बचपन में आपने चंदा मामा की कहानियां जरूर सुनी होगी। ये कहानियां बच्चों को सपनों की दुनिया में ले जाती हैं और उन्हें नए विचारों के साथ उत्साहित करती है। चांद का हमारे जीवन में बहुत बड़ा प्रभाव है। अगर चांद ना हो तो जीवन मुश्किल हो जाएगा। अब चांद को लेकर एक ऐसी रिपोर्ट सामने आई है जिसके बारे में जानकर आप चौंक जाएंगे।
चांद के सिकुड़ने का किया जा रहा दावा
चांद धरती पर कई तरह की गतिविधियों को प्रभावित करता है। जिसमें रोशनी से लेकर धरती की चाल तक शामिल है। अगर चांद ना हो तो धरती पर जीवन मुश्किल ही नामुमकिन हो जाएगा। अब सोशल मीडिया में भूकंपीय गतिविधि के कारण चांद के सिकुड़ने का दावा किया जा रहा है। रिपोर्ट के अनुसार, पिछले कई सौ मिलियन वर्षों से चांद धीरे-धीरे छोटा होता जा रहा है। जो अभी तक करीब 50 मीटर सिकुड़ चुका है।
शोधकर्ताओं ने रिकॉर्ड की खामियां
बता दें कि हाल ही में वैज्ञानिकों ने चांद की सतह पर थ्रस्ट फॉल्ट तस्वीरों का अध्ययन किया था। जिसमें उन्होंने चांद के सिकुड़ने की घटना को सही माना है। यह तस्वीरें अपोलो अंतरिक्ष यात्रियों और नासा के लूनर रिकोनिसेंस आॅर्बिटर द्वारा खींची गई थीं। शोधकर्ताओं ने शोध में पाया कि अपोलो युग के दौरान चांद पर छोड़े गए भूकंप मापने वाले यंत्रों ने यहां कुछ खामियां रिकॉर्ड की हैं। यह खामियां चांद के एक आंतरिक कोर के लगभग 500 किलोमीटर रेडियस में पाई गई हैं।
चांद के सिकुड़ने की प्रक्रिया जारी
वैज्ञानिकों ने शोध में पाया कि यह भाग आंशिक रूप से पिघला हुआ है। साथ ही इसका आंतरिक भाग काफी ठंडा है और सिकुड़ रहा है। इसका बाहरी हिस्सा यानी पपड़ी बहुत नाजुक है। इसलिए जैसे ही आंतरिक भाग सिकुड़ता है, पपड़ी टूट जाती है। जिसका परिणाम यह होता है कि पपड़ी के कुछ हिस्से कोर की ओर खिंच जाते हैं। वैज्ञानिकों को मिले सबूत के अनुसार, यह प्रक्रिया आज भी जारी है। पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के कारण चांद पर पड़ने वाले तनाव का अधिक प्रभाव पड़ता है।
इंसान पर नहीं पड़ेगा कोई असर
वैज्ञानिकों का कहना है कि चांद के सिकुड़ने के कारण आकाश में चंद्रमा का स्पष्ट आकार इतना नहीं बदलेगा कि इसका असर इंसानों पर पड़े। क्योंकि, इसका द्रव्यमान कम नहीं हो रहा है, इसी के चलते पृथ्वी और चांद के बीच गुरुत्वाकर्षण बल समान रहेगा। जब गुरुत्वाकर्षण बल समान होगा, तो धरती पर उसका नकारात्मक असर नहीं होगा। हालांकि, चंद्रमा की कक्षा का आकार प्रति वर्ष 3.8 सेंटीमीटर बढ़ रहा है। इससे पृथ्वी का घूमना धीमा हो रहा है। इसका असर दिन की लंबाई पर होता है। पृथ्वी पर एक दिन की लंबाई में 2.3 मिलीसेकेंड जुड़ता जाता है।
Arun kumar baranwal