जनप्रवाद ब्यूरो, नई दिल्ली। भारत के पास जल्द ही नेशनल मिलिट्री स्पेस यानी अंतरिक्ष की सेना होगी। भारत ने नेशनल मिलिट्री स्पेस पॉलिसी पर काम शुरू कर दिया है। आगामी तीन महीने में इसके लागू होने की उम्मीद है। इस बात का खुलासा चीफ आफ डिफेंस स्टाफ जनरल अनिल चौहान ने किया। जमीन के बाद भारत अब अंतरिक्ष में भी चीन से दो-दो हाथ करने की तैयारी कर रहा है। चीन के प्रभुत्व को चुनौती देने के लिए भारत एक सैन्य अंतरिक्ष सिद्धांत जारी करने की तैयारी में है। चीफ आफ डिफेंस स्टाफ जनरल अनिल चौहान का कहना है कि यह नीति भविष्य के युद्धों में महत्वपूर्ण होगी। ऐसा इसलिए है क्योंकि चीन अपनी अंतरिक्ष क्षमताओं का तेजी से विस्तार कर रहा है। बता दें कि मिलिट्री स्पेस डॉक्ट्रिन आधिकारिक रणनीतिक रूपरेखा है। जो यह बताती है कि कोई देश रक्षा और सैन्य अभियानों के लिए अंतरिक्ष का उपयोग कैसे करने की योजना बनाता है। यह सशस्त्र बलों, अंतरिक्ष एजेंसियों और रक्षा उद्योग के लिए एक मार्गदर्शक दस्तावेज के रूप में काम करता है। चीफ आफ डिफेंस स्टाफ जनरल अनिल चौहान ने जोर देते हुए कहा कि चीन बहुत तेजी से अपनी क्षमताओं का विस्तार कर रहा है। ऐसे में भारत को अपनी तैयारी तेज करनी चाहिए। जनरल अनिल चौहान ने कहा कि डिफेंस स्पेस एजेंसी यानी डीएसए अगले दो से तीन महीनों में यह डॉक्ट्रिन जारी करेगी। उन्होंने कहा कि भारत को पृथ्वी की कक्षा पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। सैन्य क्षमताएं बढ़ानी चाहिए और इन परिसंपत्तियों को खतरों से सुरक्षित करना चाहिए। जनरल चौहान ने कहा कि हम एक राष्ट्रीय सैन्य अंतरिक्ष नीति पर भी काम कर रहे हैं। जिसका मकसद भारत की अंतरिक्ष-आधारित संपत्तियों की रक्षा करना और नई चुनौतियों से निपटने के लिए सैन्य क्षमताओं को मजबूत बनाना है जनरल चौहान ने आगे कहा कि आज हम एक ऐसे युग के मुहाने पर हैं, जहां अंतरिक्ष क्षेत्र युद्ध के एक नए मैदान के रूप में उभर रहा है। यह युद्ध पर हावी होने जा रहा है। युद्ध के सभी तीन प्राथमिक तत्व (भूमि, समुद्र, वायु) अंतरिक्ष पर निर्भर होंगे। इसलिए, जब हम कहते हैं कि अंतरिक्ष का इन तीन तत्वों पर प्रभाव पड़ने वाला है, तो यह महत्वपूर्ण है कि हम अंतरिक्ष को समझें। यह भविष्य में युद्ध की बुनियादी संरचना का निर्माण करने जा रहा है। बता दें कि इसरो और निजी उद्योग के साथ साझेदारी में सैटेलाइट्स लॉन्च करने जैसी पहलें चल रही हैं। पिछले नवंबर में डीएसए ने अंतरिक्ष अभ्यास झ्र 2024 नाम से तीन दिवसीय युद्धाभ्यास किया था। जिसका मकसद अंतरिक्ष-आधारित परिसंपत्तियों से उत्पन्न और उनके खिलाफ बढ़ते खतरों का पूर्वाभ्यास करना था। इस पर रक्षा मंत्रालय ने बयान जारी किया था। जिसमें कहा गया था कि यह अभ्यास भारत की अंतरिक्ष क्षमताओं को सैन्य अभियानों में एकीकृत करने में मदद करेगा। वहीं इसरो के चेयरमैन जयंत पाटिल का मानना है कि भारत का अंतरिक्ष क्षेत्र एक निर्णायक मोड़ पर है। रक्षा उद्योग इसकी दिशा तय करने में अहम भूमिका निभा रहा है। सरकार के 52 समर्पित सैन्य उपग्रहों के लक्ष्य और निजी भागीदारी को बढ़ाने के प्रयासों से हम एक सुरक्षित, आत्मनिर्भर अंतरिक्ष इकोसिस्टम बना रहे हैं। भारतीय उद्योग पहले ही निगरानी और संचार सैटेलाइट्स, जैमर्स और ट्रैकिंग रडार जैसी तकनीकें विकसित कर चुका है। अब सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों के सहयोग से इनोवेशन को तेज करेगा। इससे अंतरिक्ष के जरिए राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत होगी।
Rajneesh kumar tiwari