जनप्रवाद ब्यूरो, नई दिल्ली। साइबेरिया का रहस्यमयी नरक का द्वार अब लगातार विस्तार लेता जा रहा है। वैज्ञानिकों ने इस गहरे होते गड्ढे को दुनिया के लिए बड़ा खतरा बताया है। इसका खुलासा खुफिया तस्वीर को सार्वजनिक किए जाने के बाद हुआ है। साइबेरिया में एक गड्ढा है जो लगातार बढ़ रहा है। इसका आकार किसी विशालकाय लंबी पूंछ वाले मेंढक जैसा दिखता है। पहले यह यह बेहद छोटा था। 1960 में पहली बार नासा ने सैटेलाइट से इसकी फोटो ली थी। अब यह विशालकाय हो चुका है। साथ ही लगातार फैलता जा रहा है। इसके आसपास की मिट्टी धंसती जा रही है। अब इस क्रेटर के अंदर पहाड़ियां और घाटियां बनती जा रही हैं। ये सारा बदलाव सैटेलाइट तस्वीरों में साफ दिखाई दिया। इसका नाम द बाटागे क्रेटर है। वैज्ञानिक इस बात से हैरान हैं कि यह गड्ढा लगातार क्यों बढ़ रहा है? यूएसजीएस की रिपोर्ट के अनुसार यह गड्ढा और इसमें बना छेद 1991 की तुलना में 2018 तक तीन गुना बढ़ गया। वहीं 2023 तक इसके फैलने की गति और बढ़ गई। बता दें कि बाटागे क्रेटर को कभी-कभी लोग बाटागाइका भी बुलाते हैं। इसका मतलब होता है नरक का द्वार। इसे कुछ लोग ऐसी अदृश्य समस्याओं के लिए जिम्मेदार मानते हैं, जो धरती पर लगातार कोई न कोई दिक्कत पैदा करते रहते हैं। वहीं इसके बड़ा होने पर वैज्ञानिकों का मानना है कि आर्कटिक का इलाका बहुत तेजी से गर्म हो रहा है। जिसकी वजह से वहां पर्माफ्रास्ट पिघल रहा है। यह मिट्टी और बर्फ की मोटी परत है, जो हमेशा से जमी हुई थी। इसे रेट्रोग्रेसिव था स्लंप भी कहते हैं। ऐसी जगह पर तेजी से भूस्खलन होता है। तीखी घाटियां बन जाती हैं। इसके अलावा गड्ढे बनते हैं। आर्कटिक सर्किल में ऐसे था स्लंप बहुत ज्यादा है। वाशिंगटन यूनिवर्सिटी के जियोफिजिसिस्ट रोजर मिचेल्डिस का इस बारे में कहना है कि यह एक जमी हुई धूल वाली जगह है। यहां गीली मिट्टी और बर्फ का भयानक जमावड़ा हुआ था , जो गर्मी से पिघल रहा है। यह गड्ढा ऐसा है कि यहां स्टडी करने से हमारी पृथ्वी का भविष्य पता चल सकता है। उन्होंने कहा कि पर्माफ्रास्ट में मरे पौधे, जानवर होते हैं। ये सदियों से जमे हुए होते हैं। बता दें कि पर्माफ्रास्ट उस जगह को कहा जाता है कि जो स्थायी तुषार-भूमि वाली मिट्टी होती है। यानी यह कई वर्षों से शून्य से लेकर माइनस 32 डिग्री से कम तापमान पर जमी हुई अवस्था में रहती है। इसकी वजह से पर्माफ्रास्ट में कार्बन डाईआक्साइड और मीथेन जैसी गैस जमा रहती है। यह गैस वायुमंडल में निकलती भी रहती है। यहां पर गर्मी सोखने वाली गैस रहती हैं। जिसकी वजह से ग्लोबल वार्मिंग भी बढ़ती है। इससे पर्माफ्रास्ट तेजी से पिघलता है। बता दें कि उत्तरी गोलार्ध का 15 फीसदी हिस्सा इस समय पर्माफ्रास्ट है।
Rajneesh kumar tiwari