जनप्रवाद ब्यूरो, नई दिल्ली। पहली बार समंदर की गहराई में डार्क आक्सीजन मिला है। हैरानी वाली बात यह है कि आक्सीजन बिना सूरज की रोशनी और फोटोसिंथेसिस के पैदा हो रहा है। इसे धातु के बॉल्स पैदा कर रहे हैं। वैज्ञानिक इस जगह की खोज करने के बाद से खुद आश्चर्यचकित हैं। वैज्ञानिकों के लिए अंतरिक्ष के साथ ही समुद्री जीवन भी हमेशा खोज का विषय रहा है। ब्रह्मांड की तरह समुद्र भी रहस्यों से भरा हुआ है। अब उत्तरी प्रशांत महासागर के क्लेरियान-क्लिपर्टन जोन में बड़ी खोज हुई है। यहां समंदर की गहराइयों में वैज्ञानिकों को पहली बार डार्क आक्सीजन मिला है। इसे देख वैज्ञानिक हैरान हैं। यहां धातु की छोटे-छोटे नाड्यूल्स मिले हैं। यानी छोटी-छोटी गेंदें। ये गेंदे समंदर की तलहटी में फैली हुई हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि ये गेंदें अपना खुद का आक्सीजन बनाती हैं। जिसे वैज्ञानिकों ने डार्क आक्सीजन का नाम दिया है। धातुओं की ये गेंदें आलू के आकार की हैं। ये एकदम अंधेरे में आक्सीजन पैदा करती हैं। अंधेरे में आक्सीजन की मात्रा पैदा होने के कारण वैज्ञानिक इसे डार्क आक्सीजन नाम कह रहे हैं। समुद्र की इस गहराई में सूरज की रोशनी नहीं पहुंचती है। स्काटिश एसोसिएशन फार मरीन साइंस के वैज्ञानिक एंर्ड्यू स्वीटमैन ने बड़ी जानकारी दी। उन्होंने कहा कि पहले हमें जब यह डेटा मिला तो लगा कि हमारे सेंसर्स खराब हो गए हैं। आजतक किसी ने भी समंदर की तलहटी में ऐसा कुछ नहीं देखा था। बता दें कि समुद्र की इस गहराई में हमेशा आक्सीजन नष्ट होता है। यहां इसके पैदा होेने का पहला मामला देखा गया। इसके बाद हमने इसकी दोबारा पूरी जांच की तो पता चला वास्तव में यहां आक्सीजन बन रही थी। एंर्ड्यू और उनकी टीम की ग्राउंडब्रेकिंग स्टडी रिपोर्ट नेचर जियोसाइंस में 22 जुलाई 2024 को प्रकाशित हुई है। ये धातु की गेंदें इलेक्ट्रोलाइसिस के जरिए आक्सीजन का प्रोडक्शन कर रही हैं। यानी इलेक्ट्रिक चार्ज की मौजूदगी में आक्सीजन और हाइड्रोजन को एक दूसरे से अलग कर रही हैं। अब आप पूछेंगे कि समंदर के अंदर इलेक्ट्रिक चार्ज कहां से आया। आपको बता दें कि इन मेटल नाड्यूल्स के अंदर मौजूद मेटल आयन जब इलेक्ट्रान्स का बंटवारा करते हैं, तो उसमें से इलेक्ट्रिकल चार्ज निकलता है। ये पालीमेटालिक नाड्यूल्स हैं। ये 10 से 20 हजार फीट की गहराई में मौजूद हैं। बता दें कि क्लेरियान-क्लिपर्टन जोन में समंदर के अंदर का मैदानी इलाका है। हवाई और मेक्सिको के बीच यह करीब 45 लाख वर्ग किलोमीटर के इलाके में फैला है। डार्क आक्सीजन की खोज 13 हजार फीट की गहराई में हुई है। यहां पर लहरें नहीं होती। सूरज की रोशनी भी नहीं पहुंच पाती है। ऐसे क्षेत्र में प्राकृतिक तरीके से आक्सीजन का पैदा होना वास्तव में आश्चर्यजनक है।
Rajneesh kumar tiwari