September 24, 2024
नई दिल्ली। चांद पर शोध कर रहे वैज्ञानिकों की टीम को एक और बड़ी सफलता मिली है। अध्ययन में वैज्ञानिकों को चांद की सतह के नीचे भारी मात्रा में आक्सीजन और हाइड्रोजन का भंडार मिला है। शोधकर्ताओं का दावा है कि इस खोज से भविष्य में चांद पर इंसानों को बसाने की संभावना बढ़ गई है। प्लैनेटरी साइंस इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों ने चांद की सतह पर किए गए नए शोध में बड़ा खुलासा किया है। जब उन्होंने चंद्रमा पर मौजूद खनिजों का नक्शा बनाया तो वे चौंक गए। उन्होंने पाया कि चांद की सतह पर चारों तरफ पानी और उसके अलग रूप हाइड्रॉक्सिल की भारी मात्रा मौजूद है। वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि इस खोज से भविष्य में चंद्रमा की भौगोलिक स्थिति, इतिहास और अभी जो भी कुछ भी वहां घट रहा है, उसे समझने का बेहतर मौका मिलेगा। प्लैनेटरी साइंस इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिक रोजर क्लार्क के अनुसार, यह खोज भविष्य में चंद्रमा पर इंसानों की उड़ान को एक नया मकसद मिलेगा। यहां अंतरिक्ष यात्री चंद्रमा की भूमध्यरेखा के पास पानी का इस्तेमाल कर सकेंगे। क्योंकि, आने वाले समय में वे सतह से या फिर ध्रुवीय इलाकों में मौजूद क्रेटर्स से पानी निकाल लेंगे। क्लार्क के अनुसार, सिर्फ यह जान लेने से की चंद्रमा पर पानी कहां है, हम उसके बारे में सबकुछ नहीं जान पाएंगे। इसके लिए चांद की सतह और अंदरूनी परतों का अध्ययन करना होगा। ताकि अंतरिक्ष यात्री यह भी पता कर सकें कि और कहां-कहां पानी मिल सकता है। क्योंकि चांद सूखा और कम नमी वाला पथरीला ग्रह है। वैज्ञानिकों का कहना है कि चांद पर ना तो तालाब हैं, ना झील और ना ही कोई नदी, फिर भी हर बार शोध में ये पता चलता है कि वहां पर भारी मात्रा में पानी मौजूद है। हालांकि, वैज्ञानिक अभी यह पूरी तरह से पता नहीं लगा पाए हैं कि चंद्रमा के अन्य हिस्सों में भी पानी छिपा है या नहीं। ऐसा भी संभव है कि वहां भारी मात्रा में ऑक्सीजन मौजूद हो। क्योंकि वहां पर हाइड्रॉक्सिल पाया गया है। बता दें कि एक कण ऑक्सीजन और एक कण हाइड्रोजन से मिलकर हाइड्रॉक्सिल बनता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि चांद की सतह के नीचे खनिज के साथ हाइड्रॉक्सिल भारी मात्रा में मौजूद है। जरूरत है तो खनिजों के साथ इन्हें निकालकर अलग करने की। इस प्रक्रिया के बाद इससे पानी और ऑक्सीजन बनाया जा सकता है। इसके अलावा, वैज्ञानिकों ने चांद की सतह पर इग्नियस पत्थर पाइरॉक्सीन भी खोजा है, इसमें भी पानी के संकेत मिले हैं। लेकिन यह सूरज की रोशनी पर निर्भर कर रहा है। जिस तरफ सूरज की रोशनी ज्यादा है, उधर कम कण मिले, जबकि, अंधेरे वाले हिस्से में ये कण अधिक मात्रा में पाए गए हैं।
Arun kumar baranwal