नई दिल्ली। 12 मार्च को अचानक मनोहर लाल खट्टर ने हरियाणा के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। जिसके बाद पूरी कैबिनेट ही भंग हो गई। चंडीगढ़ में हुई विधायक दल की बैठक में नायब सिंह सैनी को राज्य का नया मुखिया चुना गया। हरियाणा में इतनी तेजी से सियासी उलटफेर हुआ है, जिसकी शायद ही किसी ने कल्पना की थी। अब सवाल उठता है कि हरियाणा की राजनीति में ऐसा क्या हो गया कि मुख्यमंत्री को बदलना जरूरी हो गया था। हरियाणा में बीजेपी ने नेतृत्व परिवर्तन कर दिया। किसी भी राज्य में अचानक सीएम बदलकर यूं तो बीजेपी पहले भी कई बार चौंका चुकी है लेकिन हरियाणा में बीजेपी द्वारा किया गया परिवर्तन इसलिए ज्यादा चौंकाने वाला है क्योंकि पीएम नरेंद्र मोदी ने मनोहर लाल खट्टर के इस्तीफे के एक दिन पहले यानी 11 मार्च को गुरुग्राम में एक कार्यक्रम में उनकी जमकर तारीफ की थी। अगले ही दिन यानी सोमवार को उन्होंने इस्तीफा देना पड़ा। बता दें कि पीएम नरेंद्र मोदी ने गुरुग्राम में द्वारका एक्सप्रेसवे के उद्घाटन कार्यक्रम में मनोहर लाल खट्टर की बाइक पर रोहतक से गुरुग्राम के सफर का जिक्र करते हुए कहा कि यहां कभी छोटे रोड हुआ करते थे लेकिन अब तस्वीर बदल रही है। पीएम खट्टर की तारीफ करते हुए कहा था कि आज हरियाणा का भविष्य सीएम खट्टर के नेतृत्व में सुरक्षित है।
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एक तीर से दो निशाने
दिल्ली में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने सीटें आपस में बांट लीं लेकिन पंजाब में दोनों अलग अलग लड़ रहे हैं। दोनों दल नहीं चाहते कि किसी तीसरे को एंट्री पंजाब की सियासत में मिले। क्या कुछ ऐसा ही फॉर्मूला भाजपा ने हरियाणा में अपनाया। राजनीतिक जानकार मानते हैं कि दुष्यंत चौटाला की पार्टी से दूरी बनाना और अपनी ही पार्टी की सरकार के मुख्यमंत्री को बदलना। इसमें एक तीर से दो निशाने साधे गए हैं। एक निशाना सत्ता विरोधी हवा को कंट्रोल करना और दूसरा निशाना दुष्यंत चौटाला को अकेले मैदान में छोड़कर कांग्रेस के जाट वोट का हिस्सा अकेले पाने से रोकना था। अगर पूरे जाट वोट अकेले कांग्रेस मिल जाते तो भाजपा के लिए 10 सीटें जीतना आसान नहीं था। हरियाणा के गणित को समझें तो राज्य में गैरजाट 75 और जाट 23 प्रतिशत से ज्यादा हैं। हरियाणा में जाट राजनीतिक रूप से भी प्रभावी रहे हैं। राज्य की 90 विधानसभा सीटों में से कम से कम 40 सीटों पर जाटों का सीधा प्रभाव है। 2014 के विधानसभा चुनाव में जाटों ने भाजपा को एकतरफा वोट दिया। वहीं 2019 विधानसभा चुनावों में मामला उल्टा पड़ गया। जाटों का वोट कांग्रेस, जेजेपी और आईएनएलडी को गया।
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चौटाला के अलगाव का फायदा
