीकरण भी कराने में भी सैनी को सफलता मिली।
Rajneesh kumar tiwari