नई दिल्ली। दुनिया भर के सैलानियों को अपनी ओर खींचने वाले थाईलैंड पर बड़ा संकट मंडराने लगा है। वैज्ञानिकों ने अनुमान जताया है कि इस देश की राजधानी बैंकॉक समंदर में समा जाएगी। इसको लेकर थाइलैंड नई कैपिटल ढूंढ रहा है। यहां ध्यान देने वाली बात यह कि क्या यह संकट भारत के किसी शहर पर भी आ सकता है। जलवायु परिवर्तन की वजह से थाईलैंड की मौजूदा राजधानी बैंकॉक के समुद्र में डूबने का खतरा बढ़ गया है। थाईलैंड के क्लाइमेट चेंज आॅफिस के अनुसार समुद्र के बढ़ते स्तर के कारण थाईलैंड को अपनी राजधानी बैंकॉक को ट्रांसफर करने पर विचार करना पड़ सकता है। अनुमानों में कहा गया है कि 2050 तक बैंकॉक के तटीय इलाकों के समुद्र में समाने का खतरा है। बता दें कि चकाचौंध वाला यह शहर बारिश के दिनों में भारी बाढ़ से जूझने लगता है। क्लाइमेट चेंज आॅफिस के एक अफसर ने बताया कि हमारी धरती का तापमान पहले से ही 1.5 डिग्री सेल्सियस से ऊपर है। ऐसे में यह नई मुश्किल पैदा कर सकता है।
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क्लामेट चेंज पर आई नई रिपार्ट
क्लामेट चेंज पर आई नई रिपार्ट में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन पूरे विश्व के लिए समस्या बन रहा है। इसकी वजह से दुनिया के कई शहर 2050 तक समुद्र में डूब सकते हैं। इसमें अमेरिका का सवाना और न्यू आॅरिलिएंस, गुएना की राजधानी जॉर्जटाउन का नाम शामिल है। वहीं भारत के कोलकाता और मुंबई, वियतनाम के हो ची मिन्ह सिटी, इटली की वेनिस सिटी, इराक का बसरा और नीदरलैंड्स के एम्सटर्डम शहर पर बड़ा खतरा आ सकता है। इस बारे में वैज्ञानिकों का मानना है कि जमीन के भीतर बहुत सा कॉर्बन अलग-अलग रूपों में मौजूद है। ये कॉर्बन लाखों साल से धरती में मौजूद है। यह कॉर्बन पेट्रोलियम, गैस या कोयले के रूप है। जैसे ही यह धरती से बाहर आया तो वातावरण में गर्मी फैलनी शुरू हो गई। इससे ग्लेशियर या ध्रुवों की बर्फ पिघलने लगी है। इससे हिमनदों और नदियों से बहकर बहुत सारा पानी तटीय इलाकों में जमा होने लगा। इससे तटीय शहरों के डूबने का खतरा बढ़ गया। इटली की वेनिस सिटी में हर साल 2 मिलीमीटर भी पानी बढ़ जाएगा तो वह भी जल्दी डूब सकता है। अमेरिका के मियामी, न्यूयॉर्क जैसे तटीय शहरों पर भी यही खतरा है। आईआईटी मुंबई के शोधकर्ताओं ने बीते साल एक रिपोर्ट पब्लिश की थी। इसके अनुसार, देश की आर्थिक राजधानी मुंबई हर दो मिलीमीटर की दर से समुद्र में समा रही है, जिसकी बड़ी वजह जलवायु परिवर्तन है। बता दें कि भारत का माजुली द्वीप भी इसी वजह से डूबा था।
इंडोनेशिया की राजधानी और देश का सबसे बड़ा शहर जकार्ता का नाम इस सूची में सबसे पहले नंबर पर है। जकार्ता की हालत ऐसी है कि यह हर साल समुद्र में 30.5 सेंटीमीटर तक समा रहा है। कई रिपोर्टो में कहा गया है कि 40 फीसदी तक यह शहर समुद्र में धंस चुका है। बताया जा रहा है कि 2050 तक यह शहर पानी में डूब सकता है। मालदीव के भी डूबने का खतरा मंडारने लगा है। बता दें कि मालदीव करीब 1200 द्वीपों का समूह है। इसमें से सिर्फ 200 द्वीपों पर ही लोग रहते हैं। समुद्र का जलस्तर थोड़ा भी बढ़ने से इनके डूबने का खतरा है। विश्व बैंक के अनुमान के अनुसार, 21वीं सदी के अंत तक समुद्र का जलस्तर 10 से 100 सेंटीमीटर तक बढ़ सकता है। इस वजह से मालदीव पूरी तरह से डूब जाएगा। कार्बन बढ़ने की घटना पर वैज्ञानिकों का मानना है कि धरती ने अपने वातावरण में इतना कॉर्बन कभी नहीं देखा था। आज 430 पीपीएम यानी पार्ट्स पर मिलियन कॉर्बन धरती पर मौजूद है। जबकि कॉर्बन डाई आॅक्साइड का लेवल 0.03 होना चाहिए था। 4.5 अरब साल के धरती के इतिहास में इतना कॉर्बन कभी नहीं था, जितना हमने बढ़ा दिया। उनका कहना है कि हमने धरती के भीतर के लिक्विड के रूप में मौजूद कॉर्बन को गैस में बदल दिया, जिससे ग्लेशियर्स पिघल रहे हैं। शहर डूबेंगे तो बड़े पैमाने पर माइग्रेशन भी होंगे और उनकी चुनौतियां भी सामने आएंगी।
Rajneesh kumar tiwari