अयोध्या में 500 साल के इंतजार के बाद रामलला को भव्य आशियाना मिल गया। भगवान श्रीराम की प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम बीते जनवरी में हुआ था। अब इसी तर्ज पर श्रीलंका में सीता मइया की भी प्राण प्रतिष्ठा की जाएगी। इसके लिए सरयू का जल श्रीलंका भेजा जाएगा।
नई मूर्ति की स्थापना की तैयारियां जोरों पर
अयोध्या में भगवान श्रीराम मंदिर के साथ ही श्रीलंका में सीता अम्मन मंदिर का निर्माण कार्य जोरों पर है। जिसमें भारत भी महत्वपूर्ण योगदान कर रहा है। सीता माता की नई मूर्ति की स्थापना के लिए तैयारियों को अंतिम रूप दिया जा रहा है। इस मंदिर में 19 मई को मां जानकी की प्राण प्रतिष्ठा की जाएगी। प्राण प्रतिष्ठा के अनुष्ठान में अयोध्या की सरयू नदी के जल की महत्वपूर्ण भूमिका होगी। इसके लिए श्रीलंका की सरकार ने योगी सरकार से पवित्र सरयू नदी का जल भेजने का अनुरोध किया है।
श्रीलंका भेजा जाएगा 21 लीटर जल
सरयू के पवित्र जल को इकट्ठा करने के लिए सीता अम्मन मंदिर के प्रशासन का एक प्रतिनिधिमंडल 15 मई के बाद भारत आएगा। जिसकी मंजूरी उत्तर प्रदेश सरकार ने दे दी है। सरयू नदी का 21 लीटर पवित्र जल इस महत्वपूर्ण कार्यक्रम के लिए श्रीलंका भेजा जाएगा। जल उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी श्री अयोध्या जी तीर्थ विकास परिषद को सौंपी गई है। मंदिर ट्रस्ट का कहना है कि इस पहल से दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंध मजबूत होंगे और सांस्कृतिक संबंधों को बढ़ावा मिलेगा।
भव्य होगा प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम
सीता माता के भव्य प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में श्रीलंका के राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे और प्रधानमंत्री दिनेश गुणवर्धने भी मौजूद रहेंगे। जबकि भारत की तरफ से आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर मौजूद रहेंगे। बता दें कि सीता अम्मन मंदिर श्रीलंका के नुवारा एलिया की पहाड़ियों में स्थित है। धार्मिक रूप से इतिहास में इसका महत्वपूर्ण स्थान है। ऐसा कहा जाता है कि रामायण में जिस अशोक वाटिका का जिक्र है यह वही है। अशोक वाटिका में ही सीता मइया को रावण ने कैद कर रखा था।
यहीं पहुंचे थे रामदूत हनुमान जी
बताया जाता है कि भगवान श्रीराम के दूत हनुमान जी जब माता सीता की खोज कर रहे थे, तो सबसे पहले वह यहीं पहुंचे थे। इसके बाद उन्होंने माता सीता को प्रभु राम की अंगूठी दिखाई थी। यहीं से लंका कांड की शुरूआत हुई थी। सीता अम्मन मंदिर के पीछे चट्टानों पर हनुमान जी की उपस्थिति के साक्ष्य आज भी मौजूद हैं। जहां उनके पैरों के निशान दिखाई देते हैं। इसके अलावा, सीता नदी के एक किनारे की मिट्टी पीली है, जबकि दूसरे किनारे की मिट्टी काली है। इसे भी हनुमान जी के यहां आने की घटनाओं से जोड़कर देखा जाता है।
Arun kumar baranwal