जनप्रवाद ब्यूरो, नई दिल्ली। भारत के पड़ोस में एक नया देश बनने जा रहा है। अराकान आर्मी एशिया का नक्शा बदल सकती है। यह घटना 1971 में नए बांग्लादेश बनने जैसी होगी। वहीं नया देश बनने से भारत के पूर्वोत्तर राज्यों पर काफी असर पड़ेगा। इससे चिंताएं बढ़ सकती है। म्यांमार में सैन्य शासन के खिलाफ जंग लड़ने वाली अराकान आर्मी आजादी के उस लक्ष्य हासिल करने के बहुत करीब है, जो कुछ महीने तक असंभव लग रहा था। अराकान आर्मी ने देश के रखाइन प्रांत के 18 में से 15 प्रांतों पर कब्जा कर लिया है। अगर वे पूरे रखाइन राज्य पर कब्जा कर लेते हैं और स्वतंत्रता की घोषणा करते हैं। यह 1971 में बांग्लादेश के निर्माण के बाद एशिया में बनने वाला पहला देश होगा। यूनाइटेड लीग आॅफ अराकान की सैन्य शाखा अराकान आर्मी ने रखाइन के बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया है। अब केवल भारत से वित्तपोषित सिट्टवे बंदरगाह और चीन की मदद से बना क्याऊकफ्यू का गहरे समुद्र का बंदरगाह जुंटा के नियंत्रण में रह गए हैं। साथ ही रखाइन प्रांत में मुनांग शहर भी म्यांमार के सैन्य शासन के हिस्से में बचा है। बता दें कि 2024 के आखिर में अराकान आर्मी रखाइन में स्थित म्यांमार आर्मी की पश्चिम कमांड के मुख्यालय पर कब्जा कर लिया था। इसके साथ ही माउंगडॉ पर भी कब्जा कर लिया। इससे बांग्लादेश से लगी पूरी सीमा पर इसका नियंत्रण हो गया है। रखाइन राज्य के अधिकांश हिस्से पर कब्जा करने वाली अराकान आर्मी ने सैन्य जुंटा से बातचीत पर भी सहमति जताई है। विदेशी हस्तक्षेप से बचने के लिए अराकान आर्मी ने अपने बयान में विदेशी देशों भारत और चीन का आश्वासन दिया है। बयान में कहा गया है कि रखाइन राज्य में उनके निवेश की रक्षा करेगा। इस बयान को चीनी भाषा में भी प्रकाशित किया गया है। जिसमें भारत-बीजिंग के नेतृत्व की प्रशंसा की गई है। इसमें कहा गया है कि अराकान आर्मी सभी विदेशी निवेशों का स्वागत करती है। साथ ही उन्हें मान्यता देती है जो अराकान को लाभ पहुंचाएंगे और इसके विकास और प्रगति में सहायता करेंगे। विश्लेषकों का कहना है कि भारत के पड़ोस में म्यांमार एक नया सीरिया बनता जा रहा है। अराकान आर्मी की बातचीत की पेशकश और विदेशी निवेशकों को आश्वासन रणनीति के तहत दिया गया है। इसकेपीछे असल वजह यह है कि अगर आजादी हासिल होती है तो राजनयिक मान्यताएं मिल जाएं। एशिया और पश्चिम में महत्वपूर्ण देशों से मान्यता के बिना यूएलए का आजाद देश का सपना पूरा नहीं हो सकता है। दूसरी ओर भारत की चिंता है कि म्यांमार के हालात पूर्वोत्तर राज्यों की सुरक्षा के लिए खतरा पैदा कर सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि म्यांमार के रखाइन प्रांत में अराकान आर्मी का दबदबा भारत की परिचालन सुरक्षा और कनेक्टिविटी पहल के लिए बड़ी चुनौतियां पेश करता है। अराकान आर्मी ने भारत की सीमा से सटे कई इलाकों में भी कब्जा जमा लिया है। ऐसे में वे इलाके में रहने वाले अपने विरोधी गुटों को निशाना बना रहे हैं, जिससे सीमवर्ती इलाकों की शांति भंग हो रही है। भारत की चिंता यह भी है कि सीमावर्ती इलाकों में रोहिंग्याओं के घुसपैठ का खतरा और ज्यादा बढ़ गया है। रोहिंग्या अवैध रूप से भारत और बांग्लादेश की सीमा में घुस रहे हैं। उन्हें ढूंढना या वापस भेजना एक टेढ़ी खीर साबित हो रहा है। म्यांमार की सैन्य सरकार रोहिंग्याओं की वापसी के मुद्दे पर कोई स्पष्ट प्रतिक्रिया नहीं दे रही है। ऐसे में समस्या यह है कि अवैध तरीके से घुसे रोहिंग्याओं को किसके हवाले किया जाए।
Rajneesh kumar tiwari