July 5, 2024
नई दिल्ली। वैज्ञानिक भी भगवान शिव को विनाश और निर्माण का देवता मानने लगे हैं। भगवान शिव पर लिखी थ्योरी में बड़ा खुलासा हुआ है। इसमें पृथ्वी के विनाश का कारण बताया गया है। साथ यह भी बताया गया है कि पलय काल में क्या-क्या होगा। धरती कब और कैसे खत्म होगी? उस पर जीवन कब खत्म होगा? इस पर वैज्ञानिकों का शोध और अध्ययन जारी है। अब ‘शिवा हाइपोथिसि इम्पैक्ट्स, मास एक्टिक्शन एंड द गैलेक्सी’ स्टडी में बड़ा खुलासा हुआ है। बता दें कि यह वैज्ञानिकों का ऐसा सिद्धांत है जिसमें धरती, उस पर मौजूद जीवन के खत्म होने और इसका आकाशगंगा से संबंध बताया गया है। इस हाइपोथिसिस में यह बताया गया है कि धरती पर समय-समय पर जीवन का सामूहिक संहार होगा। इसकी वजह धूमकेतु या एस्टेरॉयड्स या उल्कापिंड हो सकते हैं। पृथ्वी के विनाश का कारण अन्य ग्रह भी हो सकता है। यह पृथ्वी से टकरा सकता है। इसके अलावा कोई बड़ा पत्थर धरती से आकर टकरा सकता है। उसकी टक्कर से अंतरिक्ष में इतने ज्यादा धूल के बादल फैले कि दुनिया फिर से हिमयुग में चली जाएगी। अब तक की गणना के मुताबिक धरती पर पांच बार जीवन का सामूहिक विनाश हो चुका है। वहीं 20 बार छोटे सामूहिक विनाश हुए हैं। ये सभी घटनाएं पिछले 54 करोड़ वर्षों में हुई है। ये हाइपोथिसिस एमआर रैंपिनो और ब्रूस एम. हैगर्टी ने फरवरी 1996 में दी थी। इसी स्टडी की बदौलत आज भी वैज्ञानिक धरती पर होने वाले छठे सामूहिक विनाश की स्टडी और रिसर्च में लगे हैं। शिवा हाइपोथिसिस में ग्रहों के खत्म होने और बनने की बात भी कही गई है। धरती पर धूमकेतुओं की बारिश की बात कही गई है। बता दें कि भगवान शिव को संहार का देवता सबसे पहले कैंपबेल ने माना था। 1987 में कैंपबेल की एक स्टडी में कहा गया था कि दुनिया में सबसे ज्यादा और सबसे प्राचीन देवता शिव हैं। उनकी पूजा बहुत जगहों पर होती है। इसमें उन्होंने शिव के डमरू को आधार मानते हुए ब्रह्मांड के रोटेशन और विनाश की भविष्यवाणी की थी। साथ ही पृथ्वी पर जीवन के विनाश और ब्रह्मांड में होने वाले बदलावों का जिक्र किया था। शिव को इस वैज्ञानिक स्टडी में शामिल करने की जो बात कही गई है, उसमें बताया गया है कि उनके एक हाथ में जलती हुई ज्वाला है। दूसरे में डमरू है। यह डमरू वादन लयबद्ध तरीके से नृत्य और निर्माण का प्रतीक है। वहीं हाथ में जलती ज्वाला को कॉस्मिक साइकिल से जोड़ा गया है। यानी इससे ब्रह्मांड के विनाश और निर्माण की सतत प्रक्रिया शुरू होती है। स्टडी में ये भी बताया गया है कि विनाश के सयम पूरी दुनिया में काले बादल छा जाएंगे। सूरज की रोशनी नहीं मिलेगी। हफ्ते भर में ही तापमान में माइनस 15 डिग्री सेल्सियस की जबर्दस्त गिरावट आएगी। चारों तरफ बर्फ जम जाएगी। यानी हिमयुग की शुरुआत हो जाएगी। वहीं इस प्रक्रिया से जीव-जंतुओं की कई प्रजातियां नष्ट हो जाएंगी। स्टडी में यह भी बताया गया है कि जरूरी नहीं कि इन्हीं कॉस्मिक घटनाओं से धरती का खात्मा हो। आधुनिक युग में यह काम इंसानों द्वारा किए जा रहे जलवायु परिवर्तन की वजह से भी हो रहा है। बता दें कि ग्लेशियर पिघल रहे हैं। नदियां सूख रही हैं। प्राकृतिक आपदाओं की संख्या और तीव्रता बढ़ गई है। इसमें जैविक और अजैविक दोनों तरह का विनाश हो रहा है।
Rajneesh kumar tiwari