जनप्रवाद ब्यूरो, नई दिल्ली। धरती के 643 किलोमीटर नीचे वैज्ञानिकों को विशालकाय समुद्र मिला है। वैज्ञानिक अपनी ही खोज को देखकर हैरान हो गए है। खास बात ये है कि यह पानी अलग ही रूप में पाया गया है। वैज्ञानिकों ने पृथ्वी पर पानी कहां से आया यह खोजते समय रोचक खोज कर डाली है। पाया गया है कि पृथ्वी की सतह से 643 किलोमीटर नीचे पानी का एक विशाल भंडार है। पृथ्वी पर आए भूकंपों को आंकड़ों के अध्ययन में उन्होंने पाया कि इसका आकार पृथ्वी के सभी महासागरों से तीन गुना बड़ा है। इस भूमिगत जल भंड़ार की कभी किसी ने कल्पना भी नहीं थी। इस अध्ययन में इस धारणा को चुनौती मिली है कि पृथ्वी पर पानी उल्कापिंडों या धूमकेतुओं से आया था। अध्ययन बताता कि पृथ्वी के महासागर उसके क्रोड़ से ही निकले थे। वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं का कहना है कि जहां पर पानी मिला है वह एक मेंटल राक है। यहां परंपरागत स्पंज जैसी अवस्था में पानी जमा है। बता दें कि अमेरिका की नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक पृथ्वी के पानी की उत्पत्ति का पता लगाने की कोशिश कर रहे थे। इस खोज ने शोधकर्ताओं को एक अप्रत्याशित विशाल खोज की ओर धकेल दिया। उन्हें सतह से 643 किलोमीटर नीचे, पृथ्वी के आवरण के भीतर एक विशाल महासागर मिल गया। रिंगवुडाइट के नाम से जानी जाने वाली नीली चट्टान के भीतर यह महासागर छिपा था। इस भूमिगत समुद्र का आकार ग्रह के सभी सतही महासागरों का तीन गुना है। यह नई खोज पृथ्वी के जल चक्र के बारे में एक नया सिद्धांत भी प्रतिपादित करती है। इस भूमिगत महासागर को उजागर करने के लिए शोधकर्ताओं ने 2000 भूकंपमापी यंत्रों की एक शृंखला का उपयोग किया। जिसमें 500 से अधिक भूकंपों से भूकंपीय तरंगों का विश्लेषण किया गया। इसमें पाया गया कि पृथ्वी की कोर सहित उसकी आंतरिक परतों से होकर गुजरने वाली तरंगें गीली चट्टानों से गुजरते समय धीमी हो जाती हैं। जिससे वैज्ञानिकों को इस विशाल जल भंडार की उपस्थिति का अनुमान लगाने में मदद मिली। अब इस क्रांतिकारी खोज के बाद शोधकर्ता भूकंपीय डेटा इकट्ठा करना चाहते हैं। जिससे यह पता लगाया जा सके कि क्या इस तरह से मेंटल से इन महासागरों का निर्माण हुआ है। इसके निष्कर्ष पृथ्वी पर जल चक्र के बारे में हमारी समझ में क्रांतिकारी बदलाव ला सकते हैं। यह हमें अन्य ग्रहों पर जीवन की खोज में भी मदद कर सकता है। वहीं इस महासागर का अध्ययन करना बहुत मुश्किल होगा, क्योंकि यह पृथ्वी की सतह से बहुत गहराई में स्थित है। वैज्ञानिकों को भूकंपीय तरंगों का उपयोग करके ही इस महासागर का अध्ययन करना होगा और यह एक धीमी और जटिल प्रक्रिया है। वैज्ञानिकों का मानना है कि पृथ्वी पर पानी लगभग 4.6 अरब साल पहले आया था। पृथ्वी की सतह का लगभग 71 फीसद हिस्सा पानी से ढका है। अधिकतर पानी खारा है, जो पीने या खेती योग्य नहीं है। पृथ्वी का केवल तीन फीसद पानी ताजा है, जो पीने और खेती के लिए उपयोगी है। पृथ्वी की सतह पर पानी की उत्पत्ति को लेकर कई सिद्धांत हैं। प्लेट टेक्टोनिक्स सिद्धांत बताता है कि पृथ्वी की सतह लगातार गतिमान है और टकरा रही है। इस गति के कारण, पृथ्वी के मेंटल में मौजूद पानी क्रस्ट में दरारों के माध्यम से सतह पर आ सकता है। ज्वालामुखी सिद्धांत के अनुसार ज्वालामुखी विस्फोटों के माध्यम से पृथ्वी के मेंटल से पानी सतह पर आ सकता है। बता दें कि ज्वालामुखी विस्फोटों से निकलने वाली गैसों में जल वाष्प भी शामिल होता है, जो बाद में वर्षा के रूप में पृथ्वी पर गिर जाता है।
Rajneesh kumar tiwari