नई दिल्ली। नासा द्वारा लाए गए एस्टेरायड बेन्नू के सैंपल से हैरान करने वाला खुलासा हुआ है। जांच में पता चला है कि इस एस्टेरायड का निर्माण किसी समुद्री ग्रह से अलग होने से हुआ था। एक समय इस उल्कापिंड पर पानी भरा था। वहीं बेन्नू पर हर 4.3 घंटों में रात दिन की प्रक्रिया होती है। अंतरिक्ष के रहस्यों को सुलझाने की दिशा में नासा को बड़ी कामयाबी मिली है। एस्टेरायड बेन्नू से लाए गए सैंपल के प्रारंभिक विश्लेषण से हमारे सौरमंडल के रहस्य खुल रहे हैं। शुरुआती जांच में वैज्ञानिकों को पता चला है कि इस उल्कापिंड का अतीत अप्रत्याशित रूप से पानी से भरा था। वैज्ञानिक मान रहे हैं कि यह किसी प्राचीन समुद्री ग्रह से अलग हो गया होगा। बता दें कि नासा ने ओसीरसि-रेक्स मिशन के तहत 2020 में पृथ्वी के करीब एस्टेरायड बेन्नू का 121 ग्राम सैंपल लिया था। पिछले साल सितंबर में यह मिशन तब पूरा हुआ जब सैंपल पृथ्वी पर पहुंचा। 2023 से वैज्ञानिक इस एस्टेरायड की चट्टानों और धूल का विश्लेषण कर रहे हैं। वह यह जानने में लगे हैं कि आखिर इसके अंदर कौन-कौन से रहस्य हो सकते हैं। क्या इसमें जीवन के तत्व मौजूद हैं? बता दें कि एस्टेरायड हमेशा से वैज्ञानिकों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि ये सौरमंडल के निर्माण से बचे हुए अवशेष हैं। इसके अलावा इनका निर्माण तब हुआ था जब हमारा सौरमंडल बन रहा था। इसी तरह एस्टेरायड बेन्नू का इतिहास सूर्य जितना पुराना है। बेन्नू के नमूनों की शुरूआती समीक्षा से पता चला कि इसमें बड़ी मात्रा में कार्बन था। नमूने के विश्लेषण के दौरान टीम ने पाया कि बेन्नू की धूल कार्बन, नाइट्रोजन और कार्बनिक यौगिकों से समृद्ध है। बता दें कि कार्बनिक यौगिकों वही तत्व हैं जिन्होंने सौरमंडल बनाने में मदद की है। वैज्ञानिकों का मानना है कि ये सामग्रियां जीवन के लिए भी महत्वपूर्ण है। वैज्ञानिक सैंपल से यह जान सकते हैं कि आखिर पृथ्वी जैसे ग्रहों का निर्माण कैसे हुआ। निष्कर्षों का विवरण देने वाला एक अध्ययन बुधवार को मौसम विज्ञान और ग्रह विज्ञान पत्रिका में प्रकाशित हुआ। मैरीलैंड के ग्रीनबेल्ट में नासा के गोडार्ड स्पेस फ्लाइट सेंटर में वैज्ञानिक और स्टडी के सह लेखक जेसन ने पत्रिका में अपने विचार साझाा किए हैं। उनकें अनुसार आने वाले दिनों में अंतरिक्ष के कई अन्य रहस्य भी सामने आएंगे। इस एस्टेरायड की जांच कर रहें वैज्ञानिक उस समय आश्चर्यचकित रह गए जब उन्हें नमूनों में मैग्नीशियम-सोडियम फॉस्फेट मिला। बता दें कि मैग्नीशियम-सोडियम फॉस्फेट एक यौगिक है जो पानी में घुलनशील होता है। जीवन के लिए जैव रसायन के एक घटक के रूप में कार्य करता है। बेन्नू पर हर 4.3 घंटों में रात दिन की प्रक्रिया चलती है। दिन में इसका तापमान करीब 127 सेल्सियस पहुंच जाता है। वहीं रात इसका तापमान माइनस 23 डिग्री हो जाता है। इतना जल्दी तापमान में होने वाले बदलाव के कारण बेनु की चट्टानें हैं। वैज्ञानिक इस बात का पता लगा रहें हैं कि जिस महासागर वाली दुनिया से बन्नू अलग हुआ वह कहां चली गई। वैज्ञानिकों को आशंका है कि कहीं यह ब्लैकहोल में समा तो नहीं गई।
Rajneesh kumar tiwari