नई दिल्ली। नासा समेत कई अंतरिक्ष एजेंसियों को मंगल ग्रह पर जीवन की तलाश है। इस ग्रह पर शोध के लिए वैज्ञानिक निरंतर मिशन भेज रहे हैं। कई देश तो मंगल पर बस्तियां बसाने के सपने देख रहे हैं। इस सपने को साकार करने में वैज्ञानिकों को बड़ी कामयाबी मिली है, उन्होंने मंगल पर बिजली पैदा करने का दावा किया है। मंगल ग्रह पर जब से पानी की मौजूदगी के संकेत मिले हैं, तभी से इस ग्रह पर वैज्ञानिकों की रुचि बढ़ गई है। मंगल पर पृथ्वी के मुकाबले गुरुत्वाकर्षण बल कम है और दिन-रात का चक्र लगभग समान है। इसलिए यहां जीवन की प्रबल संभावना है। मंगल पर पानी के साथ बिजली की बहुत आवश्यकता है। अब वैज्ञानिकों ने भविष्य में मंगल ग्रह पर बिजली बनाने का तरीका ढूंढ लिया है। ब्रिटिश कोलंबिया यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने मंगल पर बिजली बनाने का खाका पेश किया है। मंगल ग्रह पर कार्बन डाइऑक्साइड यानी सीओ2 भरपूर मात्रा में उपलब्ध है। इसी सीओ2 से वैज्ञानिक थर्मोइलेक्ट्रिक जनरेटर की मदद से बिजली पैदा करना चाहते हैं। शोध में उन्होंने दिखाया कि थर्मोइलेक्ट्रिक जनरेटर कार्बन डाइऑक्साइड को कन्वर्ट करने में मदद कर सकते हैं। उन्होंने भरोसा जताया कि अलग-अलग वातावरणों में तापमान का अंतर सीओ-2 को ईंधन और रसायनों में बदलने में मददगार हो सकता है। वैज्ञानिक इस बात से बेहद उत्साहित हैं कि मंगल ग्रह के ठंडे वातावरण में इस तरह की तरकीब कामयाब हो सकती है। वैज्ञानिकों का दावा है कि मंगल ग्रह पर थर्मोइलेक्ट्रिक जनरेटर से ना केवल बिजली बनाई जा सकती है, बल्कि वायुमंडल में मौजूद सीओ2 को कन्वर्ट कर उपयोगी उत्पाद तैयार किए जा सकते हैं। जिसे किसी भी मानव बस्ती में सप्लाई किया जा सकता है। शोध में वैज्ञानिकों ने जेनेरेटर्स को दो अलग-अलग तापमान पर अटैच किया। उन्होंने पाया कि जब अंतर 40 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा रहा, तब पर्याप्त करंट पैदा हुआ, जिससे इलेक्ट्रोलाइजर चल पाया जो सीओ2 को कार्बन मोनोआक्साइड में बदलता है। डिवाइस जर्नल में छपी रिपोर्ट के अनुसार, हालांकि मंगल पर यह प्रक्रिया थोड़ी चुनौतीपूर्ण होगी। क्योंकि मंगल ग्रह के वायुमंडल में 95 प्रतिशत सीओ2 है। वहां सतह पर तापमान 20 से लेकर -153 डिग्री सेल्सियस तक रहता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि मंगल पर बिजली पैदा करने के लिए एक बायोडोम बनाना पड़ेगा और उसे रूम टेंपरेचर पर मेंटेन करना होगा। डोम की सतह पर लगे थर्मोइलेक्ट्रिक जनरेटर बाहरी और अंदरूनी तापमान के अंतर से बिजली पैदा करेंगे। इस बिजली से सीओ2 को ईंधन और रसायन जैसे उत्पादों में आसानी से बदला जा सकेगा।
Arun kumar baranwal