जनप्रवाद ब्यूरो, नई दिल्ली। चंद्रमा पर जाने की चाह रखने वालों के लिए बड़ी खबर आई है। नासा को पहली बार यहां गुफाओं और लावा ट्यूब के नेटवर्क मिले हैं। यह खोज वैज्ञानिकों के लिए बेहद उत्साह बढ़ाने वाली है। ये चंद्रमा पर जाने वाले इंसानों के लिए रहने का एक सुरक्षित ठिकाना बन सकती है। चंद्रमा पर बसने की तैयारी कर रहे लोगों के लिए सबसे बड़ी दिक्कत वहां सूर्य से आने वाले हानिकारक विकरणों से निपटना है। इसके लिए वैज्ञानिक कई तरह के उपाय करते हैं। दुनिया की कई अंतरिक्ष एजेंसिया इसका स्थाई समाधान तलाशने की दिशा में भी काम कर रही है। इनमें से कुछ वहां मजबूत इमारतें बनाने के इरादे भी शामिल हैं। अब नासा के अंतरिक्ष यान ने चंद्रमा की ऐसी तस्वीरें हासिल की हैं जो वैज्ञानिकों के लिए बेहद उत्साहजनक हैं। नासा के वैज्ञानिकों को चंद्रमा की सतह के नीचे लावा ट्यूब और उससे जुड़ी गुफाओं के नेटवर्क के सबूत मिले हैं। कई वैज्ञानिकों का कहना है कि ये गुफाएं वहां जाने वाले इंसानों की कई समस्याओं का एक साथ समाधान कर सकती हैं। वैज्ञानिकों ने नासा के एलआरओ लूनर रिकॉनिसेंस आर्बिटर और एलआरओ से कई तरह के आंकड़े प्राप्त किए हैं। इन आंकड़ों का इस्तेमाल करने वाले वैज्ञानिकों की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने चंद्रमा की सतह के नीचे गुफाओं के ये सबूत खोजे हैं। खास बात यह है कि यह गड्ढा मैरे ट्रैंक्विलिटैटिस इलाके में चंद्रमा पर पहले मानव लैंडिंग स्थल से 230 मील उत्तर पूर्व में मौजूद है। गुफा की पूरी सीमा का तो पता नहीं चला है। अनुमान जताया गया है कि यह गुफा कई मील तक फैली हो सकती है। इसकी गुंजाइश बहुत अधिक है। इस खोज की सबसे खास बात यह है कि यह चन्द्रमा पर जाने वालों के लिए काफी उम्मीदें जगाने वाली है। वैज्ञानिकों को दशकों से संदेह था कि चंद्रमा पर भी पृथ्वी की तरह ही सतह के नीचे गुफाएं मौजूद हैं। अब नासा के लूनार आर्बिटर से मिली तस्वीरों में ऐसे गड्ढों का खुलासा हुआ है। बता दें कि लूनार आर्बिटर से मिली तस्वीरे बेहद काम की हैं। नासा ने तस्वीरों की मदद से ही अपोलो मानव लैंडिंग से पहले चंद्रमा की सतह का मैप बनाया है। 2009 में जापान एयरोस्पेस एक्सप्लोरेशन एजेंसी के कागुया आर्बिटर द्वारा ली गई तस्वीरों से भी एक गड्ढे की पुष्टि हुई थी। सतह की तस्वीरों और थर्मल मापों के माध्यम से इन गड्ढों की पहचान हुई थी। किसी को यह उम्मीद नहीं थी कि यही गड्ढे आपस में एक नेटवर्क के जरिए भी जुड़े हो सकते हैं। अगर ऐसा है तो चंद्रमा पर ये बहुत सारी संभावनाओं को पैदा करने वाली खोज साबित होगी। नासा के गोडार्ड स्पेस फ्लाइट सेंटर में स्थित एलआरओ परियोजना वैज्ञानिक नोआ पेट्रो ने इस पर बयान दिया। उन्होंने कहा कि अब डेटा के विश्लेषण से हमें पता चलता है कि ये गुफाएं कितनी दूर तक फैली हो सकती हैं। इससे चंद्रमा पर हो रहे शोधकार्य और भविष्य के अभियानों में भी बदलाव देखने को मिल सकता है।
Rajneesh kumar tiwari