जनप्रवाद ब्यूरो, नई दिल्ली। वह सपना अब दूर नहीं है जब धरती पर सूरज अपनी चमक बिखेरेगा। इससे क्लीन एनर्जी मिलेगी। क्लीन एनर्जी की इस रेस में दुनिया के कई देश शामिल हैं। क्या आप जानते हैं कि भारत भी इस काम में पीछे नहीं है। यानी भारत भी नकली सूरज बनाने की दिशा में काम कर रहा है। दुनिया के कई देश आज के समय नकली सूर्य बनाने में लगे हैं। अगर सब ठीक योजना के अनुसार हुआ तो 2030 के शुरूआत में अमेरिका दुनिया का पहला ग्रिड-स्केल न्यूक्लियर फ्यूजन पावर प्लांट स्थापित करेगा। वर्जीनिया में बनने वाला यह संयंत्र भविष्य की स्वच्छ ऊर्जा को उपयोग में लाकर बिजली उत्पादन करेगा। स्टार्टअप कॉमनवेल्थ फ्यूजन सिस्टम्स ने इसकी घोषणा की। दूसरी ओर चीन भी अपने लैब में इस नकली सूरज को बना रहा है। इस कोशिश में हाल ही में चीन को बड़ी कामयाबी मिली है। जब लगभग 17 मिनटों तक चीन का कृत्रिम सूर्य दहकता रहा। चीन के वैज्ञानिकों ने इसे प्रायोगिक उन्नत सुपरकंडक्टिंग टोकामक नाम दिया है। बता दें कि कृत्रिम सूरज दरअसल एक परमाणु रिएक्टर है। जिसमें रसायनिक प्रतिक्रिया की वजह से सूर्य में ऊर्जा बनती है। वैज्ञानिक चाहते हैं कि उसी प्रक्रिया को धरती पर दोहराएं, जिससे असीमित स्वच्छ ऊर्जा पृथ्वी पर ही पैदा की जा सके। असली सूरज की भारी ऊर्जा की बात करें तो सूर्य में ऊर्जा न्यूक्लियर फ्यूजन की प्रक्रिया से पैदा होती है। यह प्रक्रिया सूर्य के केंद्र यानी कोर में होती है। जहां अत्यधिक तापमान और दबाव के कारण हाइड्रोजन के प्रोटॉन आपस में जुड़कर हीलियम नाभिक बनाते हैं। प्रोटॉनों के इस जुड़ने की प्रक्रिया को ही न्यूक्लियर फ्यूजन कहते हैं। इस प्रक्रिया में भारी मात्रा में ऊर्जा निकलती है। यह सूर्य से प्रकाश और गर्मी के रूप में बाहर निकलती है और धरती तक आती है। अब वैज्ञानिक चाहते है कि न्यूक्लियर फ्यूजन रिएक्टर में ऐसी प्रतिक्रिया कराई जाए जिससे हाइड्रोजन के आइसोटोप यानी ड्यूटीरियम और ट्रिटियम उच्च तापमान और दबाव पर जुड़े। इससे हीलियम गैस बने। इसके बाद फ्यूजन की प्रक्रिया में भारी मात्रा में ऊर्जा निकले। यही प्रक्रिया सूर्य में भी होती है। बता दें कि फ्यूजन के लिए आवश्यक है कि प्लाज्मा का तापमान लगभग 100 मिलियन डिग्री सेल्सियस यानी कि 10 करोड़ डिग्री सेल्सियस तक पहुंचे। यह सूर्य की सतह के तापमान से कई गुना अधिक है। इस उच्च तापमान और दबाव पर हाइड्रोजन आइसोटोप्स के नाभिक मिलकर हीलियम बनाते हैं। इस प्रक्रिया में विशाल मात्रा में ऊर्जा निकलती है। चीनी वैज्ञानिक इसी करिश्मे को हासिल करना चाह रहे हैं। उन्होंने 1000 सेकेंड यानी 17 मिनटों तक इस प्रक्रिया को हासिल कर लिया। अब अगली चुनौती इस ऊर्जा को रिएक्टर से निकालकर इसके व्यावसायिक प्रयोग की है। यह काफी चुनौतीपूर्ण है। चीन इस उपलब्धि को हासिल करने के लिए अगले 10 से 15 साल का टारगेट तय किया है। यानी कि चीन 2035-40 तक यह सिस्टम व्यावसायिक हो जाएगा। बता दें कि कृत्रिम सूरज के सपने को साकार करने की दिशा में सबसे अच्छी बात यह है कि इसके लिए हाइड्रोजन की जरूरत पड़ेगी। जो पृथ्वी पर प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है। इसके लिए किसी देश को आयात करने की जरूरत नहीं पड़ेगी.। चीन के प्रोजेक्ट की प्रगति ने दिखाया है कि लंबे समय तक प्लाज्मा को स्थिर रखना संभव है। जो फ्यूजन ऊर्जा की ओर अहम कदम है। इस तकनीक की कामयाबी ऊर्जा संकट से जूझ रहे मानव जाति के लिए वरदान साबित होगी। ऊर्जा के इतने अहम प्रोजेक्ट से भारत दूर नहीं रह सकता है। दुनिया में इसका सबसे बड़ा संगठन आईटीईआर प्रोजेक्ट है। इस प्रोजेक्ट का नाम अंतर्राष्ट्रीय थर्मोन्यूक्लियर प्रायोगिक रिएक्टर है। यह प्रोजेक्ट फ्रांस में कैडराशे में स्थित है। इसका उद्देश्य धरती पर न्यूक्लियर फ्यूजन को संभव बनाकर व्यावसायिक संलयन ऊर्जा को संभव बनाना है। यह फ्रांस में बनाया जा रहा है। इसमें 35 देश सहयोग कर रहे हैं। ये 45 बिलियन डॉलर का प्रोजेक्ट है। इसके अलावा भारत कृत्रिम सूरज बनाने के लिए स्वयं की कोशिशें भी कर रहा है। इस दिशा में भारत ने एसआईएनपी टोकामक बनाया है। कृत्रिम सूरज की दिशा में भारत की महत्वपूर्ण उपलब्धि स्टेडी स्टेट सुपरकंडक्टिंग टोकामाक-1 है। यह भारत में विकसित एक अत्याधुनिक न्यूक्लियर फ्यूजन प्रयोगशाला उपकरण यानी कि एक रिएक्टर है। ये रिएक्टर 2013 से काम कर रहा है। इसका निर्माण 1994 में शुरू हुआ और इसकी कमीशनिंग 2013 में हुई। यह इंस्टीट्यूट फॉर प्लाज्मा रिसर्च गांधीनगर, गुजरात में स्थित है।
Rajneesh kumar tiwari