जनप्रवाद ब्यूरो, नई दिल्ली। वैज्ञानिकों ने ऐसे अनोखे ग्रह की खोज की है जो हर 21 घंटे में नया साल मनाता है। इस अजूबे ग्रह को वैज्ञानिकों ने टीओआई 3261 बी नाम दिया है। यह ग्रह सूर्य के बिल्कुल निकट है। इसके अनोखे होने की वजह इसकी स्पीड है। यह ग्रह अपने तारे के चारों ओर इतनी तेजी से घूमता है कि यहां 21 घंटे में एक साल पूरा हो जाता है। हम और आप एक साल में न्यू ईयर मनाते हैं। पृथ्वी सूर्य के चारों ओर एक चक्कर लगाने में 365 दिन, 5 घंटे, 48 मिनट और 46 सेकंड का समय लेती है। यानी एक साल में 365 दिन होते हैं। इससे साल बदलता है। 31 दिसंबर की रात शुरू होने वाला जश्न 1 जनवरी तक चलता है, लेकिन क्या आपने कभी ऐसे किसी ग्रह के बारे में सुना है जो हर 21 घंटे में न्यू ईयर मनाता है। अब वैज्ञानिकों ने ऐसे अनोखे ग्रह की खोज की है। अंतरिक्ष वैज्ञानिकों ने सौरमंडल के बाहर एक दुर्लभ प्रकार का ग्रह खोजा है। इसे टीओआई 3261 बी के नाम से जाना जाता है। इस ग्रह पर एक साल केवल 21 घंटे का होता है। खोजा गया यह नया ग्रह विज्ञान में रुचि रखने वाले लोगों के लिए कौतूहल का विषय बना हुआ है। टीओआई 3261 बी अल्ट्रा हॉट नेपच्यून आकार का ग्रह है। साउदर्न क्वींसलैंड यूनिवर्सिटी की खगोलशास्त्री एम्मा नैबी के नेतृत्व में वैज्ञानिकों की अंतरराष्ट्रीय टीम ने में द एस्ट्रोनॉमिकल जर्नल में अपने निष्कर्ष प्रकाशित किए हैं। खोजे गए नए ग्रह अनोखे होने की वजह इसकी स्पीड है। यह ग्रह अपने तारे के चारों ओर इतनी तेजी से घूमता है कि यहां 21 घंटे में एक साल पूरा हो जाता है। यानी पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करने में जितना समय लेती है, उससे 147 गुना ज्यादा तेजी से ये ग्रह अपने सूरज का चक्कर पूरा कर लेता है। इसका तापमान भी काफी ज्यादा होता है। इसका कारण सूरज के बेहद करीब होना है। वैज्ञानिकों ने बताया है कि अमूमन इस स्थिति में ग्रह के वातावरण में मोटी गैसें नहीं बनती। यही बात इस ग्रह को खास बनाती है। यह ग्रह करीब 650 करोड़ साल पुराना है। शुरूआत में यह ग्रह शायद बृहस्पति जितना बड़ा रहा होगा, लेकिन समय के साथ इसका बहुत सारा द्रव्यमान खत्म हो गया। वैज्ञानिकों ने इसके दो कारण बताए। पहला- फोटोइवैपोरेशन के कारण, यानी तारे की तेज ऊर्जा ने इसके वातावरण की गैसें खत्म हो गई। दूसरा कारण- टाइडल स्ट्रीपिंग यानी तारे की ग्रैविटी ने इसके वातावरण की परतें खींच लीं। इस ग्रह का द्रव्यमान नेपच्यून से दोगुना है। ऐसे ग्रह बहुत कम होते हैं और उन्हें खास परिस्थितियों में ही देखा गया है। इस ग्रह के अध्ययन से वैज्ञानिकों को यह समझने में मदद मिलेगी कि ग्रह इतनी कठिन परिस्थितियों में कैसे टिके रहते हैं। इस ग्रह के वातावरण को जानने के लिए नासा के जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप का इस्तेमाल किया गया है। इस टेलीस्कोप की मदद से इंफ्रारेड रोशनी में ग्रह के वायुमंडल का विश्लेषण किया गया। यह ग्रह हमें यह समझने में मदद करेगा कि ब्रह्मांड में नए ग्रह कैसे बनते और बदलते हैं। यह वैज्ञानिकों के लिए एक तरह की प्रयोगशाला बन चुका है। जिससे उन्हें नई जानकारियां मिलेंगी।
Rajneesh kumar tiwari