नई दिल्ली। 14 मार्च को एक देश एक चुनाव को लेकर बनाई गई कमेटी ने अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति को सौंप दी। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंपी गई 18000 से ज्यादा पन्नों की रिपोर्ट बेहद खास रही। ऐसे में यह जानना जरूरी है कि आखिरकार इस रिपोर्ट को राजनीतिक जानकार अहम क्यों बता रहे हैं। इस रिपोर्ट के लागू होने से देश और लोकतांत्रिक व्यवस्था में क्या बदलाव आएगा। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली उच्च स्तरीय समिति ने अपनी रिपोर्ट में कई अहम बातें कहीं। रिपोर्ट में कहा गया कि एक साथ चुनाव कराए जाने से विकास प्रक्रिया और सामाजिक एकजुटता को बढ़ावा मिलेगा। साथ ही लोकतांत्रिक परंपरा की नींव गहरी होगी और इंडिया जो कि भारत है की आकांक्षाओं को साकार करने में मदद मिलेगी। उच्च स्तरीय समिति ने वन नेशन वन इलेक्शन के मुद्दे पर 62 राजनीतिक दलों से संपर्क किया था। जिसमें 47 राजनीतिक दलों ने जवाब दिया। इसमें 32 पार्टियों ने एक साथ चुनाव कराने के विचार का समर्थन किया। वहीं 15 राजनीतिक दलों ने इसका विरोध किया। समिति की ओर से सौंपी गई रिपोर्ट में कई बड़ी बातों का जिक्र किया गया है।
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सरकार ने बनाई समिति
देश में लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ हो सकते हैं या नहीं, यह पता लगाने के लिए केंद्र ने पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में समिति का गठन किया। इस समिति ने भारत की चुनावी प्रक्रिया का अध्ययन किया। गौरतलब है कि वन नेशन वन इलेक्शन के बारे में करीब 40 वर्षों पहले 1983 में पहली बार चुनाव आयोग ने सुझाव दिया था। इसके बाद 2023 में सरकार ने इस कदम की संभावनाएं और व्यहार्यता तलाशने के लिए कमेटी बनाई। भारत में फिलहाल राज्यों के विधानसभा और देश के लोकसभा चुनाव अलग-अलग समय पर होते हैं। वन नेशन वन इलेक्शन का मतलब है कि पूरे देश में एक साथ ही लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव हों। यानी मतदाता लोकसभा और राज्य के विधानसभाओं के सदस्यों को चुनने के लिए एक ही दिन, एक ही समय पर या चरणबद्ध तरीके से अपना वोट डालेंगे। आजादी के बाद 1952, 1957, 1962 और 1967 में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ ही होते थे, लेकिन 1968 और 1969 में कई विधानसभाएं समय से पहले ही भंग कर दी गईं। उसके बाद 1970 में लोकसभा भी भंग कर दी गई। इस वजह से एक देश-एक चुनाव की परंपरा टूट गई। अब यह टूटी हुई कड़ी फिर से जुड़ जाएगी।
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191 दिन में तैयार हुई रिपोर्ट
कोविंद कमेटी ने करीब 191 दिन में यह रिपोर्ट तैयार की है। इसे तैयार करने के लिए कई विशेषज्ञों से बात की गई। सलाह-मशविरा करने के बाद पूरी रिपोर्ट बनाई गई है। रिपोर्ट में कई बड़ी सिफारिशें की गईं हैं।
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समिति ने की कई बातों की सिफारिश
पूर्व राष्ट्रपति की अध्यक्षता वाली कमेटी ने पहले कदम के तहत लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराने की सिफारिश की है। साथ ही इसके बाद 100 दिनों के भीतर एक साथ स्थानीय निकाय चुनाव कराने की भी सिफारिश की है। इस समिति ने अपनी सिफारिशों में कहा कि त्रिशंकु स्थिति या अविश्वास प्रस्ताव या ऐसी किसी स्थिति में नयी लोकसभा के गठन के लिए नए सिरे से चुनाव कराए जा सकते हैं। इस स रिपोर्ट में कहा गया है कि लोकसभा के लिए जब नए चुनाव होते हैं, तो उस सदन का कार्यकाल ठीक पहले की लोकसभा के कार्यकाल के शेष समय के लिए ही होगा। जब राज्य विधानसभाओं के लिए नए चुनाव होते हैं, तो ऐसी नई विधानसभाओं का कार्यकाल -अगर जल्दी भंग नहीं हो जाएं तो लोकसभा के पूर्ण कार्यकाल तक रहेगा।
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करना होगा संविधान में संशोधन
