जनप्रवाद ब्यूरो, नई दिल्ली। धरती के नीचे दबी खानों में सोने का निर्माण कैसे होता है इस रहस्य से पर्दा उठ गया है। आस्ट्रेलियाई वैज्ञानिकों की नई खोजे बताती हैं कि भूकंप से पैदा होने वाली बिजली से इस सोने का निर्माण होता है। इस नई खोज से विज्ञान की दुनिया भी अचंभित है। बता दें कि सोने की चमक हर किसी को अपनी ओर आर्कर्षित करती है। दुनियाभर में इस कीमती धातु की डिमांड है। मानव ने सदियों से सोने को बहुमूल्य माना है। सोने की चमक, रंग और दुर्लभता ने इसे एक मूल्यवान वस्तु में बदल दिया है। सोना अब अर्थव्यवस्थाओं का आधार और धन का प्रतीक बन चुका है। अब इसकी उत्पत्ति को लेकर बड़ी खोज हुई है। नई रिसर्च से धरती के भीतर सोने की डलियों के निर्माण से जुड़ी चौंकाने वाली बात पता चली है। आस्ट्रेलियाई जियोलाजिस्ट्स के अनुसार भूकंप से पैदा हुई बिजली से सोने की डलियां बनती हैं। मेलबर्न की मोनाश यूनिवर्सिटी में हुई रिसर्च प्रकृति भूविज्ञान पर आधारित पत्रिका में छपी है। बता दें कि सोने का निर्माण कैसे होता है, यह जानने की कोशिश काफी समय से होती रही है। स्टडी के मुख्य लेखक क्रिस वोइसी ने इस बारे में पत्रिका से अपने विचार साझाा किया। उनका कहना है कि अभी तक यह माना जाता रहा है कि सोना गर्म, पानी से भरपूर तरल पदार्थों से निकलता है। पृथ्वी की पपड़ी में दरारों से तरल पदार्थ बहने के बाद जब ये पदार्थ ठंडे होते हैं या रासायनिक परिवर्तनों से गुजरते हैं, तो सोना बनता है। स्वर्ण धातु इस प्राकृतिक प्रक्रिया के दौरान अन्य पदार्थों से अलग होकर नया आकार लेता है। बता दें कि यह थ्योरी 144 साल पुरानी है। इसे पीजोइलेक्ट्रिसिटी टेस्ट कहा जा रहा है। पीजोइलेक्ट्रिक प्रभाव की खोज सबसे पहले 1880 में फ्रांसीसी भाइयों और भौतिकविदों जैक्स और पियरे क्यूरी ने की थी। बता दें कि पीजोइलेक्ट्रिसिटी प्रक्रिया तब होती है जब कुछ ठोस पदार्थ यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदल सकते हैं। इसी सिद्धांत पर शोध करते हुए रिसर्चर्स ने नया सिद्धांत प्रतिपादित किया है। इसमें समझने की कोशिश की कि बड़े सोने के टुकड़े यानी डली का निर्माण कैसे होता है। इस दौरान वोइसी की टीम ने भूकंप के दौरान उत्पन्न यांत्रिक तनाव का अध्ययन किया। जिससे सोने की बड़ी डली बनाने के लिए जरूरी विद्युत और रासायनिक परिवर्तन दिखाई दिए। टीम ने भूकंप के दौरान होने वाली स्थितियों को दोहराने की कोशिश की तो वैज्ञानिक हैरान रह गए। इस दौरान क्रिस्टल को सोने से भरपूर तरल पदार्थ में डुबोया गया। इसके बाद मोटर का उपयोग करके इसमें भूंकपीय स्थितियां पैदा की गर्इं। फिर इसके नमूनों का धरती के नीचे माइक्रोस्कोप से अध्ययन किया गया। स्टडी के सह-लेखक एंडी टामकिंस के अनुसार इस प्रयोग के नतीजे आश्चर्यजनक निकले। तनावग्रस्त सतह पर न केवल सोना जमा हुआ बल्कि इसने सोने के नैनोकणों का निर्माण और संचय भी हुआ। नए सोने के कण बनाने के साथ मौजूदा सोने के कणों पर अन्य कण भी जमा हुए। बता दें कि अमेरिकी जियोलाजिकल सर्वे के अनुसार, अब तक 244,000 टन सोना खोजा जा चुका है। इसमें से लगभग 57,000 टन अभी भी भूमिगत भंडार में है।
Rajneesh kumar tiwari