दुष्यंत चौटाला के अलग चुनाव लड़ने से जाट वोटों में सेध पड़ेगी। इससे जाट एक तरफा भूपेंद्र हुड्डा की अगुवाई वाली कांग्रेस को नहीं मिलेंगे। इससे बीजेपी को फायदा होगा। यहां सबसे बड़ा सवाल है कि अगर हरियाणा में भाजपा और जेजेपी का गठबंधन रहता तो चौटाला को जाटों का वोट क्यों नहीं मिलता। इसका जवाब है कि चाहे जाट आरक्षण हो या महिला पहलवानों का मुद्दा हो हरियाणा के जाटों के मन में बीजेपी को लेकर बहुत नाराजगी है। ओमप्रकाश धनखड़ को हरियाणा बीजेपी के अध्यक्ष पद से हटाए जाने के बाद से ये नाराजगी और बढ़ गई। धनखड़ उन लोगों में शामिल रहे हैं जिन्होंने बीजेपी को हरियाणा में मजबूत करने के लिए सबसे अधिक मेहनत की। धनखड़ ही नहीं, कैप्टन अभिमन्यू, कद्दावर जाट नेता और सर छोटू राम के नाती चौधरी वीरेंद्र सिंह और उनके पुत्र पूर्व आइएएस अधिकारी चौधरी बिजेंद्र सिंह को भी किनारे लगा दिया गया। फिलहाल कुछ दिनों पहले ही चौधरी बिजेंद्र सिंह ने कांग्रेस ज्वाइन कर ली है। इससे जाट वोटों का एकतरफा कांग्रेस की ओर झुकाव होने का खतरा था।
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चुनाव से पहले बड़ा दांव
लोकसभा चुनावों से पहले बीजेपी ने हरियाणा में बड़ा दांव चल दिया है। बीजेपी ने यह अपना पुराना प्रयोग किया। इस प्रयोग को भाजपा कई बार आजमा चुकी है। बता दें कि गुजरात में मुख्यमंत्री बदला और चुनाव में जीत मिली। त्रिपुरा में मुख्यमंत्री बदला और चुनाव बीजेपी जीती। उत्तराखंड में तो दो-दो सीएम बदले, जीत बीजेपी की हुई। इसके अलावा भाजपा जेजेपी से छुटकारा पाना चाहती थी। जेजेपी और भाजपा के बीच सालों से टकराव की खबरें आ रही थीं। हरियाणा में भाजपा-जजपा के गठबंधन टूटने की अटकलें पिछले एक साल से चल रही थीं। भाजपा अपनी सहयोगी पार्टी जजपा से गठबंधन तो तोड़ना चाहती थी, मगर उसे कोई ठोस कारण व मौका नहीं मिल पा रहा था। यहां देखने वाली बात यह है कि कोरोना काल में मनोहर लाल सरकार पर पहली बार घोटाले का आरोप लगा। इसके बाद रजिस्ट्री घोटाले का आरोप लगा। इसको लेकर विधानसभा में भी कई बार हंगामा हुआ। दोनों महत्वपूर्ण विभाग जेजेपी के दुष्यंत चौटाला के पास थे। इससे सरकार की छवि खराब हुई। विपक्ष भी जजपा के बजाय भाजपा पर निशाना साधता था। विपक्ष आरोप लगाता था, मगर भाजपा चुप्पी साध लेती थी। यहां तक कि इन घोटालों की रिपोर्ट अब तक सामने नहीं आई है। पार्टी के कई विधायक भी पार्टी नेतृत्व के सामने जजपा के साथ गठबंधन रखने पर नाराजगी जता चुके थे। वहीं, पार्टी प्रभारी बिप्लब कुमार देब ने भी कई मौकों पर इस बात के संकेत दे दिए थे कि भाजपा राज्य में अकेले ही चुनाव लड़ेगी और किसी के साथ गठबंधन में नहीं रहेगी। दुष्यंत चौटाला कम से कम दो लोकसभा सीट मांग रहे थे। वहीं भाजपा किसी हाल में जजपा को दो सीटें देने के पक्ष में नहीं थी। ऐसे में यह तय किया गया कि मनोहर लाल सरकार का इस्तीफा दिलाकर गठबंधन को खत्म किया जाए। ऐसे में अब यह देखना दिलचस्प होगा कि हरियाणा में मुख्यमंत्री बदलने से बीजेपी को कितना फायदा होगा।
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दुष्यंत को बर्खास्त नहीं करना चाहती थी बीजेपी
सूत्रों की मानें तो बीजेपी दुष्यंत चौटाला को बर्खास्त नहीं करना चाहती थी। इससे गलत राजनीतिक संदेश जाता। इसीलिए पूरी कैबिनेट का इस्तीफा हुआ। एक बार फिर से कैबिनेट का गठन हुआ। इसमें कई नए चेहरे मंत्री बने।
