June 15, 2024
नई दिल्ली। अर्थव्यवस्था के बाद अब भारत में बनी दवाओं का दुनियाभर में डंका बजने लगा है। फार्मा क्षेत्र में सबसे विकसित माने जाने वाले अमेरिका की ओर से सबसे अच्छी खासी डिमांड आई है। यह बातें साबित करने लगी हैं कि भारत पहले वाला नहीं रहा बल्कि विकसित देशों के साथ कदमताल कर रहा है। वैश्विक मंच पर भारत अब अपनी भूमिका तय कर रहा है। दुश्मन देशों के साथ भारत आंखें दिखाकर बात करता है। रक्षा से लेकर तकनीक तक के क्षेत्र में भारत लगातार अग्रसर है। इसी क्रम में अब भारत में बनी दवाओं की डिमांड विकासशील हीं नहीं बल्कि विकसित देशों में होने लगी है। कोराना के बाद मेडिसिन के क्षेत्र में भी भारत ने अपने निर्यात में जबर्दस्त बढ़ोत्तरी की है। वैश्विक स्तर पर फार्मा का निर्यात बाजार 1.7 लाख करोड़ डॉलर का है। अब भारत इसमें अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने को लकर उत्सुक है। दो सालों में भारत की बढ़ोतरी दर को देखते हुए ये माना जा रहा है कि 2030 तक फार्मा निर्यात 50 अरब डॉलर के स्तर को छू लेगा। फार्मा के साथ मेडिकल डिवाइस के निर्यात में भी पिछले दो-तीन सालों से 12 से 15 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखी गई है। वित्तीय वर्ष 2023-24 में भारतीय दवाओं का निर्यात 27.9 अरब डॉलर पहुंच गया है। इसमें 10 प्रतिशत से अधिक की बढ़ोत्तरी देखी गई। सबसे खास बात ये है कि अमेरिका, ब्रिटेन व नीदरलैंड जैसे विकसित देश सबसे अधिक भारतीय दवा की डिमांड कर रहे हैं। ये सभी देश भारत में बनी दवाओं पर भरोसा जताते हुए उसे खरीद रहे हैं। वित्तीय वर्ष 2023-24 में खुद अमेरिका ने भारत से 7.83 अरब डॉलर की दवा खरीदी। बता दें कि भारत मुख्य रूप से जेनेरिक दवाइयों का निर्यात करने का काम करता है। बता दें कि कोरोना काल में भारत ने 200 से अधिक देशों को वैक्सीन और दवा मुहैया कराने का काम किया था। इससे भारत के लिए एक निर्यात बाजार दुनिया भर के लिए तैयार हो गया। वर्तमान समय में भारत सूडान, मिस्त्र, ब्रूनेई, लाताविया, हैती, इथियोपिया जैसे देशों को फार्मा निर्यात कर रहा हैं। साथ ही यहां पर भरारत अपने लिए एक बाजार भी सेट कर रहा है। आर्थिक जानकारों का मानना है कि अगर भारत इसी तरह काम करता रहा तो 2030 तक फार्मा निर्यात 50 अरब डॉलर के स्तर को पार कर जाएगा। भारतीय दवाओं का निर्यात बढ़ने क कई कारण हैं। भारत की दवा सस्ती होने के साथ गुणवत्ता वाली भी है। यूरोप में बनाई जाने वाली दवा भारत की तुलना में 25 से 30 प्रतिशत अधिक महंगी होती है। चीन भले ही दूसरे देशों को सस्ती फार्मा उपलब्ध करता है लेकिन कोरोना के बाद उस पर कई देशों का भरोसा कम हो गया है। यहीं कारण है कि डिस्पोजेबल आइटम, आर्थोपेडिक आइटम, सीरिंज, निडल, ग्लव्स जैसी वस्तुओं में दुनिया के बाजार में भारत का बोलबाला होने लगा है। इसके अलावा भारत में तीन तरह की चिकित्सा पद्धति अपनाई जाती है। यह दुनिया के किसी देश के पास नहीं है। किसी भी विदेशी नागरिक को भारत से आयुर्वेद, होम्योपैथ, एलोपैथ की दवाएं आसानी से मिली जाती हैं। वहीं योग, नेचुरोपैथी जैसी पुरानी चिकित्सा पद्धतियों के प्रति दुनिया का क्रेज बढ़ा है। ये विभिन्न रोगों और बीमारियों के इलाज में सफल होती हैं। साथ ही रोग के कारणों को समझने, उपचार करने, और रोग को जड़ से उखाड़ने में सहायक होती हैं।
Rajneesh kumar tiwari