जनप्रवाद ब्यूरो, नई दिल्ली। भारतीय स्पेस एजेंसी का पीएसएलवी रॉकेट कई नए प्रयोग लेकर अंतरिक्ष में जाएगा। पोयम-4 के चौथे चरण में अंतरिक्ष में बीज उगाने, कचरा पकड़ने वाले रोबोटिक हाथ और नए प्रोपल्शन सिस्टम का परीक्षण होगा। साथ ही इसरो इस अभियान में यह पता लगाने की कोशिश करेगा कि अंतरिक्ष में जीवन कैसे काम करता है। भारत अब अंतरिक्ष की दुनिया में खोज करने में बहुत आगे निकल गया है। इसी कड़ी में अपना देश एक और कमाल करने जा रहा है। भारत पहली बार स्वदेशी रॉकेट का उपयोग करके जैविक प्रयोगों के लिए अंतरिक्ष में उड़ान भरने जा रहा है। इसरो के पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल के अगले प्रक्षेपण में एक नहीं, बल्कि तीन जैविक प्रयोग किए जाएंगे। जिनमें तीन अलग-अलग जीवित कोशिकाओं को अंतरिक्ष के शून्य में भेजा जाएगा। जिन जीवित कोशिकाओं को अंतरिक्ष में भेजा जाएगा, उनमें पालक, लोबिया और आंत के बैक्टीरिया शामिल हैं। इसरो के चेयरमैन डॉ. एस. सोमनाथ ने बताया कि प्रयोग के दौरान भारतीय जीव विज्ञानी पता लगाएंगे कि अंतरिक्ष के प्रतिकूल वातावरण में जीवित कैसे रहा जा सकता है। अंतरिक्ष के लगभग शून्य गुरुत्वाकर्षण में पालक की कोशिकाएं कैसे प्रदर्शन करती हैं? बंद कैप्सूल में गट बैक्टीरिया को भी अंतरिक्ष में परखा जाएगा। इसके अलावा देखा जाएगा कि लोबिया के बीज और पत्तियां अंतरिक्ष में कैसे अंकुरित होती हैं। इसरो ने प्रयोग को पीएसएलवी आर्बिटल एक्सपेरिमेंटल मॉड्यूल-4 नाम दिया है। यानी इसरो अंतरिक्ष में पोयम यानी कविता लिखने वाला है। यह प्रयोग गगनयान मिशन में मददगार होगा। बता दें कि गगनयान मिशन के तहत भारतीय अंतरिक्ष यात्री को अंतरिक्ष में ले जाने की योजना है। पीएसएलवी का अगला मिशन सी-60 है। यह भी प्रयोगात्मक मिशन है। इसके तहत इसरो पहली बार अंतरिक्ष में दो भारतीय उपग्रहों की डॉकिंग और अनडॉकिंग को अंजाम देगा। अंतरिक्ष स्टेशन के लिए जरूरी डॉकिंग तकनीक दिखाने के लिए चेजर और टारगेट नाम के दो सैटेलाइट भी ले जाएगा। यह मिशन भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए एक बड़ा कदम होगा। पीओईएम यानी पीएसएलवी कक्षीय प्रयोग मॉड्यूल कुल 24 प्रयोग करेगा। इनमें 14 प्रयोग इसरो की अलग-अलग प्रयोगशालाओं के हैं। वहीं 10 प्रयोग निजी विश्वविद्यालयों और स्टार्ट-अप्स के हैं। यह अंतरिक्ष में नई तकनीकों को परखने का एक बड़ा मौका होगा। इसरो अंतरिक्ष में बीज कैसे उगते हैं, यह जानने के लिए भी प्रयोग करेगा। क्रॉप्स नाम के एक विशेष बॉक्स में लोबिया के आठ बीज उगाए जाएंगे। इस बॉक्स में तापमान कंट्रोल रहेगा ताकि बीजों को सही माहौल मिल सके। बता दें कि अंतरिक्ष के शून्य में जीवित चीजों को जीवित रखना एक बहुत ही चुनौतीपूर्ण कार्य है। ऐसा इसलिए है क्योंकि सभी जीवन रक्षक प्रणालियां एक छोटे से सीलबंद बॉक्स में अंतरिक्ष में भेजी जाएगी। यह प्रयोग विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र ने तैयार किया है। इस प्रयोग से अंतरिक्ष में भोजन उगाने की संभावनाओं के बारे में पता चलेगा। मुंबई के एमिटी विश्वविद्यालय का भी एक प्रयोग इस मिशन का हिस्सा है। एपीईएमएस नाम के इस प्रयोग में कम गुरुत्वाकर्षण में पालक के पौधे कैसे बढ़ते हैं, इसका अध्ययन किया जाएगा। कचरा साफ करने के लिए भी एक रोबोटिक हाथ का परीक्षण होगा। वीएसएससी द्वारा विकसित डेब्रिस कैप्चर रोबोटिक मैनिपुलेटर अंतरिक्ष के कचरे को पकड़कर उसे हटाने का काम करेगा। यह प्रयोग अंतरिक्ष में बढ़ते कचरे की समस्या से निपटने में मदद कर सकता है।
Rajneesh kumar tiwari