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कांग्रेस के कार्ड को ओबीसी से जवाब
बीजेपी ने हरियाणा में ओबीसी वर्ग से आने वाले नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री बनाकर एक और पिछड़े वर्ग के नेताओं को सीएम लिस्ट में शामिल कर दिया । वहीं देश के चुनाव में जब कांग्रेस जाति गणना की मांग के साथ पिछड़ों को आरक्षण देने का वादा करती है। तब बीजेपी जरूर इस बात को याद कराएगी कि कांग्रेस ने देश में कितने ओबीसी सीएम बनाए और बीजेपी ने कितने ? आंकड़ों को देखा जाएग तो बीजेपी ने अब तक जितने मुख्यमंत्री बनाए हैं, उनमें से 30.9 फीसदी ओबीसी हैं। वहीं कांग्रेस द्वारा बनाए गए मुख्यमंत्रियों में सिर्फ 17.3 फीसदी ओबीसी हैं। अन्य दलों के लिए ये आंकड़ा 28 फीसदी है।
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खट्टर सरकार में मंत्री थे नायब सिंह
नायब सैनी 25 जनवरी 1970 को अंबाला के गांव मिजार्पुर माजरा में सैनी परिवार में जन्मे थे। वे बीए और एलएलबी हैं। सैनी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े हैं। सैनी ओबीसी समुदाय से आते हैं। उन्हें संगठन में काम करने का लंबा अनुभव है। वे साल 2002 में युवा मोर्चा बीजेपी अंबाला से जिला महामंत्री बने। इसके बाद साल 2005 में युवा मोर्चा भाजपा अंबाला में जिला अध्यक्ष रहे। सैनी 2009 में किसान मोर्चा भाजपा हरियाणा के प्रदेश महामंत्री भी रहे। 2012 में वे अंबाला भाजपा के जिला अध्यक्ष बने। आरएसएस के समय से सैनी को मनोहर लाल का करीबी माना जाता है। सूत्र बताते हैं कि सीएम ने ही उन्हें कुरुक्षेत्र से टिकट देने की पैरवी की थी। नायब सिंह ने 2009 में अंबाला के नारायणगढ़ निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ा था, लेकिन कुल 1,16,039 वोटों में से 3,028 वोट हासिल कर रामकिशन गुर्जर से हार गए थे। 2014 में उन्होंने 24,361 वोटों से इसी क्षेत्र से चुनाव जीता था, जिसके बाद वे प्रदेश सरकार में 24 जुलाई 2015 से तीन जून 2019 तक राज्यमंत्री भी रहे। उन्होंने प्रदेश में श्रम एवं रोजगार मंत्री स्वतंत्र प्रभार के अलावा खान एवं भू विज्ञान मंत्री व नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्री के तौर पर भी कार्यभार संभाला।
हरियाणा का नया मंत्रिमंडल किसे मिला कौन सा विभाग
कैबिनेट मंत्री कंवरपाल को कृषि और किसान कल्याण, पशुपालन, मत्स्य पालन, विरासत और पर्यटन और संसदीय कार्य विभाग मिला। कैबिनेट मंत्री मूलचंद शर्मा को उद्योग और वाणिज्य, श्रम, खाद्य नागरिक आपूर्ति और उपभोक्ता मामले विभाग दिए गए। रणजीत सिंह को ऊर्जा और जेल विभाग मिला है जो खट्टर सरकार में भी उनके पास ही था। बता दें कि सैनी ने 12 मार्च को हरियाणा के नए मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थी। उसी दिन सैनी के साथ चार भाजपा विधायकों और एक निर्दलीय विधायक ने भी नई मंत्रिपरिषद के सदस्य के रूप में शपथ ली थी। उन्होंने कार्यभार संभालने के एक सप्ताह बाद 19 मार्च को अपने पहले मंत्रिपरिषद विस्तार में आठ भाजपा विधायकों को शामिल किया था जिनमें से सात नए चेहरे थे।
Rajneesh kumar tiwari