जनप्रवाद ब्यूरो, नई दिल्ली। बांग्लादेश के बाद भारत के एक अन्य पड़ोसी देश में बवाल हो गया है। यहां की जनता सड़कों पर उतर आई है। लोगों को काबू करने के लिए सेना लगाई गई है। इसके बाद कई जगह लगा कर्फ्यू लागू कर दिया गया है। चीन के चंगुल में फंस रहे नेपाल में एक बार फिर हिन्दू राष्ट्र बनाने की मांग तेज पकड़ने लगी है। इसको लेकर नेपाल में हिंसक प्रदर्शन के बाद वहां के हालात तनावपूर्ण हो गए हैं। काठमांडू में नेपाली सुरक्षा बलों और राजशाही समर्थक कार्यकतार्ओं के बीच झड़पें हुईं। हिंसा में कई पुलिसकर्मी घायल हो गए। जिससे अफरा-तफरी मच गई। पुलिस ने स्थिति को नियंत्रित करने के लिए आंसू गैस और रबर की गोलियां चलाईं। जिसके बाद कई घरों, अन्य इमारतों और वाहनों में आग लगा दी गई। हालात बिगड़ते देख कुछ इलाकों में कर्फ्यू लगा दिया गया है। स्थानीय मीडिया के अनुसार स्थिति तब बिगड़ गई जब प्रदर्शनकारियों ने निर्धारित सुरक्षा घेरा तोड़ने की कोशिश की। लोगों ने पुलिस पर पत्थर फेंके। जवाब में, सुरक्षा बलों ने भीड़ को तितर-बितर करने के लिए आंसू गैस के गोले दागे। झड़प के दौरान प्रदर्शनकारियों ने एक व्यापारिक परिसर, एक शॉपिंग मॉल, एक राजनीतिक पार्टी मुख्यालय और एक मीडिया हाउस की इमारत में आग लगा दी। जिसमें एक दर्जन से ज्यादा पुलिसकर्मी घायल हो गए। राजशाही समर्थक राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी (आपीपी) और अन्य समूह भी विरोध प्रदर्शन में शामिल हुए। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार नेपाल के राष्ट्रीय ध्वज लहराते हुए और पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह की तस्वीरें लिए हजारों राजतंत्रवादी तिनकुने क्षेत्र में इक्ट्ठा हुए। उन्होंने राजा आओ देश बचाओ, भ्रष्ट सरकार मुदार्बाद और हमें राजतंत्र वापस चाहिए जैसे नारे लगाए। प्रदर्शनकारियों ने राजतंत्र और हिन्दू राष्ट्र की बहाली की मांग की है। काठमांडू में सैकड़ों पुलिस कर्मियों और सेना को को तैनात किया गया है। साथ ही प्रतिबंधों का उल्लंघन करने के लिए कम से कम 51 लोगों को गिरफ्तार किया गया है। पुलिस ने 17 प्रमुख लोगों को भी गिरफ्तार किया जिनमें राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी के वाइस चेयरमैन रबिंद्र मिश्रा भी शामिल हैं। पार्टी के महासचिव सुमशेर राणा को भी गिरफ्तार किया गया है। राजशाही समर्थक कार्यकर्ता स्वागत नेपाल, शेफर्ड लिंबू और संतोष तमांग के अलावा कई और नेताओं को हिंसा फैलाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है। बता दें कि नेपाल ने 2008 में संसदीय घोषणा के जरिए 240 साल पुरानी राजशाही को खत्म कर दिया गया था। इससे देश राज्य एक धर्मनिरपेक्ष, संघीय, लोकतांत्रिक गणराज्य में बदल गया था। वहीं 19 फरवरी 2025 को लोकतंत्र दिवस पर पूर्व राजा ज्ञानेंद्र की ओर से वीडियो जारी किया गया। जिसमें राजशाही की बहाली की मांग की गई थी। इस महीने की शुरूआत में जब ज्ञानेंद्र देश के विभिन्न हिस्सों में धार्मिक स्थलों का दौरा करने के बाद त्रिभुवन अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर उतरे, तो कई राजशाही समर्थक कार्यकतार्ओं ने उनके समर्थन में एक रैली निकाली। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि नेपाल में राजशाही के पक्ष में इस भावना के पीछे एक प्रमुख कारण व्यापक भ्रष्टाचार है। इसके अलावा आर्थिक गिरावट से जनता हताश है। इसकी एक वजह शासन की अस्थिरिता भी है। राजशाही समर्थक अब नेपाल सरकार से एक हफ्ते के अंदर सत्ता सौंपने की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि अगर उनकी मांग पूरी नहीं की जाती, तो आंदोलन और तेज हो सकता है। बता दें कि पहले राजा को शक्ति और स्थिरता के प्रतीक के रूप में देखा जाता था। नेपाल ने 2008 में गणतंत्रमें परिवर्तन के बाद से अस्थिरता देखी। पिछले 16 वर्षों में, देश ने 13 अलग-अलग सरकारें देखी हैं।
Rajneesh kumar tiwari