अच्छे मानसून को देश की अर्थव्यवस्था लिए शुभ संकेत माना जाता है। देश की कुल जीडीपी में कृषि का योगदान करीब 14 प्रतिशत है। अगर मानसून अच्छा है और बारिश बढ़िया होती है तो कृषि क्षेत्र को इसका बहुत फायदा मिलता है। इससे फसलों की पैदावार अच्छी होती है। इस साल मार्च से ही पड़ रही भीषण गर्मी के बीच मानसून को लेकर बड़ा अपडेट सामने आया है। मौसम विभाग (आईएमडी) ने देश में इस साल मानसून के दौरान सामान्य से ज्यादा बारिश होने की संभावना जताई है। हालांकि, इस दौरान कुछ राज्यों में सामान्य से कम वर्षा होने के आसार हैं। आईएमडी के महानिदेशक मृत्युंजय महापात्र के अनुसार, पूरे देश में दक्षिण-पश्चिम मानसून के तहत एक जून से 30 सितंबर के बीच मानसून ऋतुनिष्ठ वर्षा दीर्घावधि औसत (एलपीए) का 106 फीसदी होने की संभावना है।
इन राज्यों में होगी ज्यादा बारिश
गर्मी का सितम बढ़ने के साथ ही लोगों को बारिश का इंतजार होने लगा है। साथ ही खेती के लिए भी किसान बादलों की तरफ टकटकी लगाए रहते हैं। अच्छी बारिश होने से किसानों के चेहरे खिल उठते हैं। मौसम विभाग ने इस साल 20 राज्यों में जमकर बारिश होने का अनुमान जताया है। इन राज्यों में केरल, कर्नाटक, तेलंगाना, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, गुजरात, मध्यप्रदेश, झारखंड, पश्चिम बंगाल, सिक्किम, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, पुड्डुचेरी, उत्तरप्रदेश, राजस्थान, पंजाब, चंडीगढ़, हरियाणा, दिल्ली, उत्तराखंड, बिहार, अंडमान निकोबार द्वीप समूह, लक्षदीप, दादरा और नगर हवेली, दमन-दीव शामिल हैं। यहां खूब बारिश देखने को मिलेगी।
बढ़ेगा ला-नीना का प्रभाव
आईएमडी ने बताया कि दक्षिण-पश्चिम मॉनसून इस साल सामान्य से बेहतर रहेगा। जून से सितंबर के दौरान अच्छी बारिश देखने को मिलेगी। आईएमडी के अनुसार, 1971 से 2020 तक के बारिश के आंकड़ों के आधार पर हाल के वर्षों में नया दीर्घावधि औसत पेश किया गया है। जिसके तहत 96 प्रतिशत से 104 प्रतिशत के बीच बारिश को सामान्य माना जाता है। जबकि 105 प्रतिशत से 110 प्रतिशत के बीच बारिश होती है तो इसे सामान्य से अधिक माना जाता है। आईएमडी ने अपने पूवार्नुमान में बताया कि अल नीनो, ला नीनो, हिंद महासागर द्विध्रुव स्थितियां और उत्तरी गोलार्ध में बर्फीले आवरण संबंधी स्थिति का प्रभाव इस बार भारत में अच्छी बारिश का संकेत है।
इन राज्यों के लिए टेंशन
देश के ज्यादातर इलाकों में अच्छी बारिश के साथ कुछ राज्यों के लिए कम बारिश का भी अनुमान जताया गया है। उत्तर पश्चिम, पूर्व और पूर्वोत्तर भारत के कुछ हिस्सों को छोड़कर देश के ज्यादातर हिस्सों में सामान्य से ज्यादा वर्षा होने की प्रबल संभावना है। लेकिन, जम्मू-कश्मीर, लद्दाख, हिमाचल और उत्तराखंड में सामान्य से कम बारिश होने की संभावना जताई जा रही है। आईएमडी के मुताबिक, इसी तरह से पूर्वोत्तर राज्य-असम, मेघालय, मणिपुर, त्रिपुरा, नगालैंड और अरूणाचल प्रदेश के आसपास के इलाकों में भी सामान्य से कम बारिश देखने को मिलेगी। इसके साथ ही पूर्वी राज्यों-ओडिशा, छत्तीसगढ़ और झारखंड के कुछ हिस्सों और पश्चिम बंगाल में गंगा के मैदानी इलाकों में भी सामान्य से कम वर्षा होने का अनुमान है।
