जनप्रवाद ब्यूरो, नई दिल्ली। एक विकसित देश के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है। सबसे बड़ी बात यह है कि इस देश के लोग इस्लाम को नहीं मानते। इस देश का हिंदुओं और भारत से गहरा नाता है। हम बात कर रहें जापान की। यहां की जन्म दर 125 सालों में सबसे कम हो गई है। अगर यही स्थिति रही तो 27,20 तक जापान का अस्तित्व मिट जाएगा। सृष्टि के लिए जीवन और मरन दोनों का होना जरूरी है। अगर बच्चे पैदा नहीं होंगे तो एक वक्त बाद किसी देश या समाज का अस्तित्व मिट जाएगा। ऐसा ही खतरा अब जापान पर मंडरा रहा है। जिस जापान की तकनीक और साइंस की दुनिया लोहा मानती है। वह देश जनसंख्या के मामले में शून्य हो जाएगा। जापान में बौद्ध धर्म के मानने वाले लोग हैं। यहां के लोग इस्लाम को लोग नहीं मानते। बता दें कि बौध धर्म का नाता हिंदुओं और भारत से है। यहीं पर भगवान बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। जापान के स्वास्थ्य मंत्रालय ने अपने जनसंख्या आंकड़े जारी किए हैं। इसमें पता चला कि 2024 में देश में विदेशी नागरिकों सहित सिर्फ 7,20,988 बच्चे पैदा हुए हैं। यह 2023 में हुए 7,58,631 जन्म के मुकाबले पांच फीसदी कम है। इसकी तुलना में अगर भारत की बात करें तो कंट्रीमीटर के मुताबिक, 2024 में भारत में 2,94,66,366 बच्चों ने जन्म लिया। जापानी आंकड़ों से पता चला है कि 1899 से सरकार आंकड़ों पर नजर रख रही है। तब से लेकर अब तक जन्म दर सबसे कम हुई है। अब इसमें जापान में होने वाली मौतों की संख्या को भी जोड़ लीजिए तो ये एक बड़ी मुसीबत बन गई है। 2024 में देश में 16,18,684 मौतें दर्ज की गईं। यह पिछले साल के मुकाबले 1.8 प्रतिशत अधिक है। इसका मतलब है कि जापान में बच्चे पैदा कम हो रहे हैं और लोग ज्यादा मर रहे हैं। इसकी वजह से आबादी में कमी आई है। जापान में लगभग 9,00,000 लोगों की आबादी कम हुई है। यह एक और रिकॉर्ड आंकड़ा है। इसका मतलब है कि हर नए जन्म लेने वाले बच्चे के अनुपात में दो लोगों की मौत हुई है। आज से 695 साल बाद जनवरी 2720 में जापान में सिर्फ एक ही बच्चा पैदा होगा। स्वास्थ्य मंत्रालय के इस चौंकाने वाले आंकड़े ने हर किसी को हैरान कर दिया है। 2024 में जापान में जन्म लेने वाले बच्चों की संख्या लगातार नौवें साल घटकर रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गई है। जनसांख्यिकी विशेषज्ञों का कहना है कि अगर जापान इसी रास्ते पर चलता रहा तो इस देश के खत्म होने का खतरा है। जापानी प्रधानमंत्री शिगेरू इशिबा ने इस घटनाक्रम को स्वीकार किया। उन्होंने कहा कि घटती जन्म दर के चलन में अभी तक कोई बदलाव नहीं आया है। बता दें कि जनसंख्या के आंकड़े बताते हैं कि जापान की आबादी 2008 में अपने चरम पर 128 मिलियन तक पहुंच गई थी। तब से अब तक इसमें लगभग पचास लाख लोगों की कमी आई है। यह गिरावट जारी है। राष्ट्रीय जनसंख्या और सामाजिक सुरक्षा अनुसंधान संस्थान के अनुमानों में भी भविष्यवाणी की गई है। इन अनुमानों के अनुसार 2048 तक देश की जनसंख्या घटकर 100 मिलियन से कम और 2060 में 87 मिलियन रह जाएगी। दूसरे शब्दों में कहें तो आधी सदी से कुछ ज्यादा समय में देश की एक तिहाई आबादी यानी 40 मिलियन से ज्यादा लोग गायब हो जाएंगे। 2720 तक देश में 14 साल से कम उम्र का केवल एक बच्चा रह जाएगा। 695 साल में जापानी प्रजाति का नामोनिशान मिट जाएगा। यानी जापान का अस्तित्व ही मिट जाएगा। विशेषज्ञों का कहना है कि इसके पीछे कम शादी होना है। जापान में बहुत सी महिलाओं का कहना है कि जिन पुरुषों के पास पक्की नौकरी नहीं होती, उन्हें शादी के लिए पसंद नहीं किया जाता। जापान में पारंपरिक रूप से पुरुषों से कमाने की उम्मीद की जाती है। इसके चलते कम कमाई वाले पुरुष शादी को टाल देते हैं या पूरी तरह से छोड़ देते हैं। एक दिक्कत ये भी है कि महिलाओं को खुद भी अनियमित नौकरियां मिलती हैं। ऐसे में उनके लिए भी परिवार चलाना बड़ा मुश्किल होता है। शादियां बढ़ाने के लिए सरकार कदम उठा रही है। इनमें चाइल्ड केयर सुविधाओं का विस्तार और हाउसिंग सब्सिडी देना शामिल है। आंकड़े बताते हैं कि ये उपाय जापान को मदद नहीं कर रहे हैं।
Rajneesh kumar tiwari