नई दिल्ली। अब चन्द्रमा पर ट्रेन दौड़ेगी। यह कोई कपोल-कल्पना नहीं पूरी तरह सच है। इसको लेकर अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा का प्लान तैयार है। नासा ने चांद पर पहला रेलवे सिस्टम खड़ा करने का खाका खींच लिया है। यह ऐसा रोबोटिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम होगा जो चांद पर मौजूद बेस की डेली जरूरतों को पूरा करेगा।
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चांद पर खुलेगा पहला रेलवे सिस्टम
आज के समय में चंद्रमा पर दुनिया की कई स्पेस एजेंसियां जा रही है। भारत ने कुछ महीने चन्द्रयान-3 के जरिए बड़ी सफलता हासिल की थी। अब नासा का प्लान है कि चंद्रमा पर इंसानों को भेजा जाए। वहां पर बस्ती बनाई जाए। अब नासा ने इस प्लान को और भी बड़ा बना लिया है। नासा चांद पर ट्रेन चलाना चाहता है। यहां देखने वाली बात यह है कि यह रेलवे धरती की तरह दो पटरियों वाला नहीं होगा। नासा 2030 तक चांद पर बेस बनाने का लक्ष्य लेकर चल रहा है।
विकसित होगा रोबोटिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम
यह ऐसा रोबोटिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम होगा जिसके ट्रैक पर रोबोट पर अपना काम करेगा। नासा ने अपनी इस नई तकनीक को फ्लोट नाम दिया है। वैज्ञानिक उम्मीद कर रहे हैं कि यह चंद्रमा पर मिशन के दौरान अंतरिक्ष यात्रियों के लिए पेलोड डिलीवरी का विकल्प प्रदान करेगा। नासा ने चुंबक से चलने वाले इस रेल मिशन की फंडिंग में बढ़ोतरी की है।
चंद्रमा पर खनन ट्रांसपोर्ट में कारगर
यह प्लान किसी साइंस फिक्शन फिल्म की तरह है। बता दें कि फ्लोट का मतलब फ्लेक्सिबल लेविटेशन आॅन ए ट्रैक है। नासा की जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी की ओर से संचालित की जाने वाली यह परियोजना है। इसे नासा के इनोवेटिव एडवांस्ड कॉन्सेप्ट प्रोग्राम अध्ययन के दूसरे चरण में बनाया जा रहा है। आने वाले समय में इससे पृथ्वी से सौरमंडल में किसी भी जगह तेजी से पहुंचा जा सकेगा।
ट्रैक के ऊपर उड़ते हुए जाएंगे रोबोट
नासा के रोबोटिक्स इंजीनियर एथन स्केलर इस परियोजना का नेतृत्व कर रहे हैं। स्केलर ने कहा कि फ्लोट एक लपेटी जा सकने वाली कालीन की तरह होगी। आवश्यक्ताओं के हिसाब से इसे दूसरी जगह ले जाया जा सकेगा। उन्होंने आगे बताया कि फ्लोट पर चलने वाले रोबोटों में कोई हिलने वाला भाग नहीं होगा, और ट्रैक पर उड़ेंगे। नासा के शुरूआती डिजाइन के अनुसार फ्लोट के लिए मैग्नेटिक वाला 3 लेयर ट्रैक होगा। इस ट्रैक में एक ग्रेफाइट की परत होगी जो रोबोट्स को डायमैग्नेटिक लेविटेशन के जरिए फ्लोट पर संचालन का काम करेगी। फ्लोट की दूसरी लेयर फ्लेक्स-सर्किट की होगी जो इलेक्ट्रोमैग्नेटिक थ्रस्ट जेनरेट करेगा ताकि रोबोट्स आगे बढ़ सकें। वहीं फ्लोट की तीसरी लेयर सोलर पैनल की परत होगी जो सूरज की रोशनी में पावर जेनरेट करेगी। नासा के अनुसार रोबोट्स में कोई मूविंग पार्ट नहीं होगा। ये ट्रैक के ऊपर उड़ते हुए जाएंगे जिससे चांद की सतह इन्हें नुकसान न पहुंचा सके। इन रोबोट्स के ऊपर कार्ट लगे रहेंगे। ये नासा के फ्यूचर बेस से एक दिन में करीब 100 टन सामान इधर-उधर ले जा सकेंगे। पोस्ट में नासा ने कहा कि फ्लोट न्यूनतम साइट तैयारी के साथ चांद के धूल भरे, दुर्गम वातावरण में आॅटोनॉमस रूप से काम करेगा। बता दें कि नासा मिशन के जरिए 2026 तक इंसान को फिर से चांद पर भेजना चाहता है। उसका मकसद भविष्य के अंतरिक्ष मिशनों के लिए चांद पर परमानेंट बेस बनाने का है।
Rajneesh kumar tiwari