अगस्त से सितंबर के बीच ज्यादा बारिश
आईएमडी के अनुसार, मौजूदा समय में हिंद महासागर पर तटस्थ हिंद महासागर द्विध्रुव (आईओडी) स्थितियां बनी हुई हैं। इन स्थितियों की वजह से मॉनसून की शुरूआत की तुलना में अगस्त-सितंबर में ज्यादा बारिश होने के आसार हैं। पिछले तीन महीने की स्थितियों पर नजर डालें तो देखेंगे कि उत्तरी गोलार्ध, खासकर यूरोप और एशिया में कम बर्फबारी हुई। आईएमडी प्रमुख ने बताया कि उत्तरी गोलार्ध और यूरेशिया में बर्फ आवरण क्षेत्र सामान्य से कम था और सामान्य से कम हिमपात होना भारत में अगस्त से सितंबर के दौरान बारिश के लिए अनुकूल है।
आंकड़ों पर नजर
1951 से 2023 के आंकड़ों पर नजर डालें तो देखेंगे कि इन वर्षों के दौरान 22 साल ऐसे रहे जब ला नीनो की स्थितियां रहीं और इस दौरान ज्यादातर दक्षिण पश्चिम मॉनसून के तहत सामान्य या सामान्य से ज्यादा बारिश हुई। आईएमडी के अनुसार, 1951 से 2023 के बीच नौ साल ऐसे रहे जब अल नीनो जा रहा था और ला नीनो आ रहा था, जैसा इस साल है। उन्होंने कहा कि इन नौ साल में से दो वर्ष के दौरान मॉनसून की वर्षा सामान्य से ज्यादा रही और पांच साल अत्याधिक बारिश हुई तथा दो अन्य वर्षों के दौरान बारिश करीब-करीब सामान्य रही।
क्या है अल नीनो और ला नीना
जब भी मौसम की बात होती है तो अक्सर उसमें अल नीनो और ला नीना का नाम लिया जाता है। ये दोनों क्या होते हैं आइए इसके बारे में आपको बताते हैं। दरअसल, अल नीनो और ला नीना का संदर्भ प्रशांत महासागर की समुद्री सतह के तापमान में होने वाले बदलावों से है। अल नीनो की वजह से तापमान गर्म होता है और ला नीना के कारण ठंडा। यह दोनों दुनियाभर के मौसम पर प्रभाव डालते हैं।
अल नीनो
समुद्र का तापमान और वायुमंडलीय परिस्थितियों में जो बदलाव आते हैं उस समुद्री घटना को ‘अल नीनो’ कहते है। इस बदलाव की वजह से समुद्र की सतह का तापमान सामान्य से 4-5 डिग्री ज्यादा हो जाता है। इसके आने से दुनियाभर के मौसम पर प्रभाव पड़ता है। इस दौरान बारिश, ठंड, गर्मी सबमें अंतर दिखाई देता है। जिस साल अल नीनो की सक्रियता बढ़ती है, उस साल मानसून पर इसका असर पड़ता है। जिससे धरती के कुछ हिस्सों में भारी बारिश होती है तो कुछ हिस्सों में सूखे की गंभीर स्थिति सामने आती है। यदि अल नीनो दक्षिण अमेरिका की तरफ सक्रिय हो तो भारत में उस साल कम बारिश होती है।
ला नीना
भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर क्षेत्र के सतह पर निम्न हवा का दबाव होने से यह स्थिति पैदा होती है। इसकी उत्पत्ति के वैसे तो कई कारण हैं, लेकिन सबसे प्रचलित कारण है पूर्व से बहने वाली तेज गति की हवा। इससे समुद्री सतह का तापमान काफी कम हो जाता है। इस कम होते तापमान को ही ‘ला नीनो’ कहते हैं। इसका सीधा असर दुनियाभर के तापमान पर होता है और तापमान औसत से अधिक ठंडा हो जाता है। ला नीना से आमतौर पर उत्तर-पश्चिम में मौसम ठंडा और दक्षिण-पूर्व में मौसम गर्म होता है। भारत में इस दौरान भयंकर ठंड पड़ती है और बारिश भी ठीक-ठाक होती है।
Arun kumar baranwal