May 8, 2024
बेंगलुरु। 2024 में अभी गर्मी की शुरुआत भी नहीं हुई थी कि आईटी हब कहे जाने वाले बेंगलुरु शहर में भीषण जल संकट पैदा हो गया। एक तरह से देखा जाए तो यह जल संकट चेतावनियों पर समय रहते न चेतने का दुष्परिणाम है। साल 2018 में दक्षिण अफ्रीका के शहर केपटाउन में पानी के भयंकर संकट को देखते हुए दुनिया के जिन 15 शहरों पर शून्य जल स्तर के संकट का खतरा बताया गया था, उनमें भारत के बेंगलुरु का भी नाम था। यह जल संकट महज एक शहर या राज्य के लिए परेशानी नहीं बल्कि आने वाले समय में मानव सभ्यता पर एक भीषण संकट की आहट है। सबसे पहले हम भारत के सिलिकन वैली कहे जाने वाले बेंगलुरु शहर के हालात पर चर्चा करते हैं। इस शहर में जलसंकट इतना गहरा गया कि लोगों को अपनी लाइफस्टाइल तक बदलनी पड़ गई। यहां पैसा खर्च कर बड़ी इमारतें तो बना ली हैं, आलीशान बाथरूमों का निर्माण भी हुआ है, लेकिन उन शावरों से पानी आना ही बंद हो गया। हालात ऐसे हो गए कि लोग आॅफिस तक जाने की स्थिति में नहीं रह गए। लोग वर्क फ्रॉम होम की मांग करते देखे गए। जल संकट को देखते हुए सरकार भी सक्रिय हुई और टैंकरों के जरिए पानी को पहुंचाया गया। सरकार ने सख्ती करते हुए पानी की बर्बादी पर 5000 तक का का जुर्माना भी लगा दिया। ये सबकुछ कर्नाटक के बेंगलुरु में देखने को मिला। हालात इतने खराब हैं कि बेंगलुरु वाटर सप्लाई बोर्ड ने पीने वाले पानी से गाड़ी धोने और पेड़-पौधों में पानी देने पर प्रतिबंध लगा दिया गया। शहर के स्विमिंग पूल भी बंद कर दिए गए। मार्च महीने में बेंगलुरु की जरूरत 2600 एमएलडी (मिलियन लीटर डे) थी लेकिन कावेरी नदी से मात्र 460 एमएलडी पानी ही मिल पाया।
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बेंगलुरु के जल संकट का विश्लेषण
कम होती बारिश और भूजल के स्तर का लगातार गिरना बेंगलुरु की हालत के लिए जिम्मेदार है। बेंगलुरु को 145 लीटर करोड़ पानी कावेरी नदी से मिलता है, 60 करोड़ लीटर बानी बोरवेल से आता है। अब ये दोनों ही स्त्रोत सूख रहे हैं इससे आईटी हब में हाहाकार मच गया। मौसम विभाग का जो अनुमान है, वो भी बेंगलुरु में आए इस महा संकट की तस्दीक करता है। कहा जा रहा है कि कर्नाटक का ये शहर ज्यादा गर्म होता जा रहा है, तापमान असामान्य रूप से बढ़ रहा है। यह जल संकट ऐसे समय पर आया जब मौसम विभाग शहर में असामान्य रूप से ज्यादा तापमान और लू चलने की बात कर रहा है। पानी के टैंकर के सहारे जीवन काटने को मजबूर लोगों की यह कहानी अन्य शहरों के लिए चेतावनी है। अगर अभी नहीं संभले तो कई शहरों का हाल बेंगलुरु जैसा हो सकता है। अनुमान तो ये भी है कि 2040 तक 21 से ज्यादा बड़े शहर पानी के संकट से जूझते नजर आ सकते हैं। ऐसे में हमें समझना होगा कि पानी बचाना और उसका सही इस्तेमाल कितना जरूरी है।
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आबादी ज्यादा, पानी कम
ये चिंता की बात है कि भारत में पूरी दुनिया की 17 फीसदी आबादी रहती है, लेकिन उस अनुपात में जब पानी की बात की जाए तो वो सिर्फ 4 प्रतिशत के करीब बैठता है। हैरानी की बात है कि भारत में पूरी दुनिया का सिर्फ 4 फीसदी शुद्ध जल का स्रोत है। ये आंकड़ा ही बताने के लिए काफी है कि हालात कितने विस्फोटक हैं और डिमांड की तुलना में सप्लाई कम चल रही है।
40 फीसदी आबादी पर संकट
