May 11, 2024
नई दिल्ली। नासा ने जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप का उपयोग करते हुए एक ऐसा एक्सोप्लैनेट ढूंढा है जो 30 प्रतिशत शुद्ध हीरे से बना है। इसकी चौड़ाई पृथ्वी से लगभग दोगुनी है। वहीं इसका वजन हमारे ग्रह से लगभग नौ गुना अधिक है। इतना सब होेन के बावजूद वैज्ञानिक इसे नर्कग्रह कह रहे हैं।
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अंतरिक्ष की दुनिया अंतहीन
अंतरिक्ष की दुनिया अंतहीन मानी जाती है। इसमें कई ऐसे तारे-सितारे हैं जिनके बारे में हम नहीं जानते। वैज्ञानिक इन पर लगातार शोध कर रहे हैं। वहीं अब अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने एक नए ग्रह के बारे में खुलासा किया है। इसके बारे में जो जानकारियां सामने आई है वह आश्चर्यचकित करने वाली है। यह ऐसा एक्सोप्लैनेट है, जो हीरे से बना हुआ है। इसकी चौड़ाई पृथ्वी से लगभग दोगुनी है। वहीं इसका वजन हमारे ग्रह यानी पृथ्वी से लगभग नौ गुना अधिक है।
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30 फीसदी शुद्ध हीरे से बना ग्रह
इसका कोर यानी बीच का हिस्सा 30 फीसदी शुद्ध हीरे से बना है। इसे डायमंड प्लैनेट भी कहते हैं। इतना बहुमूल्य होने के बावजूद वैज्ञानिकों इसे हेल प्लैनेट यानी नर्क ग्रह कह रहे हैं। इसका पूरा नाम 55 कैनक्री ई है। 55 कैनक्री ई हमारी पृथ्वी से 41 प्रकाश वर्ष दूर है। कैनक्री ई पर महज 18 घंटे का एक साल होता है। यह अपने तारे कॉपरनिकस की परिक्रमा करता है। यह ठीक हमारे सूरज जैसा है, लेकिन 55 कैनक्री ई की एक खास बात उसे हमारी पृथ्वी और सूरज से अलग बनाती है। यह 55 कैनक्री ई पृथ्वी के मुकाबले अपने तारे से 70 गुना करीब है। इतना करीब होने के कारण ही यह महज 18 घंटे में एक परक्रिमा पूरा कर लेता है। यानी इस ग्रह का एक साल महज अठारह घंटे का होता है।
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गर्म लावा से ढंका हुआ ग्रह
खगोलविदों का मानना है कि यह ग्रह गर्म लावा से ढंका हुआ है। यह तब हुआ जब इसके तारे ने अपना पहला वातावरण नष्ट कर दिया था। यह एक्सोप्लैनेट काफी घना है। अनुमान है कि यह कार्बन से बना हुआ है, जिसमें हीरे छिपे हुए हैं। इसकी गर्म सतह का तापमान लगभग 2,400 डिग्री सेल्सियस है। नए शोध से संकेत मिलता है कि इस ग्रह के चारों ओर गैसों की एक मोटी परत है। यह नए वातावरण को विकसित नहीं होने देती है। इसलिए इसे नर्क कह रहे हैं। वैज्ञानिकों ने इसे सुपर अर्थ के रूप में वर्गीकृत किया है। बता दें कि सुपर अर्थ उन्हें कहते हैं जो धरती से विशाल होते हैं, लेकिन नेप्च्यून और यूरेनस जैसे ग्रहों की तुलना में हल्के होते हैं। हालांकि, वैज्ञानिक यह नहीं जान पाए कि ये कैसे हुआ?
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हाइड्रोजन को हीलियम बना रहा ग्रह
रिसर्च टीम के सदस्य और कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट आॅफ टेक्नोलॉजी के रिसर्चर रेन्यू हू ने कहा कि हमने इस चट्टानी ग्रह का थर्मल उत्सर्जन मापा है। यह अंतरिक्ष में खोजा गया एकलौता ग्रह है जो हाइड्रोजन को हीलियम में परिवर्तित कर रहा है। हजारों सालों से इतने टेंपरेचर और प्रेशर की वजह से ही इस ग्रह का कोर डायमंड का बन गया है। वहीं इसके अस्तित्व पर भी खतरा मंडराने लगा है। इसका तापमान इतना अधिक है कि इस ग्रह पर असंख्य ज्वालामुखी बन गए हैं। ये लगातार फूटते रहते हैं। बादलों से भी लावा बरसता है। यह अपने तारे के इतना करीब है कि धीरे-धीरे उसमें समाता जा रहा है। वैज्ञानिक इसको लेकर चिंतित भी हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक 55 कैनक्री ई के गुरुत्वाकर्षण में तेजी से बदलाव हो रहा है। इस रफ्तार से कुछ वर्षों में इसका अस्तित्व समाप्त हो सकता है।
Rajneesh kumar tiwari