जनप्रवाद ब्यूरो, नई दिल्ली। भारत की ब्रह्मोस मिसाइल के सामने चीन ने घुटने टेक दिए। भारत के ब्रह्मास्त्र से डरकर चीन ने फिलीपींस के साथ समझौता किया है। रक्षा जानकारों का कहना है कि भारत का साथ मिलने से चीन का एक द्वीप पर कब्जा करने का सपना टूट गया। उसे अपने दुश्मन देश से हाथ मिलाना पड़ा। पड़ोसी देशों पर अपनी धाक जमाने की चाह रखने वाले चीन को बड़ा झटका लगा है। ये झटका पड़ोसी देश फिलीपींस ने दिया है। चीन और फिलीपींस के बीच दक्षिण चीन सागर में सबसे विवादित इलाके ‘सेकंड थॉमस शोलस’ को लेकर समझौता हुआ है। इससे अब दोनों देशों के बीच झड़पें खत्म होने की उम्मीद है। दोनों देशों के बीच वार्ता की जानकारी रखने वाले फिलीपींस के दो अधिकारियों ने नाम न छापने की शर्त पर इस सौदे की पुष्टि की। उनका कहना है कि मनीला और बीजिंग ने दक्षिण चीन सागर में एक भयंकर विवादित तट पर टकराव से बचने के लिए समझौता किया है। उनके अनुसार हाल ही में हुई झड़पों ने बड़े संघर्षों की आशंकाओं को जन्म दिया है। अगर युद्ध होता तो इसमें संयुक्त राज्य अमेरिका भी शामिल हो सकता था, क्योंकि अमेरिका ने फिलीपींस को सुरक्षा का पूरा भरोसा दिया है। ऐसे में यह समझौता दोनों देशों के बीच टकराव को टालने के लिए हुआ है। बता दें कि चीन और फिलीपींस के बीच दक्षिण चीन सागर में स्थित ‘सेकंड थॉमस शोलस’द्वीप को लेकर काफी लंबे समय से भयंकर विवाद चल रहा था। इसको लेकर दोनों देशों के बीच तनातनी इतनी बढ़ गई कि फिलीपींस ने चीन को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए भारत से ब्रह्मोस मिसाइल मांगा ली। बस यहीं से इस मामलें में चीन के पीछे हटने की कवायद शुरू हो गई। माना जा रहा है कि कराव से बचने के लिए उसे समझौता करने के लिए मजबूर होना पड़ा। यह सौदा मनीला में फिलिपिनो और चीनी राजनयिकों के बीच बंद कमरे में हुआ। दोनों देशों के राजनयिकों के बीच कई बैठकों और राजनयिक नोट के आदान-प्रदान के बाद मनीला में यह महत्वपूर्ण समझौता हुआ। इसका उद्देश्य किसी भी पक्ष के क्षेत्रीय दावों को स्वीकार किए बिना ऐसी व्यवस्था बनाना है, जो दोनों पक्षों के लिए स्वीकार्य हो। बाद में सरकार ने विवरण प्रदान किए बिना सौदे की घोषणा की और एक बयान जारी किया। फिलीपींस के विदेश मंत्रालय ने कहा कि दोनों पक्ष दक्षिण चीन सागर में तनाव कम करने और मतभेदों को बाचतीव व विचार-विमर्श के जरिए सुलझाने की जरूरत को समझते हैं। मंत्रालय ने कहा कि दोनों पक्ष इस बात पर सहमत हुए हैं कि यह समझौता दक्षिण चीन सागर में एक-दूसरे के रुख पर प्रतिकूल प्रभाव न डाले। बता दें कि दक्षिण चीन सागर के कई द्वीपों और यहां के चट्टानों पर लंबे समय से चीन दावा करता आया है। वहीं फिलीपींस इस सागर में अपने विशेष आर्थिक क्षेत्र के भीतर पारंपरिक मछली पकड़ने के मैदानों पर दावा करता है। फिलीपींस इस क्षेत्र को पश्चिम फिलीपीन सागर भी कहता है। इस मामले में अमेरिका एक पुरानी संधि के कारण फिलीपींस का समर्थन करता है। इस संधि में है कि अगर फिलीपींस पर कोई हमला करना है तोउसे एशिया में अपने सबसे पुराने सहयोगी की रक्षा के लिए आगे आना पड़ेगा। बता दें कि चीन का कई देशों के साथ जमीनी और समुद्री सीमाओं को लेकर विवाद है। जिनमें से कई दक्षिण चीन सागर में हैं। फिलीपींस के साथ इस महत्वपूर्ण समझौते से इस बात की उम्मीद जग सकती है कि बीजिंग अन्य प्रतिद्वंद्वी देशों के साथ इसी तरह की व्यवस्था कर सकता है। जिससे अनसुलझे क्षेत्रीय मुद्दों को लेकर किसी संघर्ष से बचा जा सके। अब यहां यह देखना होगा कि विस्तारवादी चीन फिलीपींस के साथ हुए समझौते को कब तक मानता है।
Rajneesh kumar tiwari