समिति ने कहा कि इस तरह की व्यवस्था लागू करने के लिए, संविधान के अनुच्छेद 83 (संसद के सदनों की अवधि) और अनुच्छेद 172 (राज्य विधानमंडलों की अवधि) में संशोधन की आवश्यकता होगी। समिति ने कहा इस संवैधानिक संशोधन की राज्यों द्वारा पुष्टि किए जाने की आवश्यकता नहीं होगी। समिति ने संवैधानिक संशोधन की भी सिफारिश की है ताकि लोकसभा, सभी राज्य विधानसभाओं और स्थानीय निकायों के चुनाव 2029 तक हो सकें। यह भी सिफारिश की गई है कि कि भारत निर्वाचन आयोग राज्य चुनाव अधिकारियों के परामर्श से एकल मतदाता सूची और मतदाता पहचान पत्र तैयार करे। समिति ने कहा कि इस उद्देश्य के लिए मतदाता सूची से संबंधित अनुच्छेद 325 को संशोधित किया जा सकता है। फिलहाल, भारत निर्वाचन आयोग पर लोकसभा और विधानसभा चुनावों की जिम्मेदारी है, जबकि नगर निकायों और पंचायत चुनावों की जिम्मेदारी राज्य निर्वाचन आयोगों पर है। समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा, अब, हर साल कई चुनाव हो रहे हैं। इससे सरकार, व्यवसायों, कामगारों, अदालतों, राजनीतिक दलों, चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों और बड़े पैमाने पर नागरिक संगठनों पर भारी बोझ पड़ता है। इसमें कहा गया है कि सरकार को एक साथ चुनाव प्रणाली लागू करने के लिए कानूनी रूप से व्यवहार्य तंत्र विकसित करना चाहिए। एक आधिकारिक बयान में कहा गया है कि संविधान के मौजूदा प्रारूप को ध्यान में रखते हुए समिति ने अपनी सिफारिशें इस तरह तैयार की हैं कि वे संविधान की भावना के अनुरूप हैं और उसके लिए संविधान में संशोधन करने की नाममात्र जरूरत है।
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एक साथ चुनाव को लेकर आशंकाएं
यह सही है कि वर्ष 1951-52, 1957, 1962 और 1967 में लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव एक साथ हुए। लेकिन आज परिस्थितियां बिल्कुल वैसी नहीं हैं। एक साथ चुनाव की व्यवहार्यता पर सवाल उठ रहे हैं कि यदि एक साथ चुनाव होते हैं तो पहले चुनाव में उन विधानसभाओं का क्या होगा जिनका निर्धारित कार्यकाल या तो चुनाव कराने की प्रस्तावित तिथि से पहले या बाद में समाप्त होता है। यह भी सवाल है कि क्या लोकसभा और विधानसभाओं का कार्यकाल तय होना चाहिए? यदि कार्यकाल के बीच में उपचुनाव की आवश्यकता पड़ी तो क्या होगा? यदि सत्तारूढ़ दल या गठबंधन लोकसभा या विधानसभाओं में कार्यकाल के बीच बहुमत खो देता है तो क्या होगा? चूंकि परिस्थितियां बदलती रहती हैं और एक धारणा को पकड़कर बैठे रहने से जड़ता आती है, इसलिए नई सभावनाओं की तलाश के रास्ते सदैव खुले रहने ही चाहिए।
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समिति में कौन-कौन है?
वन नेशन-वन इलेक्शन को साकार करने के लिए यह समिति पिछले साल 2 सितंबर को गठित की गई थी। इसका अध्यक्ष पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को बनाया गया। इसमें गृहमंत्री अमित शाह, पूर्व राज्यसभा सदस्य गुलाम नबी आजाद, पंद्रहवें वित्त आयोग के अध्यक्ष रहे एनके सिंह, सुभाष सी कश्यप, हरीश साल्वे, संजय कोठारी सदस्य हैं। विशेष आमंत्रित सदस्य अर्जुन राम मेघवाल और सचिव नितेन चंद्र शामिल किया गया है।
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एक साथ चुनाव कराने से फायदा
उम्मीद जताई जा रही है कि लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जाने से जनता का पैसा बचेगा। प्रशासनिक व्यवस्था और सुरक्षा बलों पर बोझ कम पड़ेगा। सरकारी नीतियों का समय पर कार्यान्वयन हो सकेगा और प्रशासनिक मशीनरी चुनावी कार्यक्रम के बजाय विकास कार्यों में ज्यादा समय दे पाएगी।
सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में वृद्धि
इस बात के प्रमाण हैं कि राष्ट्रीय और राज्य दोनों स्तरों पर वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि एक साथ चुनाव के बाद गैर-एक साथ चुनाव के एपिसोड की तुलना में अधिक थी, जबकि मुद्रास्फीति कम थी। ये प्रभाव आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण हैं। रिपोर्ट में पाया गया है कि राजकोषीय घाटा और सार्वजनिक व्यय अधिक है और एक साथ चुनाव प्रकरणों के बाद सार्वजनिक व्यय राजस्व के सापेक्ष पूंजी की ओर झुक जाता है। रिपोर्ट में समग्र निवेश को अपेक्षाकृत अधिक पाया गया है और समकालिक चुनाव के आसपास तुलनात्मक रूप से बेहतर सामाजिक और शासन परिणामों के लिए कुछ सुझाव भी दिए गए हैं।
Rajneesh kumar tiwari