जनप्रवाद ब्यूरो, नई दिल्ली। अमेरिका का बड़ा हिस्सा दुनिया के नक्शे से मिट जाएगा। भूकंपीय इमेजिंग टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करते हुए वैज्ञानिकों ने जमीन के नीचे विशाल संरचनाएं देखीं हैं। इससे जमीन धंस रही है। ट्रंप के देश पर छाए इस भयानक संकट को देखकर वैज्ञानिक भी डरे हुए हैं। हाल ही में टेक्सास यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने नई रिसर्च की है। जिसने अमेरिका की टेंशन बढ़ा दी। शोधकतार्ओं ने पाया है कि अमेरिका के मध्य-पश्चिमी हिस्से के नीचे पृथ्वी की पपड़ी का एक टुकड़ा सक्रिय हो गया है। यह मेंटल यानी अंदरूनी परत की ओर खिंच रहा है। वैज्ञानिकों ने इस प्रक्रिया को क्रैटोनिक थिनिंग नाम दिया है। इस साइंटिफिक प्रक्रिया में पृथ्वी की ऊपरी परत यानी लिथोस्फीयर पतली हो रही है। इससे अमेरिका की धरती का एक बड़ा हिस्सा अंदर की गहराई में डूब रहा है। भूकंपीय इमेजिंग टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करते हुए वैज्ञानिकों ने जमीन के नीचे विशाल संरचनाएं देखीं हैं। इसका प्रभाव भी व्यापक रूप में दिखाई दे रहा है। यह टपकन जैसी लगती हैं। यह संरचना ये बताती हैं कि पपड़ी में बदलाव हो रहा है। शोध के अनुसार यह रिसाव महाद्वीप के प्राचीन क्रेटन यानि धरती की सबसे पुरानी परत के आधार से हो रहा है। यह मेंटल में समा रही है और इसे पहली बार इतने स्पष्ट रूप से देखा गया है। जियो-डायनामिक्स मॉडल का अध्ययन करने पर पता चला है कि यह पूरा मामला मेंटल के गहरे बहाव से जुड़ा है। जो फरालोन प्लेट नाम की एक पुरानी समुद्री प्लेट के कारण हो रहा है। वैज्ञानिकों ने अध्ययन में पाया कि इस प्लेट के नीचे बड़ा बदलाव हो रहा है। वैज्ञानिकों ने शोध के दौरान पाया कि 2 करोड़ साल पहले, फरालोन प्लेट टूट गई थी। उसका कुछ हिस्सा अब भी गहराई में मौजूद है। वही प्लेट लिथोस्फीयर को नीचे खींचने का काम कर रही है। टपकन जैसी विशाल संरचनाएं करीब 640 किलोमीटर यानी 400 मील अंदर तक फैली हैं। ये मिशिगन, नेब्रास्का, अलबामा जैसे राज्यों के नीचे मौजूद हैं। रिसर्च में ये भी पता चला कि मिडवेस्ट के नीचे एक फनल जैसा क्षेत्र है। जो अमेरिका की चट्टानों को अपनी ओर खींचता है और फिर वे धरती की कोर की ओर झुक रही हैं। वैज्ञानिकों का यह अध्ययन पृथ्वी की संरचना को समझने में काफी मददगार साबित हो सकता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि यह भूगर्भीय घटना भले ही खतरनाक और विस्तृत है लेकिन इससे किसी तरह का तात्कालिक खतरा नहीं है। यह प्रक्रिया बहुत धीरे-धीरे होती है। इस रिसर्च से यह समझने में मदद मिली कि पृथ्वी और महाद्वीपों का विकास कैसे होता है। बता दें कि धरती के भीतर का हिस्सा अब भी एक गहरी पहेली बना हुआ है। आंतरिक कोर पृथ्वी की सतह से लगभग 4000 मील नीचे है। कई कोशिशों के बावजूद वैज्ञानिक वहां तक नहीं पहुंच पाए हैं। इसके रहस्यों को समझने के लिए वैज्ञानिक भूकंप से बनने वाली तरंगों यानी शॉकवेव्स का अध्ययन करते हैं, जो पूरे ग्रह में फैलती हैं। पृथ्वी की आंतरिक कोर, तरल बाहरी कोर अपनी गति से घूमता है। अगर यह घूमना बंद हो जाए, तो पृथ्वी निष्क्रिय हो सकती है। मंगल ग्रह की तरह इसमें भी जीवन खत्म हो सकता है। मंगल ग्रह ने अरबों साल पहले अपना चुंबकीय क्षेत्र खो दिया था। आकार में यह बदलाव संभवत: वहां हो सकता है, जहां ठोस आंतरिक कोर का किनारा बाहरी कोर के अत्यधिक गर्म तरल धातु को छूता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि ऐसे में यह भूगर्भीय घटना अमेरिका के लिए खतरनाक साबित हो सकती है। इससे अमेरिका का बड़ा भूभाग तबाह हो सकता है।
Rajneesh kumar tiwari