जनप्रवाद ब्यूरो, नई दिल्ली। महाराष्ट्र में इन दिनों गुलियन-बैरे सिंड्रोम नामक बीमारी ने कोहराम मचा रखा है। इस रोग से पहली मौत हुई है। गुलियन-बैरे सिंड्रोम जिसके बारे में अधिकतर लोगों को पता ही नहीं है। इस रोग के अब तक पुणे में 101 संदिग्ध केस पाए गए हैं। जिसके बाद स्वास्थ्य विभाग समेत पूरे महाराष्ट्र में हड़कंप मचा हुआ है। सबसे बड़ी बात यह है कि इस बीमारी में प्रयोग आने वाले इंजेक्शन की कीमत 20 हजार रुपये है। वहीं ठीक होेने के लिए 13 से 15 डोज की जरुरत होती है। देश इन दिनों कई प्रकार की गंभीर और संक्रामक बीमारियों की चपेट में है। पहले एचएमपीवी और फिर एच5एन1 (बर्ड फ्लू) के संक्रमण ने स्वास्थ्य विशेषज्ञों की चिंता बढ़ाई। अब महाराष्ट्र के कई शहरों में गिलियन बैरे सिंड्रोम यानी जीबीएस के बढ़ते मामलों ने लोगों को डरा दिया है। महाराष्ट्र पहले से ही बर्ड फ्लू के संक्रमण से परेशान था, इसी बीच जीबीएस की एंट्री ने स्वास्थ्य क्षेत्र पर अतिरिक्त दबाव बढ़ा दिया है। गिलियन बैरे सिंड्रोम को लेकर सामने आ रही हालिया जानकारियों के मुताबिक पुणे में एक मरीज मौत हो गई है, जो महाराष्ट्र में इस बीमारी से होने वाली पहली संदिग्ध मौत है। पुणे में 100 से अधिक लोगों में जीबीएस के मामले दर्ज भी किए गए हैं। विभिन्न अस्पतालों में इलाज करा रहे इन मरीजों में से करीब 16 वेंटिलेटर सपोर्ट पर हैं। राज्य स्वास्थ्य विभाग द्वारा किए गए विश्लेषण से पता चलता है कि करीह 19 मरीज 9 वर्ष से कम उम्र के और करीब 10 मरीज 65-80 की आयु वाले हैं। इससे स्पष्ट होता है कि ये बीमारी बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक सभी को प्रभावित कर रही है। बता दें कि जून 2021 में जब कोविड की दूसरी लहर चल रही थी उसी दौरान कई देशों में गिलियन बैरे सिंड्रोम के मामलों को लेकर भी चर्चा तेज हो गई थी। वैज्ञानिकों ने एक अध्ययन में बताया था कि आॅक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका वैक्सीन के साइड-इफेक्ट्स के रूप में कुछ लोगों में गुलियन-बैरे सिंड्रोम की समस्या देखी जा रही है। हालांकि बाद में कुछ अन्य अध्ययनों में वैक्सीनेशन के इस दुष्प्रभाव को नकारा गया था। गिलियन बैरे सिंड्रोम एक ऐसी स्थिति है जिसमें आपके ही शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली तंत्रिकाओं पर अटैक कर देती है। इस वजह से मरीजों को कमजोरी, सुन्न होने या फिर लकवा मारने जैसे दिक्कतें हो सकती हैं। स्वास्थ्य विशेषज्ञ जीबीएस की समस्या को मेडिकल इमरजेंसी के तौर पर देखते हैंजिसमें रोगी को तुरंत उपचार की आवश्यकता होती है। इलाज न मिलने पर जान जाने का भी खतरा हो सकता है। क्लीवलैंड क्लिनिक की रिपोर्ट पर नजर डालें तो पता चलता है कि दुनियाभर में हर साल लगभग एक लाख लोगों को ये समस्या होती है। ये दिक्कत क्यों होती है इसका सटीक कारण अभी तक ज्ञात नहीं है। अगर समय पर रोग का इलाज हो जाए तो इससे आसानी से ठीक हो सकते हैं। वहीं इसका महंगा इलाज समस्या का प्रमुख कारण है। रिपोर्ट के अनुसार मरीज को ठीक होेने के लिए कोर्स की आवश्यकता होती है। एक बार के इंजेक्शन की कीमत 20 हजार रुपये होती है। मरीज को पूरी तरह स्वस्थ होने के लिए पूरा कोर्स करना पड़ता है यानी 13 से 15 इंजेक्शन लगवाने पड़ते हैं।
Rajneesh kumar tiwari