जनप्रवाद ब्यूरो, नई दिल्ली। चंद्रमा, मंगल जैसे ग्रहों पर इंसानों के लिए घर बनाने की दिशा में जापान ने अनोखा प्रयोग किया है। उसने दुनिया का पहला लकड़ी से सेटेलाइट बनाया है। उसे अंतरिक्ष में लॉन्च भी कर दिया गया है। अगर यह प्रयोग सफल हो जाता है तो आने वाले दिनों में ग्रहों पर लकड़ी के मकान बनने लगेंगे। अंतरिक्ष में पूरी दुनिया के देश कई तरह के प्रयोग कर रहे हैं। यहां तक पाकिस्तान ने भी चीन के सहयोग से अपना उपग्रह प्रक्षेपित किया है। अब जापान ने तो कमाल ही कर दिया। उसने दुनिया का पहला लकड़ी का सैटेलाइट बनाकर अंतरिक्ष की ओर रवाना कर दिया है। इस सैटेलाइट यानी लिग्नोसैट को पहले इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन ले जाया जाएगा। इसके बाद उसे 400 किलोमीटर ऊंचाई वाली आर्बिट में छोड़ दिया जाएगा। यह लांचिग स्पेसएक्स के रॉकेट से की गई है। इस अनोखे प्रयोग के द्वारा जापान यह जानना चाहता है कि क्या लकड़ी से बना सैटेलाइट अंतरिक्ष में सर्वाइव कर पाता है या नहीं। अगर यह सर्वाइव करता है तो भविष्य में लकड़ी की मदद से चंद्रमा, मंगल जैसे ग्रहों पर इंसानों के लिए घर बनाना आसान हो जाएगा। बता दें कि लकड़ी किसी भी अन्य धातु की तुलना में हल्की होती है और दोबारा प्रयोग में लाई जा सकती है। जापान के अंतरिक्ष विशेषज्ञ ताकाओ दोई ने इस बारे में बड़ी जानकारी दी। उनका कहना कि अगर लिग्नोसैट इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन और अंतरिक्ष के रेडिएशन को बर्दाश्त कर लेता है, तो भविष्य में इससे काफी मदद मिलेगी। लकड़ी का सेटेलाइट बेहद काम का साबित होगा। इससे चंद्रमा और मंगल ग्रह पर अनोखे प्रयोग किया जा सकते हैं। अगले 50 साल में वहां जापान की तरह ही मकान बनाए जा सकते हैं। बता दें कि इस सैटेलाइट को क्योटो यूनिवर्सिटी और रीयल इस्टेट कंपनी सुमिटोमो फॉरेस्ट्री ने मिलकर बनाया है। वहीं नासा ने भी इस सैटेलाइट को बनाने में मदद की है। क्योटो यूनिवर्सिटी के फॉरेस्ट साइंटिस्ट प्रोफेसर कोजी मुराता का कहना है कि 1900 के शुरूआती विमान लकड़ी से ही बनते थे। ऐसे में लकड़ी का सैटेलाइट बनाना संभव हुआ है। लकड़ी अंतरिक्ष में ज्यादा समय तक टिकी रहेगी। वहां उसे जलाने या सड़ाने के लिए कोई पानी, हवा, आक्सीजन या आग नहीं है। इस सैटेलाइट को होनोकी नाम के पेड़ की लकड़ी से बनाया गया है। यह मैग्नोलिया प्रजाति का पेड़ है। यह दस महीने का एक्सपेरिमेंट है। दस महीने यह सैटेलाइट स्पेस स्टेशन में रहेगा। इसके बाद इसे अंतरिक्ष में छोड़ दिया जाएगा। इसके बाद यह छह महीने तक आर्बिट में घूमता रहेगा। इस दौरान इसके इलेक्ट्रॉनिक यंत्रों को आन करके उसके काम को देखा जाएगा। माइनस 100 और अधिकतम 100 डिग्री सेल्सियस तापमान तक इस सैटेलाइट की जांच की जाएगी। हर 45 मिनट में यह परखा जाएगा कि यह अधिकतम और न्यूनतम तापमान की स्थिति में किस तरह काम करता है।
Rajneesh kumar tiwari