जनप्रवाद ब्यूरो, नई दिल्ली। संभल की जामा मस्जिद के बाद अब प्रसिद्ध अजमेर ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह को हिंदू संकट मोचन मंदिर होने का दावा किया गया है। अजमेर सिविल न्यायालय पश्चिम ने इस संबंध में वाद भी स्वीकार कर लिया है। इतना ही नहींएएसआई, दरगाह कमेटी और अल्पसंख्यक मामले विभाग को नोटिस भी भेजा है। यूपी के संभल में स्थित जामा मस्जिद के बाद अब राजस्थान के अजमेर में दरगाह शरीफ में सर्वे का रास्ता साफ हो गया है। निचली अदालत ने हिंदू पक्ष की उस याचिका को स्वीकार कर लिया है, जिसमें अजमेर शरीफ दरगाह को हिंदू मंदिर बताया गया है। याचिका हिन्दू सेना के अध्यक्ष विष्णु गुप्ता की ओर से दायर की गई थी। बताया जा रहा है कि हिंदू पक्ष ने याचिका के साथ ही सबूत भी पेश किया गया है। याचिका में उस जगह पर पूजा करने की अनुमति मांगी गई है। साथ ही पुरातत्व विभाग द्वारा सर्वे किए जाने की भी मांग की गई है। यह वाद पहले अलग न्यायालय में पेश किया गया था। इसके बाद मुख्य न्यायालय में स्थानांतरण अर्जी लगाई गई। अब सिविल न्यायालय अजमेर पश्चिम में केस ट्रांसफर किया गया है। वादी विष्णु गुप्ता के वकील रामनिवास विश्नोई और ईश्वर सिंह ने तमाम साक्ष्य और जानकारियां साझा की। जिसमें बताया गया कि दरगाह को बने 800 साल से अधिक हुए हैं। इससे पहले यहां शिव मंदिर था और उसे तोड़कर दरगाह का निर्माण किया गया है। उन्होंने बताया कि हर मंदिर के पास एक कुंड होता है। इस मस्जिद के पास भी कुंड मौजूद है। वादी पक्ष ने 1910 में जारी हुई हर विलास शारदा की पुस्तक का भी हवाला दिया गया है। जिसमें मंदिर को लेकर कई जानकारियां साझा की गई हैं। ऐसे ही कई जानकारियां 38 पन्नो के माध्यम से रखी गई हैं। इसमें मंदिर के पास संस्कृत स्कूल के मौजूद होने का दावा है। यह स्कूल आज भी दरगाह के पास स्थित है। हिन्दू पक्ष ने अदालत से मांग की कि मस्जिद का सर्वे करवाकर हिंदू समाज को उन्हें मंदिर का निर्माण कर पूजा का अधिकार दिया जाए। जस्टिस मनमोहन चंदेल ने इस दावे को स्वीकार करते हुए नोटिस जारी करने की आदेश दिया है। यह नोटिस अजमेर दरगाह कमेटी के साथ ही अल्पसंख्यक मामले विभाग और एएसआई भारतीय पुरातत्व विभाग के नाम जारी किए गए हैं। मामले की अगली सुनवाई 20 दिसंबर को रखी गई है। जिसमें दूसरे पक्ष को सुना जाएगा और इस मामले में अग्रिम कार्रवाई की जाएगी। दूसरी ओर इस मामेल में दरगाह दीवान के उत्तराधिकारी सैयद नसीरुद्दीन चिश्ती का बयान भी सामने आया है। उन्होंने कहा कि यह न्यायालय की प्रक्रिया है। न्यायालय में सबको जाने का अधिकार है। जब न्यायालय में कोई वाद प्रस्तुत किया जाता है, तो एक प्रक्रिया के तहत कोर्ट उसकी सुनवाई करता है। साथ ही संबंधित पार्टियों को नोटिस जारी करता है। चिश्ती ने कहा कि मैं न्यायालय की प्रकिया पर कोई टिप्पणी नहीं करूंगा। उन्होंने कहा कि हर हर दरगाह और मस्जिद को मंदिर होने का दावा करना गलत है। जो विवाद 150-200 साल पुराने हैं, या 1947 से पहले के हैं, उन्हें छोड़ दिया जाए। हाल ही संभल में जो हुआ, वह घटना दुर्भाग्यपूर्ण है। चिश्ती ने आगे कहा 1236 ईसवी में ख्वाजा साहब का इंतकाल हुआ था। तब दरगाह बनी थी। दरगाह में अंग्रेजी हुकूमत के साथ ही हिंदुस्तान के कई राजाओं ने हाजरी दी थी। देश-दुनिया के लोगों की आस्था अजमेर दरगाह में है। एआईएमआईएम के प्रवक्ता काशिफ जुबैरी ने इसका विरोध किया। उन्होंने कहा कि पूरे देश में इस तरह का बॉक्स खुल गया है। इन मामलों में वर्शिप एक्ट 1991 का उल्लंघन हो रहा है। अयोध्या और बाबरी मस्जिद मामला केवल शुरूआत थी। अब जगह-जगह याचिकाएं लग रहीं है। ये याचिकाएं धर्म विशेष को टारगेट करने के लिए राजनीति से प्रेरित हैं।
Rajneesh kumar tiwari