जनप्रवाद ब्यूरो, नई दिल्ली। नेचर कम्युनिकेशंस पत्रिका में छपे एक वैज्ञानिक लेख में बुध ग्रह को लेकर बड़ा दावा किया गया है। नई स्टडी में कहा गया है कि बुधग्रह पर ब्रह्मांड का सबसे बड़ा खजाना मौजूद है। अगर इसको निकाल लिया जाए तो दुनिया में कहीं भी गरीबी नहीं रहेगी। नई स्टडी बताती है कि बुध की सतह से सैकड़ों मील नीचे हीरे की एक मोटी परत है। नेचर कम्यूनिकेशन में छपी रिसर्च के अनुसार हीरे की यह परत बुध ग्रह की लगभग 9 मील यानी 14 किलोमीटर मोटी है। फिलहाल मौजूद समय में बुध से इन हीरों की माइनिंग असंभव है। ऐसा इसलिए है क्योंकि बुधग्रह का तापमान बहुत ही ज्यादा है। दुनिया को इस समय भले ही हीरे न मिले लेकिन इससे ब्रह्मांड से जुड़े कई अहम सवालों का जवाब जरुर मिल सकता है। वहीं वैज्ञानिकों का मानना है कि आने वाले समय में जब तकनीक का विकास और ज्यादा हो जाएगा तो यहां रोबिटिक्स खुदाई की जा सकती है। रिसर्च के अनुसार नई खोज हमें बुध ग्रह की संरचना और विशिष्ट चुंबकीय क्षेत्र के बारे में बता सकती है। बता दें कि बुध ग्रह को रहस्यों से भरा हुआ माना जाता है। इतना छोटा और भूगर्भीय रूप से निष्क्रिय होने के बावजूद इसका चुंबकीय क्षेत्र ज्यादा है। बुध की सतह पर असामान्य रूप से काले धब्बे भी हैं जिन्हें नासा के मैसेंजर मिशन ने ग्रेफाइट के रूप में पहचाना है, जो कार्बन का एक रूप है। इसी कार्बन की मौजूदगी ने वैज्ञानिकों में जिज्ञासा पैदा की। जिसके बाद वैज्ञानिक बुध ग्रह के बार में ज्यादा अध्ययन करने लगे। बीजिंग में सेंटर फॉर हाई प्रेशर साइंस एंड टेक्नोलॉजी एडवांस्ड रिसर्च के स्टाफ साइंटिस्ट और स्टडी के सहायक लेखक ने रिसर्च में अन्य दावे भी किए हैं। उनके अनुसार बुध पर मिले बेहद ज्यादा कार्बन मैटेरियल ने मुझे एहसास कराया कि शायद इसके अंदर कुछ खास है। बुध भले ही अजीब हो, लेकिन वैज्ञानिकों का अनुमान है कि यह शायद अन्य स्थलीय ग्रहों की तरह बना है। यानी गर्म मैग्मा महासागर के ठंडा होने से बुध का निर्माण हुआ है। यह कार्बन और सिलिकेट से समृद्ध था। सबसे पहले, धातुएं इसके भीतर जम गईं, जिससे एक केंद्रीय कोर बना। बाकी मैग्मा ग्रह के मध्य में जमा हो गया जिससे बाहरी परत बनी। सालों तक वैज्ञानिक यही सोचते रहे कि मेंटल का तापमान और दबाव कार्बन के लिए पर्याप्त था, जिससे ग्रेफाइट बन गया। यह मेंटल से हल्का होने के कारण सतह पर तैरता था। वहीं 2019 की स्टडी ने खुलासा किया कि बुध का मेंटल 50 किलोमीटर तक गहरा हो सकता है। बता दें कि बुध की सतह की नीचे मिले रत्नों का खनन करना असंभव है। बुध ग्रह का अत्यधिक तापमान इसकी सबसे बड़ी वजह है। दिन के समय सतह पर तापमान 800 डिग्री फारेनहाइट यानी 430 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है। इसके अलावा हीरे बहुत गहरे हैं। यह सतह से लगभग 485 किलोमीटर नीचे हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि यह खोज अन्य वजहों से महत्वपूर्ण है। ये हीरे बुध के चुंबकीय क्षेत्र के लिए जिम्मेदार हो सकते हैं। शोधकर्ताओं के अनुसार कोर और मेंटल के बीच गर्मी को हीरे ट्रांसफर करने में मदद कर सकते हैं। जिससे तापमान में अंतर पैदा होगा। इससे तरल लोहा घूमने लगता है। जिससे चुंबकीय क्षेत्र बनता है। खोज के नतीजे यह भी समझाने में मदद कर सकते हैं कि कार्बन-समृद्ध एक्सोप्लैनेट कैसे विकसित होते हैं।
Rajneesh kumar tiwari