जनप्रवाद ब्यूरो, नई दिल्ली। सौर मंडल में वैज्ञानिकों ने अजीब गतिविधि देखी है। अनूठी खोज में वैज्ञानिकों ने पाया है कि शनिग्रह और धूमकेतू के बीच मुठभेड़ हुई। जिसका नतीजा यह हुआ कि शनि ने धूमकेतू को सौरमंडल से बाहर का रास्ता दिखा दिया। हमारी पृथ्वी की ओर अक्सर धुमकेतु या उल्कापिंड आते रहते हैं। हमारे ग्रह से टकराने से पहले वैज्ञानिक इन उल्कापिंडों को नष्ट कर देते हैं। ऐसा नहीं है कि इन उल्कापिंडों का हमला केवल पृथ्वी पर होता है। ये अन्य ग्रहों पर भी हमला करते हैं। अब वैज्ञानिकों ने सौर मंडल में शनि ग्रह पर उल्कापिंड के हमले की अजीब गतिविधि देखी है। उन्होंने देखा कि एक धूमकेतु शनि ग्रह के पास से गुजर रहा था। गुरुत्वाकर्षण के कारण दोनों के बीच मुठभेड़ हो गई। इसका नतीजा वह हुआ जो अब तक पहले कभी नहीं देखा गया था। शनि ने धूमकेतु को सौर मंडल से बाहर धकेल कर गजब ही कर डाला। बता दें कि ए 117 यूयूडी नाम के धूमकेतु को टेरेस्ट्रियल इम्पैक्ट लास्ट अर्ल्ट सिस्टम ने 14 जून 2024 को खोजा था। शोधकर्ताओं ने सूर्य के चारों ओर इसकी कक्षा को समझने के लिए 142 अवलोकनों की मदद ली। उन्होंने पाया गया कि धूमकेतु और शनि के बीच नजदीकी मुठभेड़ हुई थी। जिसने धूमकेतु की कक्षा को बदल दिया। इस मुठभेड़ ने शनि ग्रह धूमकेतु को दूर अंतरतारकीय अंतरिक्ष में फेंकने वाला था, लेकिन वह 10,800 किलोमीटर प्रति घंटा की गति से उड़ते हुए सौर मंडल से बाहर निकल गया। अब वह एक अत्यधिक चपटी या अण्डाकार कक्षा में चक्कर लगा रहा है। बता दें कि इससे पहले बृहस्पति ग्रह ने भी एक धूमकेतु को सौर मंडल से बाहर निकलने का प्रयास किया था। 9 दिसंबर, 1980 को एक धूमकेतु बृहस्पति से टकराने वाला था। इसी बीच बृहस्पति ने उसे सौरमंडल से बाहर फेक दिया लेकिन वह पलायन पथ पर आ गया। वहीं से सूर्य की परिक्रमा करने लगा। फिलहाल साइंटिस्ट यह साफ कहने की हालत में नहीं हैं कि ए 117 यूयूडी हमारे ही सौरमंडल का पिंड था या नहीं। जब इस खोज से जुड़ी टीम ने पहली बार बफीर्ले अंतरिक्ष चट्टान का विश्लेषण किया, तो उन्हें लगा कि इसकी कक्षा से यह पता चलता है कि शायद यह हमारे सौर मंडल में घुसपैठ करने वाला उल्कापिंड था। यह रिसर्च एएएस के जर्नल नोट्स में प्रकाशित हुआ। शोधकर्ताओं की टीम ने लिखा कि हमारे नतीजे दर्शाते हैं कि धूमकेतु ए 117 यूयूडी का मामला सी 1980 ई1 (बोवेल) के समान है। जो बताता है कि ग्रहों से टकराने के बाद यह निष्कासन की प्रक्रिया 45 वर्षों बाद हुई है।
Rajneesh kumar tiwari