इसी चिंता में अगर नीति आयोग की सीडब्ल्यूएमआई की रिपोर्ट जोड़ दी जाए तो जल संकट और ज्यादा बड़ा दिखने लगेगा। रिपोर्ट के मुताबिक भारत में हर 2 लाख लोगों की मौत होती है, सिर्फ इसलिए क्योंकि उन्हें साफ पानी नसीब नहीं होता। इसी तरह 75 फीसदी घर इस देश में ऐसे चल रहे हैं जहां आज भी पीने का पानी नहीं आता है। 2030 तक तो देश की 40 फीसद आबादी के पास पीने का पानी ही नहीं होगा। ये खतरनाक ट्रेंड बता रहा है कि भारत में जल संकट सिर्फ गंभीर नहीं जानलेवा भी साबित होने वाला है। अभी जो लंबी कतारें दिख रही हैं, वो सिर्फ एक बड़ी और खतरनाक पिक्चर का ट्रेलर है। असल दिक्कतें आने वाले सालों में शुरू होंगी जब मौसम और बदलेगा, ग्लोबल वॉर्मिंग बढ़ेगी और बारिश कम होती जाएगी।
जरूरत बना सबसे बड़ा संकट
अब पीने के पानी की तो भारत में किल्लत बढ़ेगी। हमें ये नहीं भूलना चाहिए देश ग्राउंड वॉटर का जरूरत से ज्यादा दोहन हो रहा है। पूरी दुनिया का 25 फीसदी ग्राउंड वॉटर भारत ही इस्तेमाल कर रहा है। उधर भी 70 फीसदी ग्राउंड वॉटर प्रदूषित बताया जाता है। इस बात की तस्दीक वॉटर क्वालिटी इंडेक्स करता है। जिसके अनुसार भारत 122 में से 120वें पायदान पर आता है, यानी कि पानी की गुणवक्ता जरूरत से ज्यादा ही खराब चल रही है।
सरकार कर रही प्रयास
वैसे सरकार इन सभी संकटों से अवगत है, उसे पता है कि पानी की कमी और कम होता जल स्तर पर आने वाले समय में स्थिति को और ज्यादा बिगाड़ने वाला है। इसी वजह से कई परियोजनाएं केंद्र स्तर पर शुरू की गई हैं। उदाहरण के लिए जल शक्ति अभियान, जल जीवन मिशन, अटल भूजल योजना, अमृत सरोवर, नल से जल स्कीम, नमामी गंगे प्रोग्राम, नेशनल वॉटर पॉलिसी शुरू की जा चुकी हैं। कुछ असर भी जमीन पर हुआ है, लेकिन जब तक और स्पष्ट डेटा सामने नहीं आता है तब कुछ भी कहना मुश्किल है।
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यूएन की चौंकाने वाली रपट
वैश्विक स्तर पर साल 2000 से पूर्व ही जल संकट की समस्या से जूझ रहे देशों में सिंचाई का 52 फीसदी विस्तार हुआ है। इसमें 36 फीसदी हिस्सेदारी भारत की रही है। अमेरिका, जर्मनी, फिनलैंड और चीन के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए अध्ययन में इसका खुलासा हुआ है। अध्ययन में शोधकर्ताओं ने अंतरराष्ट्रीय आंकड़ों, राष्ट्रीय कृषि जनगणना और सरकारी रिपोर्टों की मदद ली है। इनकी मदद से उन्होंने 243 देशों के सिंचाई संबंधी ताजा आंकड़ों का उपयोग किया है।
सिंचाई पर कम खर्च करना होगा पानी
मौजूदा समय में इंसानों के इस्तेमाल के योग्य 90 फीसदी से अधिक जल का उपयोग सिंचाई के लिए किया जा रहा है। कृषि भूमि के करीब 24 फीसदी हिस्से पर सिंचाई की व्यवस्था है, जो दुनिया का करीब 40 फीसदी खाद्य उत्पादित कर रहा है। जर्नल नेचर वाटर में प्रकाशित अध्ययन में यह भी सामने आया कि साल 2000 से 2015 के बीच वैश्विक स्तर पर सिंचाई की व्यवस्था वाले क्षेत्र में 11 फीसदी (3.3 करोड़ हेक्टेयर) की वृद्धि हुई है।
सिंचित कृषि क्षेत्र में इजाफा
जिन क्षेत्रों में सिंचित कृषि भूमि में इजाफा हुआ है उनमें उत्तर-पश्चिम भारत और उत्तर-पूर्व चीन और रूस के क्षेत्र शामिल हैं। चीन (12.8 एमएचए) और भारत (8.5 एमएचए) क्षेत्र इस वर्ग में शामिल हैं। इसके पीछे एक प्रमुख कारण खाद्य आत्मनिर्भरता बनाए रखने के लिए सिंचाई परियोजनाओं में बढ़ता निवेश था। 2015 की बात करें तो भारत में (1.21 करोड़ हेक्टेयर) सिंचाई कृषि क्षेत्र का वस्तार हुआ। इसी तरह पाकिस्तान में यह आंकड़ा करीब 15.3 लाख हेक्टेयर दर्ज किया गया है। अन्य देशों में ब्राजील में 34 लाख हेक्टेयर इंडोनेशिया में नौ लाख हेक्टेयर, पेरू में आठ लाख हेक्टेयर, इटली में तीन लाख हेक्टेयर और फ्रांस में 88 फीसदी यानी दो लाख हेक्टेयर क्षेत्र का विस्तार हुआ है।
Rajneesh kumar tiwari