जनप्रवाद ब्यूरो नई दिल्ली। इसरो ने एक और कामयाबी की नई इबारत लिखी है। उसने दुनिया का सबसे बड़ा स्वदेशी प्रोपेलेंट मिक्सर बनाया है। यह ऐसी कामयाबी है, जो अभी तक अमेरिका, रूस और चीन के पास भी नहीं है। इस मामले में भारत इन देशों से आगे निकल गया है। माना जा रहा है यह मिक्सर इसरो के भविष्य के मिशनों के लिए रीढ़ साबित होगा। अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में रॉकेट में लगने वाले प्रणोदक का बड़ा महत्व है। बिना इसके वह ऊपर ही नहीं जा पाएगा! यह ठीक वैसे ही है, जैसे बिना पेट्रोल के गाड़ी नहीं चल सकती। प्रणोदक रॉकेट को धक्का देता है और उसे ऊपर ले जाता है। ये तरह-तरह के होते हैं, जैसे ठोस, द्रव और गैस। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानी इसरो ने सॉलिड मोटर्स के लिए स्वदेशी रूप 10-टन प्रोपेलेंट मिक्सर बनाने में सफलता हासिल की है। इस प्रोपेलेंट मिक्सर को इसरो के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र ने सेंट्रल मैन्युफैक्चरिंग टेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट, बेंगलुरु के सहयोग से विकसित किया है। इसे इसरो के लिए एक और मील का पत्थर बताया जा रहा है। 10-टन वर्टिकल मिक्सर का वजन लगभग 150 टन है और इसकी लंबाई 5.4 मीटर, चौड़ाई 3.3 मीटर और ऊंचाई 8.7 मीटर है। इसरो ने कहा, स्वदेशी 10-टन वर्टिकल मिक्सर का निर्माण भारत की बढ़ती तकनीकी क्षमता, आत्मनिर्भरता और इनोवेशन के प्रति अटूट प्रतिबद्धता का सच्चा प्रमाण है। यह 10-टन वर्टिकल मिक्सर सॉलिड प्रोपेलेंट की प्रोसेसिंग के लिए दुनिया का सबसे बड़ा वर्टिकल प्रोपेलेंट मिक्सर है। यह किसी बड़े तकनीकी चमत्कार से कम नहीं है। सॉलिड प्रोपेलेंट रॉकेट मोटर्स की बैकबोन हैं। उनके प्रोडक्शन के लिए अधिक सेंसिटिव और खतरनाक इंग्रेडिएंट्स के सटीक मिश्रण की जरूरत होती है। यह ऐसी कामयाबी है, जो अभी तक अमेरिका, रूस और चीन के पास भी नहीं है। इस मामले में भारत इन देशों से आगे निकल गया है। बता दें कि प्रणोदक एक खास किस्म का फ्यूल है। यह ऐसी गैस, द्रव या ठोस चीज होती है जिसके फैलने से किसी दूसरी चीज या वस्तु को गति मिलती है। एरोसोल डिस्पेंसर में नाइट्रस आॅक्साइड, कार्बन डाइआक्साइड और कई हैलोजेनेटेड हाइड्रोकार्बन जैसी संपीडित गैसों का उपयोग प्रणोदक के रूप में किया जाता है। प्रणोदक गैसीय रूप में रह सकता है। यह ठीक वैसे है जैसे नाइट्रस आक्साइड या कार्बन डाइआक्साइड या यह दबाव में द्रवीभूत हो सकता है। ठोस प्रोपेलेंट का इस्तेमाल रॉकेट और मिसाइलों में जोर पैदा करने के लिए किया जाता है। इनका इस्तेमाल अंतरिक्ष यान के बूस्टर और साउंडिंग रॉकेट में भी किया जाता है। साथ ही इनका इस्तेमाल उपग्रहों को कक्षा में रखने वाले लॉन्च वाहनों में भी किया जाता है। ये मिसाइल डिफेंस सिस्टम में भी उपयोगी होते हैं। ठोस प्रोपेलेंट का इस्तेमाल आटोमोबाइल एयरबैग में किया जाता है। एयरबैग में प्रोपेलेंट के विद्युत प्रज्वलन से गैस बनती है जो एयरबैग को फुला देती है। ठोस प्रोपेलेंट का इस्तेमाल खतरनाक जैविक और रासायनिक एजेंटों को नष्ट करने में भी किया जाता है। ठोस और तरल प्रणोदक ऐसे पदार्थ होते हैं जिनका तेजी से दहन होता है, जिससे गैस पैदा होती है। 20वीं सदी तक काली बारूद का इस्तेमाल बंदूकों और रॉकेट में प्रणोदक के रूप में किया जाता था। उस वक्त डबल-बेस गनपाउडर का इस्तेमाल शुरू हुआ। अब सॉलिड प्रोपेलेंट से इनके फटने का खतरा कम होता है। ये हमेशा लॉन्च के लिए तैयार रहते हैं। ऐसे इंजन अक्सर युद्ध क्षेत्र में इस्तेमाल होने वाली मिसाइलों को दोगनी गति से निशाने पर भेजते हैं। यानी इसका इस्तेमाल अब अंतरिक्ष के अलावा मिसाइल में भी किया जाएगा।
Rajneesh kumar tiwari